कमलनाथ का राजनीतिक सफ़र 1970 में आरंभ हुआ था। इंदिरा गाँधी के तीसरे पुत्र कहलाने वाले नाथ ने छिंदवाड़ा लोकसभा सीट को 1980 में फतह करने के बाद कभी भी पीछे मुड़कर नहीं देखा। कांग्रेस के लिए तमाम प्रतिकूल हालातों में भी वह छिंदवाड़ा से लगातार जीतते रहे हैं। उनके राजनीतिक कौशल की मिसालें कांग्रेस में सतत दी जाती रही हैं। राजनीति करने का उनका अंदाज जुदा है और वह ‘सोफेस्टिकेटेड’ नेताओं में शुमार होते हैं।
पॉलीटिकल मैनेजमेंट में ‘मास्टरी’ की वजह से ही कांग्रेस आलाकमान ने मध्य प्रदेश में 15 सालों के सत्ता के सूखे को समाप्त करने की ज़िम्मेदारी कमलनाथ को सौंपी थी।
कमलनाथ ने 17 दिसंबर 2018 को मध्य प्रदेश के 18वें मुख्यमंत्री के रूप में पद और गोपनीयता की शपथ ली थी और उन्हें मुख्यमंत्री के तौर पर काम करते हुए नौ महीने हो गये हैं। इन नौ महीनों में नाथ, संभवतः एक भी दिन ‘चैन’ से नहीं बिता पाये हैं। आये दिन कोई ना कोई ‘बड़ी परेशानी’ उन्हें घेर रही है।
सिख दंगों से जुड़ी फ़ाइल खुली
कमलनाथ के सामने फिलहाल सबसे बड़ी परेशानी 1984 के सिख दंगों का ‘जिन्न’ एक बार फिर बोतल से बाहर निकलकर खड़ा हो जाना है। केंद्रीय गृह मंत्रालय ने इस ‘पुरानी फ़ाइल’ को न केवल खोल दिया है, बल्कि नाथ पर शिकंजा भी कस दिया है। ऐसा माना जा रहा है कि कमलनाथ उनके कथित राजनीतिक धुर विरोधी अमित शाह के निशाने पर हैं। शाह देश के गृह मंत्री हैं। यह भी कहा जा रहा है कि शाह के ‘हठ’ की वजह से कमलनाथ के पुराने पॉलीटिकल फ़्रेंड और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी इस मामले में ‘बेबस’ बने हुए हैं।
एसआईटी दे चुकी है क्लीन चिट
यहां बता दें कि केन्द्रीय गृह मंत्रालय ने एक अधिसूचना जारी करते हुए संसद मार्ग थाने की 35 साल पुरानी एफ़आईआर क्रमांक 601/84 को खोल दिया है। तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गाँधी की हत्या के बाद भड़के सिख दंगों में नाथ की कथित भूमिका से जुड़ा एक दिलचस्प राजनीतिक पहलू यह है कि 1984 के सिख दंगों में नाथ को एसआईटी क्लीन चिट दे चुकी है। इस मामले में बैठाया गया जांच आयोग भी नाथ को पाक-साफ़ बता चुका है।
मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री पद के दावेदारों के नामों को लेकर विचार के वक़्त ही सिख दंगों पर राजनीति आरंभ हो गई थी। दिल्ली सिख गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी के अध्यक्ष मनजिंदर सिंह सिरसा लगातार कमलनाथ के ख़िलाफ़ बयान दे रहे हैं। सिरसा तो यह भी दावा कर रहे हैं कि ‘सज्जन कुमार की तरह कमलनाथ भी बहुत जल्दी तिहाड़ जेल में नज़र आयेंगे।’
दिल्ली विधानसभा के चुनाव निकट हैं और सिख यहां बड़ा वोट बैंक हैं। राजनीतिक जानकारों के मुताबिक़, यह तय माना जा रहा है कि आने वाले दिनों में सिख दंगों का मसला, नाथ की परेशानियां बढ़ायेगा।
पीसीसी चीफ़ को लेकर रार
उधर, पूर्व मुख्यमंत्री और कमलनाथ के ‘कृपापात्र’ दिग्विजय सिंह सत्ता के लिए ‘मचल’ रहे हैं। नंबर गेम में पीछे होने के बावजूद जोड़तोड़ कर कमलनाथ ने सरकार बनाई है। मप्र के आला कांग्रेस नेताओं में चल रही जबरदस्त खींचतान का फायदा उठाते हुए सरकार का समर्थन करने वाले अन्य दलों के विधायक कमलनाथ को बार-बार ‘आंखें’ दिखाते हैं। मंत्री पद के दावेदार कांग्रेसी विधायकों की नजरें भी नाथ पर तिरछी बनी हुई हैं।
खाली खजाने से बढ़ी मुश्किलें
सत्ता में आने से पहले मध्य प्रदेश कांग्रेस ने राज्य की जनता से बड़े-बड़े वादे किये थे। किसानों का दो लाख रुपये तक कर्ज माफ़ करना कमलनाथ सरकार के लिए गले की हड्डी बना हुआ है। राज्य के 55 लाख किसानों के कर्ज माफ किये जाने हैं। दस दिनों में कर्जमाफी का राहुल गाँधी का दावा था। नौ महीने हो रहे हैं और अभी 15-16 लाख के क़रीब ही किसानों को ही कर्जमाफ़ी के प्रमाण पत्र नाथ सरकार दे पायी है।
किसानों के बिजली के बिल हाफ़ किये गये हैं। इसके अलावा सरकार 100 रुपये में 100 यूनिट बिजली दे रही है। इनके अलावा भी कई अन्य वादों पर अमल करने का प्रयास हुआ है। लेकिन अभी भी नाथ सरकार को बड़ी संख्या में अपने वादे पूरे करने हैं।
सहयोगियों के ठिकानों पर पड़े छापे
मध्य प्रदेश में सरकार बनाने के बाद पहला बड़ा झटका लोकसभा चुनाव के दौरान कमलनाथ को ‘विरोधियों’ ने दिया था। उनके बरसों पुराने और बेहद वफादार सहयोगी राजेन्द्र मिगलानी के यहां इनकम टैक्स की रेड हुई। नाथ के ओएसडी प्रवीण कक्कड़ और कक्कड़ के कथित ‘फाइनेंशियल प्रबंधक’ के यहां छापे पड़े। इन छापों में 281 करोड़ की बेहिसाब संपत्ति मिली।
बता दें कि छापों के बाद कांग्रेस को सियासी नुक़सान हुआ और लोकसभा चुनाव में प्रदेश की कुल 29 में से 28 सीटें पार्टी हार गई। नाथ बामुश्किल अपने गढ़ छिंदवाड़ा को बचा पाये। बेटे नकुल नाथ को वह गिने-चुने 35 हज़ार वोटों से जिता पाये जबकि कमलनाथ की जीत का मार्जिन इसे कई गुना ज़्यादा रहा करता था।
ज़मीन का आवंटन निरस्त
कमलनाथ को दूसरा बड़ा झटका उत्तरप्रदेश की योगी आदित्यनाथ सरकार ने दिया। नकुल नाथ 23 मई को सांसद निर्वाचित हुए। छह दिन बाद यूपी सरकार ने नकुलनाथ के ग़ाज़ियाबाद स्थित इंस्टीट्यूट ऑफ़ मैनेजमेंट टेक्नोलॉजी (आईएमटी) कॉलेज की 10 हज़ार वर्गमीटर से ज़्यादा की जमीन का आवंटन निरस्त कर दिया। कमलनाथ और उनके बेटे नकुलनाथ इस मसले को ‘सुलटाने’ के प्रयासों में जुटे बताये गये हैं।
बीजेपी के द्वारा सरकार गिराने की गीदड़ भभकी के बीच नाथ ने 25 जुलाई को बीजेपी के दो विधायकों नारायण त्रिपाठी और शरद कोल को तोड़ लिया था। उधर, विरोधी ख़ेमे ने (केन्द्र सरकार के कथित इशारे पर) कमलनाथ के भांजे रतुल पुरी पर प्रवर्तन निदेशालय ने शिकंजा कस दिया। अगस्ता वैस्टलैंड हेलीकॉप्टर ख़रीद सौदे में 3600 करोड़ की कमीशनबाज़ी के आरोप में रतुल को गिरफ्तार कर लिया गया।
रतुल के बाद कमलनाथ की बहन नीता पुरी और बहनोई दीपक पुरी (रतुल पुरी के माता-पिता) भी ईडी के निशाने पर आ गये। व्यावसायिक सहयोगी संजय जैन और विनीत शर्मा समेत कईयों पर निशाने साधे गये।
रतुल पुरी का दिल्ली के लुटियंस क्षेत्र में स्थित क़रीब 300 करोड़ का बंगला सीज कर दिया गया। ईडी की टीम ने 284 करोड़ की संपत्ति और 254 करोड़ के बेनामी शेयर भी जब्त कर लिये। ईडी की पुरी परिवार और व्यावसायिक सहयोगियों के ख़िलाफ़ कार्रवाई को नाथ की ‘कामयाबी’ (मप्र में बीजेपी के दो विधायकों को तोड़कर झटका देने) से जोड़कर देखा गया।
‘नाथ के ख़िलाफ़ हो रही साज़िश’
उत्तराखंड के पूर्व राज्यपाल और कांग्रेस के वरिष्ठ नेता अजीज़ कुरैशी ने गत दिवस भोपाल में एक बयान जारी कर कहा, ‘1984 के सिख दंगों को लेकर मुख्यमंत्री नाथ के ख़िलाफ़ साज़िश रची जा रही है।’ उन्होंने दावा किया, ‘सिख दंगों में स्वयं उनकी (कुरैशी की) सूचना पर दिल्ली में नाथ ने कुरैशी के सिख मित्रों की मदद की थी। वक्त पर पुलिस को भेजकर सिख दोस्तों को बेक़ाबू और मरने-मारने पर आमदा भीड़ से बचवाया था।’
कुरैशी ने कहा कि सरकारी मशीनरी का दुरूपयोग कर चुनी हुई सरकार के मुखिया कमलनाथ की छवि को धूमिल किया जाना निंदनीय है और लोकतंत्र में ख़तरनाक परंपरा है।
उधर, मध्य प्रदेश बीजेपी ने कुरैशी के आरोपों को सिरे से खारिज किया है। बीजेपी के प्रवक्ता दीपक विजयवर्गीय का कहना है, ‘पाप छिपते नहीं हैं। पाप की सजा एक न एक दिन मिलती है। सिख दंगों में नाथ का हाथ होने के मामले में क़ानून अपना काम कर रहा है, षड्यंत्र अथवा फंसाये जाने के आरोप निरर्थक हैं।’
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