मुख्यमंत्री कमलनाथ के नज़दीकियों के यहाँ रविवार को आईटी छापे मारे जाने के बाद अब राज्य सरकार ने शिवराज सरकार में हुए ई-टेंडर घोटाले पर कार्रवाई शुरू कर दी है। यह मामला मध्य प्रदेश की शिवराज सरकार के बहुचर्चित तीन हजार करोड़ रुपये से ज़्यादा के ई-टेंडर घोटाले से जुड़ा है। इसको लेकर राज्य आर्थिक अपराध अन्वेषण ब्यूरो ने टीसीएस समेत देश की सात नामी-गिरामी कंपनियों के ख़िलाफ़ बुधवार शाम एफ़आईआर दर्ज कर ली। ई-प्रोक्योरमेंट पोर्टल में छेड़छाड़ को लेकर मध्य प्रदेश के जल निगम, लोक निर्माण विभाग, जल संसाधन महकमे और मध्यप्रदेश सड़क विकास निगम के नौकरशाहों और अज्ञात नेताओं के ख़िलाफ भी एफ़आईआर दर्ज की गई है।
राज्य आर्थिक अपराध अन्वेषण ब्यूरो के महानिदेशक के.एन. तिवारी के अनुसार कुल पाँच एफ़आईआर दर्ज की गई हैं। मध्य प्रदेश जल निगम के तीन, लोक निर्माण विभाग के दो, जल संसाधन विभाग के दो, मध्यप्रदेश सड़क विकास निगम के एक और लोक निर्माण विभाग की पीआईयू के एक टेंडर समेत कुल नौ टेंडरों में सॉफ़्टवेयर में छेड़छाड़ को लेकर प्राथमिकी दर्ज की गई हैं।
देश के बेहद प्रतिष्ठित कंपनियों में शुमार टीसीएस के ख़िलाफ़ भी ईओडब्ल्यू ने एफ़आईआर दर्ज की है। इनके अलावा अज्ञात राजनीतिज्ञों और ब्यूरोक्रेट्स को भी एफ़आईआर की जद में लिया गया है।
क्या यह जवाबी कार्रवाई है?
ई-टेंडर घोटाले को लेकर मध्यप्रदेश के ईओडब्ल्यू की इस कार्रवाई को इनकम टैक्स डिपार्टमेंट द्वारा मुख्यमंत्री कमल नाथ के नज़दीकियों के यहाँ रविवार को मारे गये छापे की जवाबी कार्रवाई माना जा रहा है। दरअसल, केन्द्र सरकार की एजेंसी की रिपोर्ट जनवरी में आ चुकी थी, लेकिन कमल नाथ सरकार ने जाँच रिपोर्ट मिलने के बावजूद शिवराज सरकार के कार्यकाल के इस मामले को ठंडे बस्ते में डाल रखा था। इनकम टैक्स डिपार्टमेंट के छापे के बाद आनन-फानन में मध्य प्रदेश सरकार के एक्शन को बीजेपी ने बदले की भावना से उठाया गया क़दम बताया है। इधर, मध्यप्रदेश कांग्रेस के प्रवक्ता नरेंद्र सालूजा ने तंज कसते हुए कहा है, ‘बीजेपी को यह कार्रवाई केवल इसलिये बदला नज़र आ रही है कि मोदी एंड कंपनी को अब मध्य प्रदेश में बार-बार नोट गिनने तथा बीजेपी सरकार में हुए भ्रष्टाचार से जुड़े मामले दर्ज करने में पसीना आ जाने वाला है।’
क्या है ई-टेंडर घोटाला?
बता दें कि मध्य प्रदेश में टेंडर की पूरी प्रक्रिया ऑनलाइन थी, लेकिन फ़ायदा पहुँचाने के चक्कर में इसमें बोली लगाने वाली कंपनियों को पहले ही सबसे कम बोली का पता चल जाता था। शुरुआती तौर पर ई-टेंडर प्रक्रिया में लगभग तीन हज़ार करोड़ के घोटाले की बात सामने आ रही है, लेकिन राज्य में 2014 से लागू ई-टेंडर प्रक्रिया के तहत तत्कालीन शिवराज सरकार में तीन लाख करोड़ रुपए से ज़्यादा के टेंडर दिए गए हैं।
ऐसे पकड़ में आया घोटाला
पिछले महीने ही जाँच एजेंसी ने ईओडब्ल्यू को जो रिपोर्ट सौंपी थी, उसमें यह बताया था कि ई-टेंडर में बदलाव किए गए थे और कई लोगों ने अनाधिकृत रूप से सॉफ्टवेयर के साथ छेड़छाड़ की थी। इसके लिए एजेंसी ने अपनी रिपोर्ट में उन कम्प्यूटर सिस्टम के आईपी नंबर भी बताए हैं, जिसके ज़रिए जल निगम के तीन टेंडरों को हैक किया गया था और फिर छेड़छाड़ करके मनपसंद कंपनी को फ़ायदा पहुँचाया गया। इसके बाद जाँच एजेंसी ने ईओडब्ल्यू से 6 दूसरे टेंडरों के लॉग माँगे थे ताकि जाँच की जा सके।
मध्य प्रदेश स्टेट इलेक्ट्रॉनिक डेवलपमेंट कॉरपोरेशन के सॉफ्टवेयर में सेंधमारी की वजह से तीन हजार करोड़ का यह घोटाला हुआ था। इसके सामने आने के बाद सरकार को साल 2018 में जारी किए गए 9 टेंडर रद्द करने पड़े थे।
कांग्रेस ने पिछले साल मध्य प्रदेश में हुए विधानसभा चुनाव के दौरान इसे बड़ा मुद्दा बनाया था और इस घोटाले को व्यापमं कांड से भी बड़ा बताया था। कांग्रेस अध्यक्ष ने भी अपनी चुनावी सभाओं में ये वादा किया था कि विजय माल्या की तरह ई-टेंडर घोटाले के आरोपियों को देश से भागने नहीं दिया जाएगा और अगर कांग्रेस में सत्ता में आई तो उनके खिलाफ कड़ी कार्रवाई होगी।
इन कंपनियों पर एफ़आईआर
मेसर्स जीवीपीआर लिमिटेड और मेसर्स मैक्स मेंटेना लिमिटेड हैदराबाद, दी ह्यूम पाइप लिमिटेड और मेसर्स जेएमसी लिमिटेड मुंबई, सोरठिया बेलजी प्राइवेट लिमिटेड और मेसर्स माधव इन्फ्रा प्रोजेक्ट लिमिटेड बड़ौदा तथा मेसर्स राजकुमार नरवानी लिमिटेड भोपाल के ख़िलाफ़ एफआईआर की गई हैं। ये सभी कंपनियाँ कंस्ट्रक्शन के क्षेत्र में कार्य करती हैं।
सॉफ़्टवेयर के क्षेत्र में कार्यरत आरमो आईटी सॉल्यूशन प्राइवेट लिमिटेड कंपनी भोपाल के संचालक, मध्यप्रदेश सड़क विकास प्राधिकरण भोपाल के अज्ञात कर्मचारियों तथा राज्य के लोक निर्माण, जल संसाधन और जल विकास निगम के अधिकारियों एवं कर्मचारियों तथा सॉफ़्टवेयर कंपनी एन्ट्रेंस प्राइवेट लिमिटेड बेंगलोर के ख़िलाफ़ भी प्राथमिकी दर्ज हुई है।
ईओडब्ल्यू ने भारतीय दंड संहिता की धारा 120 बी, 420, 458, 471 एवं आईटी एक्ट 2000 की धारा 66 भ्रष्टाचार निवारण (संशोधन) अधिनियम 2018 की धारा सात सहपठित धारा 13 (2) भी आरोपियों के ख़िलाफ़ लगाई है।
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