वैसे तो 'बंटेंगे तो कटेंगे' का नारा वोटों के ध्रुवीकरण के लिए दिया गया, लेकिन लगता है कि इसका शिकार खुद बीजेपी और एनडीए ही हो गया है। इस नारे पर उनके अंदर ही मतभेद उभरकर सामने आए हैं। बीजेपी नेताओं- पंकजा मुंडे और अशोक चव्हाण द्वारा इस नारे से खुद को अलग किए जाने के बाद जब अजित पवार ने भी इस नारे को खारिज कर दिया तो देवेंद्र फडणवीस ने उनपर ही हमला कर दिया।
उपमुख्यमंत्री अजित पवार ने कहा था कि महाराष्ट्र में 'बटेंगे तो कटेंगे' नारे के लिए कोई जगह नहीं है। इस पर उनके सहयोगी देवेंद्र फडणवीस ने नाराजगी जताई और कहा कि नारे के बारे में अजित पवार की समझ अभी भी उनके पूर्व सहयोगियों से प्रभावित है। 20 नवंबर को होने वाले विधानसभा चुनावों से पहले उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के नारे 'बँटेंगे तो कटेंगे' को लेकर अजित पवार और फडणवीस के बीच दरार पैदा हो गई है।
'बँटेंगे तो कटेंगे' नारा उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री और भाजपा के स्टार प्रचारक योगी आदित्यनाथ ने महाराष्ट्र में अपनी हाल की एक रैली में गढ़ा था। विपक्ष ने नारे में सांप्रदायिक रंग होने का आरोप लगाया है, जबकि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस महीने की शुरुआत में इसे बदलकर 'एक हैं तो सेफ़ हैं' कर दिया। इस नारे ने महाराष्ट्र सरकार में साथ काम कर रहे भाजपा नेताओं और सहयोगियों में बेचैनी पैदा कर दी।
शरद पवार के भतीजे एनसीपी के अजित पवार ने अपनी बात को बेबाकी से रखा। उन्होंने हाल ही में एक साक्षात्कार में कहा, 'मैं इसका समर्थन नहीं कर रहा हूं। मैंने यह कई बार कहा है। यह महाराष्ट्र में काम नहीं करेगा। यह उत्तर प्रदेश, झारखंड या कुछ अन्य जगहों पर काम कर सकता है।' उनकी यह टिप्पणी राज्य भाजपा नेतृत्व को पसंद नहीं आई और उनके सहयोगी फडणवीस ने कड़ी प्रतिक्रिया व्यक्त की।
फडणवीस ने कहा कि उनके पूर्व सहयोगी नारे में निहित संदेश को नहीं समझ पाए। उन्होंने कहा कि ये लोग या तो जनता की भावना को नहीं समझ पाए या इस कथन का अर्थ नहीं समझ पाए या बोलते समय शायद वे कुछ और कहना चाहते थे।
भाजपा के दो प्रमुख नेताओं - पंकजा मुंडे और अशोक चव्हाण - ने भी नारे को लेकर अपने मतभेद साझा किए हैं।
दिवंगत भाजपा नेता गोपीनाथ मुंडे की बेटी पंकजा ने कहा कि उनकी राजनीति अलग है और वह सिर्फ़ इसलिए इसका समर्थन नहीं करेंगी क्योंकि वह उसी पार्टी से हैं। उन्होंने कहा, 'एक नेता का काम इस धरती पर रहने वाले हर व्यक्ति को अपना बनाना है। इसलिए हमें महाराष्ट्र में इस तरह का कोई मुद्दा नहीं लाना चाहिए।'
कांग्रेस से इस्तीफ़ा देने के बाद फरवरी में भाजपा में शामिल हुए अशोक चव्हाण ने कहा कि नारे का कोई औचित्य नहीं है और यह अच्छा नहीं है। उन्होंने कहा, 'मुझे नहीं लगता कि लोग इसे सराहेंगे। निजी तौर पर मैं इस तरह के नारे के पक्ष में नहीं हूँ।'
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