अल्पमत में आने के बाद कमलनाथ ने 20 मार्च को मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया था। पिछले 72 घंटों से बीजेपी में विधायक दल के नेता के नाम को लेकर गहमा-गहमी मची हुई थी। पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान का नाम इस दौड़ में सबसे आगे था। केन्द्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर और कमलनाथ सरकार को गिराने में अहम भूमिका निभाने वाले नरोत्तम मिश्रा भी दौड़ में शामिल थे।
पूर्व केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया और कांग्रेस के 22 विधायकों की बग़ावत के बाद शुरू हुई तमाम सियासी उठापटक के बीच बीजेपी आलाकमान ने शिवराज सिंह चौहान का नाम मुख्यमंत्री के लिये फाइनल कर दिया।
इसलिए आगे रहे शिवराज
माना जा रहा है कि लगातार 13 साल तक मध्य प्रदेश का मुख्यमंत्री रहना शिवराज के हक़ में गया। विधायकों में उनकी खासी पैठ ने भी मुख्यमंत्री पद की रेस जीतने में शिवराज की मदद की। मध्य प्रदेश की नौकरशाही के मिजाज से भी वह पूरी तरह वाकिफ हैं और जनता में लोकप्रिय भी हैं। चूंकि सरकार बनने के कुछ महीनों के भीतर ही बीजेपी को 24 सीटों पर होने वाले उपचुनाव का सामना करना है, लिहाजा पार्टी ने शिवराज को सबसे मुफीद चेहरा माना और उनके नाम पर मुहर लगा दी।
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