मध्य प्रदेश में बड़ी मुश्किल से सत्ता में आई कांग्रेस कहीं पार्टी नेताओं की आपसी लड़ाई की भेंट ने चढ़ जाए? राज्य के मुख्यमंत्री कमलनाथ और पूर्व केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया के बीच चल रहा ‘शीतयुद्ध’ अब सतह पर आ गया है। ज़रूरत पड़ने पर अपनी ही सरकार के ख़िलाफ़ सड़क पर उतरने का बयान देने वाले सिंधिया को कमलनाथ ने दो टूक जवाब दिया है और कहा है, ‘...तो उतर आयें सड़क पर।’ अब इसका क्या मतलब है? क्या पार्टी में आपसी लड़ाई अब कमलनाथ और सिंधिया सड़क पर लड़ेंगे?
साल 2018 के विधानसभा चुनाव में मध्य प्रदेश में कांग्रेस की सत्ता में वापसी हुई थी। राज्य में पंद्रह सालों बाद सरकार बना पायी मध्य प्रदेश कांग्रेस में पहले ही दिन से खींचतान नज़र आने लगी थी। दरअसल, ज्योतिरादित्य सिंधिया की नज़र भी मुख्यमंत्री की कुर्सी पर थी। कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गाँधी के वीटो की वजह से वे सीएम बनने से चूक गए थे।
मुख्यमंत्री पद पर कमलनाथ की ताजपोशी के बाद से सिंधिया सतत प्रेशर पाॅलीटिक्स में जुटे हुए हैं। दर्जनों बार उन्होंने कमलनाथ सरकार को संकट में डालने वाली बयानबाज़ी की। सिंधिया ने गत दिवस टीकमगढ़ में एक जनसभा में बयान दिया, ‘‘किसानों की क़र्ज़माफ़ी और आपसे (ग़रीबों से) जुड़ी अन्य माँगें हमारे वचन पत्र में हैं। वचन पत्र मेरे लिए धार्मिक ग्रन्थ जैसा है। वचन पत्र में दी गईं माँगें यदि पूर्ण नहीं हुईं तो सिंधिया भी आप लोगों के साथ सड़क पर उतर आयेगा।’’
मुख्यमंत्री कमलनाथ से शनिवार को जब ज्योतिरादित्य सिंधिया के सड़क पर उतरने संबंधी बयान पर प्रतिक्रिया माँगी गई तो उन्होंने दो टूक जवाब दिया, ‘‘...तो उतर आयें सड़क पर।’’ अपने संक्षिप्त जवाब के बाद कार का शीशा चढ़ाकर वह आगे बढ़ गये।
ज्योतिरादित्य सिंधिया के बयान पर सीएम कमलनाथ के ‘क़रारे जवाब’ ने सियासी पारा गरमा दिया है। सिंधिया लंबे वक़्त से कमलनाथ सरकार और कांग्रेस पार्टी को मुश्किल में डालने वाले बयान देते चले आ रहे हैं। पूर्व में कई बार मीडिया ने सिंधिया के ऐसे बयानों को लेकर मुख्यमंत्री कमलनाथ से प्रतिक्रियाएँ माँगी, लेकिन वह हमेशा प्रतिक्रिया देने से बचते रहे। पहली बार उन्होंने दो टूक जवाब दिया है।
सिंधिया के तिलमिलाहट हैं कई वजह
कांग्रेस के राष्ट्रीय महासचिव और मध्य प्रदेश कांग्रेस के वरिष्ठ नेता ज्योतिरादित्य सिंधिया की तिलमिलाहट की कई वजहें हैं। पहले वह प्रदेश के सीएम नहीं बन सके - फिर गुना-शिवपुरी लोकसभा सीट अपने ही पुराने चेले से बुरी तरह से हार गये। यूपी के विधानसभा चुनावों में कांग्रेस की फजीहत का ठीकरा उनके सिर फूटा।
अपने समर्थक विधायकों को कमलनाथ काबीना में जगह और कुछ को मनमाफिक डिपार्टमेंट दिलाने में वह सफल रहे। लेकिन कोटरी से मंत्री बने सहयोगियों की कमलनाथ काबीना में हैसियत ‘शोभा की सुपारी’ सी होना भी सिंधिया का दर्द है। डिपार्टमेंट के मंत्री को भनक लगे बिना अहम फ़ैसले हो जाना - समर्थक मंत्रियों और स्वयं सिंधिया को भी रास नहीं आ रहा है। विभाग में अफ़सरों की तूती बोलना भी कोटे से मंत्री बने बैठे लोगों की ओर से बार-बार शिकायत आना भी सिंधिया की खिन्नता की एक वजह है।
राज्यसभा सीट पर है नज़र?
सिंधिया के समर्थक माँग करते आ रहे हैं कि ज्योतिरादित्य को पीसीसी चीफ़ बना दिया जाए। केन्द्रीय नेतृत्व इस माँग पर कोई ध्यान देता नज़र नहीं आया है। सिंधिया समर्थक यह भी माँग करते रहे हैं कि मध्य प्रदेश में कांग्रेस की मज़बूती के लिए सिंधिया को कोई न कोई अहम ज़िम्मेदारी पार्टी के लिए फ़ायदे का सौदा होगी लेकिन इस दिशा में भी केन्द्रीय नेतृत्व ने कोई रूचि नहीं दिखाई है।
अप्रैल महीने में मध्य प्रदेश में राज्यसभा की तीन सीटें खाली हो रही हैं। दो अभी बीजेपी के पास (प्रभात झा और सत्यनारायण जटिया एमपी) हैं। जबकि तीसरी सीट पर दिग्विजय सिंह विराजमान हैं।
मध्य प्रदेश विधानसभा में सदस्यों की संख्या के मान से आने वाले चुनाव में राज्यसभा की दो सीटें कांग्रेस और एक बीजेपी के खाते में आयेगी। प्रेक्षकों का मानना है कि सिंधिया और उनके समर्थकों का समूचा दबाव राज्यसभा सीट को लेकर ही है।
दिल्ली बैठक में अलग-थलग पड़े सिंधिया!
शनिवार को दिल्ली में मध्य प्रदेश सरकार और संगठन से जुड़े मसलों को लेकर महत्वपूर्ण बैठक हुई। सूत्रों के अनुसार मध्य प्रदेश कांग्रेस के प्रभारी और राष्ट्रीय महासचिव दीपक बावरिया की मौजूदगी में मुख्यमंत्री कमलनाथ के निवास पर हुई बैठक में सिंधिया अलग-थलग पड़े नज़र आये। सूत्रों के अनुसार कमलनाथ समर्थकों ने सिंधिया को जमकर घेरा। पार्टी को नुक़सान पहुँचाने वाले सिंधिया के कथित बयानों पर संकेतों में ख़ूब चर्चा हुई। बताया जाता है कि सिंधिया इससे नाराज़ हो गये और बैठक में बीच में ही छोड़कर चलते बने।
सिंधिया के बीच में ही बैठक छोड़कर जाने को लेकर पूछने पर बावरिया ने बाद में मीडिया को कैफियत दी कि ‘‘अन्य बैठक में उन्हें जाना था। बैठक पूर्व से तय थी।’’ काफी कुरेदे जाने पर बावरिया तमाम सवालों के जवाब देने से बचते दिखे।
हालाँकि सिंधिया द्वारा महत्वपूर्ण बैठक को बीच में ही छोड़कर चले जाना और कमलनाथ का सिंधिया को लेकर वह बयान कि ‘तो सड़क पर उतर आयें’ को मध्य प्रदेश की नाथ सरकार और कांग्रेस पार्टी के लिए अच्छा संकेत नहीं माना जा रहा है।
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