मध्य प्रदेश की कमलनाथ सरकार को क्या स्थानीय निकायों को लेकर पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गाँधी के सपने की फ़िक्र नहीं है? कमलनाथ सरकार ने यह फ़ैसला क्यों लिया कि महापौर और नगर निगम अध्यक्ष को जनता सीधे अपने वोट के ज़रिए नहीं चुनेगी, बल्कि अब उन्हें निर्वाचित पार्षद चुनेंगे। चुनी हुई स्थानीय सरकारों को बेहद मज़बूत और जनता के प्रति जवाबदेह बनाने के लिए कई क्रांतिकारी क़दम उठाने वाले राजीव गाँधी के सपनों को उन्हीं की पार्टी मध्य प्रदेश कांग्रेस क्या भूलाने जा रही है? या कोई और मजबूरी है?
कमलनाथ सरकार के इस फ़ैसले पर कई सवाल खड़े हो रहे हैं। सरकार के निर्णय को मध्य प्रदेश में पिछले लोकसभा चुनाव में मिली क़रारी हार से भी जोड़ा जा रहा है। दरअसल, लोकसभा चुनाव में कांग्रेस मध्य प्रदेश की 29 में से 28 सीटें हार गई थी। ज्योतिरादित्य सिंधिया तक गुना सीट को नहीं बचा सके थे। स्वयं कमलनाथ के अपने गढ़ में उनके बेटे नकुल नाथ मुश्किल से जीत पाए थे।
नगरीय निकाय चुनाव इसी साल दिसंबर में होने हैं। नगर निकाय सरकारों में कांग्रेस की हालत पिछले चुनाव में बेहद खस्ता रही थी। मध्य प्रदेश में कुल 16 नगर निगम हैं। इन सभी में महापौर बीजेपी के चुनकर आए। क़रीब-क़रीब ऐसी ही स्थिति 98 नगर पालिकाओं और 264 नगर पंचायतों में रही। बता दें कि नगर पालिका और पंचायतों के अध्यक्षों का चुनाव सीधे नहीं होता है। इसके बावजूद संख्या बल के हिसाब से बीजेपी की इन निकायों पर धाक है।
कांग्रेस का क्या रहा है रुख?
कांग्रेस के वरिष्ठ नेता वीरप्पा मोइली की सिफ़ारिश पर महापौर का सीधा चुनाव शुरू हुआ था। वह यूपीए के पहले कार्यकाल में दूसरे प्रशासनिक सुधार आयोग के अध्यक्ष बनाए गए थे। आयोग ने अनेक सिफ़ारिशें सुधार के लिए दी थीं। इनमें से एक में आयोग ने महापौर का चुनाव जनता के सीधे वोट से कराए जाने का सुझाव दिया था। हालाँकि इस सुझाव के पहले दिग्विजय सिंह की सरकार महापौर का सीधा चुनाव कराए जाने का निर्णय 1999 में ही ले चुकी थी। कई राज्यों ने आयोग के सुझाव पर अमल करना शुरू किया था।
राहुल गाँधी भी सीधे चुनाव के पक्ष में
कांग्रेस के तत्कालीन अध्यक्ष राहुल गाँधी ने मेयर इलेक्शन को लेकर अप्रैल 2019 में एक ट्वीट किया था। अपने ट्वीट में राहुल ने कहा था, ‘हमें शहरों में गुणवत्तापूर्ण जीवन के साथ बेहतर विकास करना है तो महापौर का चुनाव सीधे जनता के ज़रिए ही होना चाहिए।’
मेयर और निकाय अध्यक्षों के चुनाव जनता के वोट से कराये जाने के लिए 2016 में कांग्रेस के वरिष्ठ सांसद शशि थरूर संसद में एक प्राइवेट बिल लेकर आये थे। उन्होंने माँग की थी कि निकाय प्रमुख का चुनाव जनता के वोट के ज़रिए होना चाहिए। नियमों में बदलाव कर पूरे देश में इसको लागू करने की माँग भी उन्होंने की थी।
बीजेपी ने कहा, क्या हुआ राजीव-राहुल के संकल्प का?
मध्य प्रदेश बीजेपी के वरिष्ठ नेता राहुल कोठारी ने ‘सत्य हिन्दी’ से कहा कि ‘पूरी कांग्रेस गाना तो निकायों को सशक्त बनाने का गाती है, लेकिन फ़ैसले उलटे करती है। राजीव गाँधी जी ने निकायों को मज़बूत बनाने के लिए अनेक अहम क़दम उठाये थे। राहुल गाँधी स्वयं मेयर चुनाव सीधे कराना चाहते हैं। विडंबना देखिये राजीव गाँधी के साथ काम करने वाले कमलनाथ ने उनके सपनों की भी लाज नहीं रखी।’
उन्होंने कहा कि कमलनाथ सरकार ने आने वाले निकाय चुनाव में क़रारी हार के भय से मेयर चुनाव की पद्धति बदली है। उन्होंने यह भी कहा कि हमारा विरोध महज इसलिये है कि चुना हुआ मेयर ज़्यादा स्वतंत्र होकर काम कर पाता है।
शिवराज बोले, ख़रीद-फ़रोख्त बढ़ेगी
पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चैहान ने कमलनाथ सरकार के इस निर्णय का विरोध किया। उन्होंने कहा है कि एक स्वस्थ परंपरा को कांग्रेस की सरकार केवल इसलिए ख़त्म कर रही है कि उसे आने वाले निकाय चुनाव में बुरी तरह पराजय अभी से दिखलाई पड़ रही है। उन्होंने कहा, ‘जोड़तोड़ करके निगमों में इज्जत बचाने के लिए कमलनाथ का प्रयास अपना महापौर बनाने के लिए पार्षदों की ख़रीद-फ़रोख्त को बढ़ावा देगा।’ उन्होंने यह भी कहा कि बीजेपी कोर्ट जाने जैसा रास्ता अपनाने में भी नहीं हिचकेगी।
बेहतरी के लिए बदलाव: विधि मंत्री
मध्य प्रदेश के विधि मंत्री पी.सी. शर्मा ने कहा, ‘चुने हुए पार्षदों की अहमियत कम हो चली थी। महापौर उन्हें भाव नहीं देते थे। समान रूप से शहर का विकास बाधित होता था। महापौर दल का चश्मा लगाये रहता था। पार्षदों के ज़रिये महापौर का चुनाव होगा तो महापौर पर पार्षदों को तवज्जो देने का दबाव रहेगा। कुर्सी पर बने रहने के लिए बेहतर और सबको साथ लेकर काम करके उसे दिखाना होगा।’
सीधे चुनाव कराने वाले अब चार राज्य बचे
स्थानीय निकाय चुनाव 74वें संविधान संशोधन के बाद लागू हुए थे। मध्य प्रदेश द्वारा महापौर का सीधा चुनाव कराए जाने के पुराने फ़ैसले को पलटने से पहले मध्य प्रदेश के साथ छत्तीसगढ़, उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड और झारखंड मेयर का चुनाव सीधे कराते थे। झारखंड में तो निकाय अध्यक्ष का चुनाव भी जनता ही करती है।
सबसे पहले हिमाचल ने खींचे थे पीछे क़दम
हिमाचल प्रदेश ने मेयर और डिप्टी मेयर का चुनाव जनता के वोट से कराये जाने का फ़ैसला सबसे पहले पलटा था। साल 2012 के चुनाव में इस सूबे में बेहद विचित्र स्थिति बनी थी। कुल 26 पार्षदों वाली शिमला नगर निकाय में बीजेपी के 12 और कांग्रेस के 10 पार्षद जीतकर आये थे। चार सीटें अन्य को मिली थीं। मेयर और डिप्टी मेयर का चुनाव कम्युनिस्ट पार्टी ने जीत लिया था। भाकपा की जीत ने बीजेपी और कांग्रेस सकते में आ गई थी। बाद में हिमाचल सरकार ने नियम बदल दिया था। मेयर और डिप्टी मेयर का चुनाव सीधे कराने की जगह पार्षदों के माध्यम से कराया जाने लगा था।
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