मध्य प्रदेश लोकसेवा आयोग (एमपीपीएसी) की परीक्षा में पूछे गये एक सवाल को लेकर बवाल मच गया है। अनुसूचित जनजाति वर्ग के भील समुदाय को लेकर परीक्षा में पूछे गये एक बेतुके सवाल पर मुख्यमंत्री कमलनाथ को उनके अपने ही लोगों ने घेर लिया है। इस सवाल के बाद ना केवल विपक्ष बल्कि सत्तापक्ष के लोगों की भौंहे भी तन गई हैं। पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह के अनुज और कांग्रेस के वरिष्ठ विधायक लक्ष्मण सिंह ने कमलनाथ से विधानसभा के फ़्लोर पर माफ़ी मांगने को कहा है।
कमलनाथ सरकार में वन मंत्री उमंग सिंघार ने भी इस सवाल को लेकर तीख़ी आपत्ति जताई है। उन्होंने बेतुका सवाल पूछने वाले दोषियों के ख़िलाफ़ एफ़आईआर दर्ज करने की मांग की है। कमलनाथ के बेहद ख़ास माने जाने वाले राज्य के गृह मंत्री बाला बच्चन ने भी इस प्रश्न को आपत्तिजनक करार देते हुए निंदा की है। एक अन्य मंत्री सुखदेव पांसे ने कहा कि ऐसे बेहूदे प्रश्न को परीक्षा में शामिल करने वालों के ख़िलाफ़ सरकार एक्शन लेगी।
सवाल को लेकर बवाल तो रविवार को परीक्षा ख़त्म होने के बाद से ही शुरू हो गया था। इस पूरे मामले को राजनीतिक हवा सोमवार दोपहर से शाम तक कई मंत्रियों और कांग्रेस के विधायकों की ओर से उठाई गई अपत्तियों के बाद मिली।
इस सवाल पर हुआ बवाल
एमपीपीएससी की परीक्षा में जिस सवाल (गद्यांश) को लेकर राजनीतिक घमासान छिड़ा है, वह इस प्रकार है - ‘‘भील एक निर्धन जनजाति है। इनका मुख्य व्यवसाय कृषि है। इसके अतिरिक्त खेतों में मजदूरी, पशुपालन, जंगली वस्तुओं का विक्रय और शहरों में भवन निर्माण में दिहाड़ी मजदूरी पर काम कर ये अपनी जीवन नैया चलाते हैं। भीलों की आर्थिक विपन्नता का एक मुख्य कारण आय से अधिक व्यय करना है। भील शराब के अथाह सागर में डूबती जा रही जनजाति है। ऊपर से साहूकारों और महाजनों द्वारा दिए गए ऋण का बढ़ता ब्याज इस समंदर में बवंडर का काम करता है। जिसके कुचक्र से यह लोग कभी बाहर नहीं निकल पाते। भीलों की आपराधिक प्रवृत्ति का भी एक मुख्य कारण यह है कि ये सामान्य आय से अपनी देनदारियां पूरी नहीं कर पाते। फलतः धन उपार्जन की आशा में गैर वैधानिक तथा अनैतिक कामों में भी लिप्त हो जाते हैं।’’
एम्स में सहायक प्राध्यापक रह चुके मध्य प्रदेश के धार जिले के मनावर से कांग्रेस के विधायक हीरालाल अलावा ने मुख्यमंत्री को खत लिखकर मध्य प्रदेश लोकसेवा आयोग के अध्यक्ष भास्कर चौबे और सचिव रेणु पंत को बर्खास्त करने की मांग की है। उन्होंने अनुसूचित जाति/जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम 1989 के तहत इनकी जवाबदेही तय करने तथा अन्य दोषियों के ख़िलाफ़ मुक़दमा दर्ज किये जाने की मांग की है।
कमलनाथ ने बैठाई जांच
मामले के तूल पकड़ने के बाद मुख्यमंत्री कमलनाथ ने सोमवार देर शाम ट्वीट कर कहा, ‘इस निंदनीय कार्य के लिए (बेतुका सवाल पूछने वालों को) निश्चित तौर पर दोषियों को दंड मिलना चाहिए। उन पर कड़ी कार्रवाई होनी चाहिए ताकि इस तरह के मामले की पुनरावृत्ति ना हो।’ मुख्यमंत्री ने यह भी कहा, ‘मध्य प्रदेश लोकसेवा आयोग 2019 की प्रारंभिक परीक्षा में भील जनजाति को लेकर किए गए आपत्तिजनक सवाल को लेकर मुझे काफी शिकायतें मिली हैं। इसकी जांच के आदेश दे दिये गये हैं।’ कमलनाथ ने कहा कि उन्होंने जीवन भर आदिवासी समुदाय, भील जनजाति और इस समुदाय की सभी जनजातियों का बेहद सम्मान किया है और उनकी सरकार भी इस वर्ग के उत्थान और भलाई के लिए लगातार काम कर रही है।
प्रेस कॉन्फ़्रेंस कर जताया ख़ेद
मध्य प्रदेश लोक सेवा आयोग के चेयरमैन प्रोफ़ेसर भास्कर चौबे ने आनन-फानन में इंदौर में एक प्रेस कॉन्फ़्रेंस कर कहा कि इस मामले में आयोग की अपनी सीमाएं हैं, लेकिन दोषियों पर नियमों के तहत जो भी कार्रवाई होगी, वह की जाएगी। आयोग की ग़लती मानते हुए उन्होंने ख़ेद भी जताया। चौबे ने कहा कि पेपर सेट करने वाले और माॅडरेटर दोनों को नोटिस जारी कर सात दिन में जवाब मांगा गया है। साथ ही दोनों को सभी परीक्षाओं के लिए ब्लैक लिस्ट भी कर दिया गया है।
चेयरमैन की प्रेस कॉन्फ़्रेंस से पहले कुछ संगठनों ने पीएससी मुख्यालय पर प्रदर्शन किया। अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के अलावा जय आदिवासी युवा संगठन (हिरालाल अलावा ने इस संगठन को खड़ा किया था) ने भी मध्य प्रदेश लोकसेवा आयोग कार्यालय के सामने प्रदर्शन किया। सवाल का विरोध करने के लिए आगे आये विपक्ष और सत्तारूढ़ दल से जुड़े ज्यादातर नेता अनुसूचित जनजाति वर्ग से संबंध रखते हैं। मध्य प्रदेश में कुल 230 विधानसभा सीटों में से 47 सीटें अनुसूचित जनजाति वर्ग के लिए आरक्षित हैं। वर्तमान में इन 47 सीटों में से 11 सीटें बीजेपी के पास हैं, जबकि एक-दो को छोड़कर बाक़ी पर कांग्रेस काबिज़ है।
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