अजित पवार का 2019 में जो सपना अधूरा रह गया था, लगता है अब पूरा हो गया है! 2019 में बीजेपी के देवेंद्र फडणवीस के सीएम की शपथ लेने के साथ ही एनसीपी के अजित पवार ने उप मुख्यमंत्री पद की शपथ ले ली थी। लेकिन सरकार बहुमत नहीं पा सकी थी और उन्हें इस्तीफा देना पड़ा था। अब 2023 में फिर से अजित पवार ने आज उप मुख्यमंत्री पद की शपथ ले ली है। लेकिन अब मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे हैं और देवेंद्र फडणवीस उप मुख्यमंत्री। तो सवाल है कि अब अजित ने आख़िर यह फ़ैसला क्यों लिया? क्या उनकी पार्टी एनसीपी में उनकी उपेक्षा हो रही थी? क्या पार्टी उनके मुताबिक़ फ़ैसले नहीं ले पा रही थी? या फिर उनकी राजनीतिक महत्वाकांक्षा इन सबसे कहीं ज़्यादा थी?
इन सवालों का जवाब पाने से पहले यह जान लें कि हाल के दिनों में अजित पवार और एनसीपी को लेकर किस तरह की ख़बरें सामने आई हैं। इस मामले में जो सबसे ठोस घटना घटी वह थी पिछले महीने एनसीपी की कमान नये नेतृत्व को सौंपने की घोषणा। समझा जाता है कि अजित पवार की नाराज़गी की सबसे ताज़ा और प्रमुख वजह यही रही।
एनसीपी की कमान सौंपने को लेकर लंबे समय से चली आ रही खींचतान के बीच शरद पवार ने 10 जून को पार्टी के स्थापना दिवस पर सुप्रिया सुले और प्रफुल्ल पटेल को पार्टी का कार्यकारी अध्यक्ष नियुक्त किया था। सुले को महाराष्ट्र का प्रभारी भी बनाया गया, जिसे अजित पवार संभाल रहे थे। तो सवाल उठा कि इस फ़ैसले को अजित पवार ने क्या स्वीकार किया?
इस फ़ैसले के बाद ख़बर आई थी कि अजित नाखुश थे। हालाँकि, सुप्रिया सुले ने अपने चचेरे भाई अजित पवार के उनकी पदोन्नति के बाद 'नाखुश' होने के दावों का खंडन किया था। उन्होंने कहा था कि यह सिर्फ़ कयासबाजी है। सुप्रिया सुले के आए बयान से एक दिन पहले अजित पवार ने भी अपने असंतोष की खबरों को खारिज करते हुए कहा था कि वह पार्टी के फैसले से खुश हैं।
सुप्रिया सुले की पदोन्नति के इस घटनाक्रम के क़रीब दो हफ़्ते बाद अजित पवार ने विधानसभा में विपक्ष के नेता का पद छोड़ने की इच्छा जताई थी। उन्होंने एक कार्यक्रम में शरद पवार की उपस्थिति में यह बात कही थी।
यही वजह रही कि अजित पवार ने अपनी इच्छा जताते हुए कहा था कि नेता विपक्ष के बजाय मैं संगठन में भूमिका चाहता हूं। उन्होंने तब कहा था, 'मुझे संगठन में कोई रोल दीजिए और मुझे जो भी काम मिलेगा, उससे मैं पूरा न्याय करूंगा। मुझे कुछ लोगों ने कहा कि विपक्ष के नेता के तौर पर मेरा जो व्यवहार होना चाहिए वैसा मैं नहीं करता हूं। मुझ पर आरोप लगता है कि मैं सरकार के खिलाफ नहीं बोलता हूं। मैं पार्टी हाईकमान से अपील करता हूं कि वो मुझे नेता विपक्ष के पद से मुक्त कर पार्टी संगठन में काम करने का मौका दे।'
वैसे, इन दोनों घटनाक्रम से पहले भी एनसीपी में अजित पवार को लेकर स्थिति साफ़ नहीं रही। जब तब ख़बरें आती रहीं कि वह एनसीपी से बगावत कर बीजेपी से हाथ मिला सकते हैं। क़रीब ढाई महीने पहले ही अप्रैल महीने में ख़बर आई थी कि महाराष्ट्र में एनसीपी फिर से टूटने के कगार पर पहुंच गई। संकेत मिले थे कि अजित पवार 30-35 विधायकों के समर्थन के साथ एनसीपी से अलग होकर बीजेपी के साथ मिलकर महाराष्ट्र में अपनी सरकार बना सकते हैं। तब न्यू इंडियन एक्सप्रेस की एक ख़बर में कहा गया था कि अजित ने एनसीपी के 40 विधायकों के समर्थन का पत्र हासिल कर लिया है। इंडिया टुडे की एक रिपोर्ट में सूत्रों के हवाले से कहा गया था कि विपक्ष के 53 में से लगभग 34 विधायकों ने भाजपा के साथ हाथ मिलाने और शिंदे-फडणवीस सरकार का हिस्सा बनने के अजित पवार के इरादे का आंतरिक रूप से समर्थन किया था।
बता दें कि अजित पवार ने ऐसे ही चौंकाने वाले अंदाज में 2019 में महाराष्ट्र की राजनीति में उथल-पुथल ला दिया था। नवंबर 2019 में एकाएक राजभवन में देवेंद्र फडणवीस के मुख्यमंत्री और अजित पवार के उप मुख्यमंत्री के तौर पर शपथ लेने की चौंकाने वाली ख़बर आई थी।
चार साल पहले अजित पवार के उप मुख्यमंत्री पद की शपथ लेने के बाद यह बात सामने आई थी कि वह काफ़ी समय से अपनी पार्टी से नाराज चल रहे थे। कुछ रिपोर्टों में कहा गया था कि अजित पवार पर भ्रष्टाचार के केस चल रहे हैं और इससे बचने के लिए उन्होंने बीजेपी से हाथ मिलाया। विधानसभा चुनाव से पहले उन्होंने विधायक के पद से इस्तीफ़ा दे दिया था। तब कुछ लोगों ने इसे पवार परिवार की सियासी कलह का नतीजा बताया था तो कुछ ने कहा था कि पार्टी उन्हें मुख्यमंत्री पद के रूप में प्रोजेक्ट नहीं कर रही थी, इसलिए वह नाराज थे। लेकिन तब उस प्रकरण को शरद पवार ने बड़ी तत्परता से साधा था और कुछ घंटों बाद अजित पवार यह कहते हुए मीडिया के सामने आ गए थे कि उन्हें इस बात का दुःख हुआ है कि शरद पवार का नाम महाराष्ट्र को-ऑपरेटिव बैंक घोटाले से जोड़ा जा रहा है। तब एनसीपी से बग़ावत करने वाले अजीत पवार ने उप मुख्यमंत्री पद से इस्तीफ़ा देने के बाद कहा था कि वह एनसीपी में थे और एनसीपी के साथ हैं। लेकिन क्या अब फिर से वैसा हो पाएगा? इस बार तो कम से कम वैसा नहीं लगता है!
अपनी राय बतायें