मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने अपने एक फैसले में कहा है कि स्थानीय प्रशासन और स्थानीय निकायों के लिए प्राकृतिक न्याय के सिद्धांत और उचित प्रक्रिया का पालन किए बिना किसी भी घर को ध्वस्त करना और उसे अखबार में प्रकाशित करना अब फैशन बन गया है। घरों को बिना उचित प्रक्रिया का पालन किए तोड़ें जाने की प्रवृत्ति की निंदा की है।
मध्य प्रदेश समेत कई राज्यों में हाल के वर्षों में बुल्डोजर के जरिए आपराधिक घटनाओं के आरोपियों के घरों को तोड़ें जाने की कार्रवाई खूब हुई है। ऐसे में मध्य प्रदेश हाईकोर्ट का यह फैसला बेहद अहम माना जा रहा है।
लॉ से जुड़ी खबरों की वेबसाइट लाइव लॉ की एक रिपोर्ट के मुताबिक मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने एक याचिकाकर्ता को 1 लाख रुपये का मुआवजा दिया है, जिसके घर को उचित प्रक्रिया का पालन किए बिना उज्जैन नगर निगम द्वारा अवैध रूप से ध्वस्त कर दिया गया था।
मुआवजा देते समय, हाईकोर्ट ने उज्जैन नगर निगम (यूएमसी) के आयुक्त को पंचनामा बनाने में शामिल अधिकारियों के खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई करने का भी निर्देश दिया है।
इसके साथ ही कोर्ट ने, याचिकाकर्ताओं को सिविल कोर्ट के माध्यम से अपने नुकसान के लिए अतिरिक्त मुआवजे की मांग करने का विकल्प भी दिया है।
मध्य प्रदेश हाईकोर्ट के जस्टिस विवेक रूसिया ने अपने आदेश में कहा है कि, ऐसा लगता है कि इस मामले में भी याचिकाकर्ताओं के परिवार के सदस्यों में से एक के खिलाफ आपराधिक मामला दर्ज किया गया था और विध्वंस से जुड़ी गतिविधियों को अंजाम दिया गया था। उन्होंने कहा कि विध्वंस अंतिम उपाय होना चाहिए।
हाईकोर्ट ने इस बात पर जोर दिया कि किसी को भी नगर निगम के क्षेत्र में नियमों का पालन किए बिना और उचित अनुमति के बिना घर बनाने का अधिकार नहीं है।
अवैध रूप से बने घरों को तोड़ें जाने को लेकर कोर्ट ने कहा कि, तोड़-फोड़ आखिरी रास्ता होना चाहिए, वह भी घर के मालिक को इसे नियमित कराने का उचित अवसर देने के बाद।
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