मध्यप्रदेश में विधानसभा चुनाव जैसे-जैसे नजदीक आ रहे हैं सत्तारूढ़ भाजपा में आंतरिक तकरार तेजी से बढ़ रही है। भाजपा में अकेले 'शो मैन' मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान बने हुए हैं, बाक़ी सबके सब तमाशाई हैं। भोपाल में भाजपा के पूर्व विधायक गिरजाशंकर शर्मा कांग्रेस में शामिल हुए तो ग्वालियर में कांग्रेस से भाजपा में शामिल हुए ज्योतिरादित्य सिंधिया के सामने उनके समर्थक मंत्री तुलसी सिलावट और पूर्व मंत्री इमरती देवी की भाजपा के ही नेताओं ने खुलेआम फजीहत कर दी। बेचारे सिंधिया अपमान का घूँट पीकर रह गए।
बीजेपी से कांग्रेस में पलायन तेज से हो रहा है किन्तु मुख्यमंत्री शिवराज सिंह की सेहत पर इसका कोई फर्क पड़ता नहीं दिखाई दे रहा। उन्हें पता है कि इस मर्तबा पतवार केंद्रीय मंत्री अमित शाह के हाथ में है। वे जगह-जगह अपनी महत्वाकांक्षी 'लाड़ली बहना योजना' के जरिये सूबे में 'फूलों का तारों का सबका कहना है, लाखों हजारों में मेरी बहना है' गाते फिर रहे हैं। उनके लिए सरकार की ओर से सजाये जा रहे मंचों पर 'मेरे भइया, मेरे चन्दा, मेरे अनमोल रतन, तेरे बदले मैं जमाने की कोई चीज न लूँ' जैसे फ़िल्मी गाने गूँज रहे हैं। ग्वालियर में ऐसे ही एक जलसे में कांग्रेस के पूर्व टाइगर ज्योतिरादित्य सिंधिया के समर्थकों की भाजपा के असली नेताओं ने जमकर मकड़ी झड़ा दी। पहले प्रभारी मंत्री तुलसी सिलावट का वेदप्रकाश शर्मा और दूसरे भाजपा नेताओं ने अपमान किया, उनके साथ झूमाझटकी की लेकिन वे शांत रहे लेकिन मंच पर अपने लिए कुर्सी न देखकर पूर्व मंत्री इमरती देवी से नहीं रहा गया। वे सीधे सिंधिया के पास अपनी शिकायत लेकर जा धमकीं और मंच से उतरकर जाने लगीं। तब सिंधिया ने खुद उनका हाथ पकड़कर उन्हें रोका और जाकर एक भाजपा नेता से उनके लिए कुर्सी खाली कराई। सारा नजारा मुख्यमंत्री शिवराज सिंह के सामने हुआ किन्तु वे स्थितिप्रज्ञ बने बैठे रहे। भाजपा के स्थानीय नेताओं ने इसे मुख्यमंत्री का मौन समर्थन समझा और सिंधिया समर्थकों की बेइज्जती करते रहे। मुख्यमंत्री ने सारे घटनाक्रम की ओर कोई ध्यान ही नहीं दिया। सिंधिया की असहजता भी सबके सामने उजागर हुई। एक चश्मदीद के नाते मैंने सिंधिया और उनके समर्थकों के साथ भाजपा के मूल कार्यकर्ताओं के आक्रोश को रेखांकित करने की कोशिश की है। सिंधिया लगता है जैसे-तैसे भाजपा में अपनी लाज बचने में लगे हुए हैं। वे अपने समर्थकों के सम्मान की रक्षा करने में अपने आपको असमर्थ महसूस करने लगे हैं।
आपको याद होगा कि सिंधिया इसी असहजता की वजह से तीन साल पहले कांग्रेस छोड़ भाजपा में शामिल हुए थे। उस समय वे कहते थे कि 'टाइगर अभी ज़िंदा है' लेकिन अब लगने लगा है कि उनके भीतर का टाइगर अब क्षुब्ध है, त्रस्त है, सिंधिया ने भाजपा में अपना समर्थन बढ़ाने के लिए अपने धुर विरोधी कैलाश विजयवर्गीय, पूर्व मंत्री जयभान सिंह पवैया और पूर्व सांसद प्रभात झा के यहाँ भी हाजरी दी लेकिन बात बनी नहीं। प्रदेश में तीन साल पहले भाजपा की सरकार बनवाने वाले केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया को भाजपा के स्थानीय भाजपा नेता पहले ही दिन से अपना नेता मानने के लिए राजी नहीं हैं। शुरू में तो भाजपा में सिंधिया और उनके समर्थकों के साथ 'नई बहू' जैसा व्यवहार किया लेकिन अब पूरी भाजपा का व्यवहार सिंधिया और उनकी पलटन के साथ बदल गया है। भाजपा का एक भी मूल कार्यकर्ता सिंधिया से मिलने उनके महल नहीं जाता। भाजपा का अपना कार्यालय मुखर्जी भवन पहले ही उजड़ चुका है। अब भाजपा यानी केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर हो गए हैं। और ऐसी आशंका जताई जा रही है कि सिंधिया समर्थक मंत्रियों और दूसरे नेताओं की फजीहत के पीछे नरेंद्र सिंह की ही शह है।
भाजपा सिंधिया और उनके समर्थकों के साथ उस 'मौर' (विवाह के समय दूल्हे को पहनाये जाने वाला मुकुट) की तरह व्यवहार कर रही है जिसे विवाह के बाद नदी में विसर्जित कर दिया जाता है। भाजपा की सरकार बनवाने वाले सिंधिया अचानक हाशिये पर हैं। वे केंद्रीय मंत्री ज़रूर हैं लेकिन उनकी हैसियत अब भाजपा के जिला अध्यक्ष के बराबर भी नहीं दिखाई दे रही, भले हो उससे ज़्यादा।
अनेक पूर्व विधायक भाजपा छोड़कर कांग्रेस में शामिल हो गए। पूर्व मंत्री दीपक जोशी से शुरू हुआ ये सिलसिला गिरजाशंकर शर्मा तक आ पहुंचा है और कोई बड़ी बात नहीं कि भाजपा प्रत्याशियों की दूसरी सूची आने के बाद ये सिलसिला और तेज हो जाए।
मुमकिन है कि सिंधिया के साथ आये 22 पूर्व विधायकों में से भी उनके वापस कांग्रेस में वापस लौट जाएँ क्योंकि सिंधिया अपने साथ भाजपा में आये लोगों के मान-सम्मान की हिफाजत नहीं कर पा रहे हैं। दअरसल, सिंधिया अब भाजपा के लिए गले की फाँस बन चुके हैं। भाजपा नेतृत्व को उम्मीद थी कि भाजपा कार्यकर्ता सिंधिया को अपना लेंगे, किन्तु हकीकत में ऐसा हुआ नहीं, हालाँकि बेचारे सिंधिया ने अपने आपको भाजपा का आम कार्यकर्ता साबित करने की पूरी कोशिश की।
जैसे -जैसे विधानसभा चुनाव की घड़ी नजदीक आ रही है मुख्यमंत्री पूरे चुनाव प्रचार अभियान को अपने ऊपर केंद्रित करते जा रहे हैं। शिवराज सिंह चौहान के इस नए अवतार से उनके पुराने संकट मोचक रहे भाजपा के राष्ट्रीय महासचिव कैलाश विजयवर्गीय, केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर और प्रदेश के गृहमंत्री डॉ. नरोत्तम मिश्रा तक हैरान हैं। माना जा रहा है कि मुख्यमंत्री ने अपने तमाम संकटमोचकों को छोड़ केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह का दामन थाम लिया है। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह की बदली भाव-भंगिमा का ही नतीजा है कि प्रदेश में आरएसएस के पुराने प्रचारक हताश होकर अपनी पार्टी बना रहे हैं। संघ प्रमुख डॉ. मोहन भागवत भी इस बगावत को रोकने में नाकाम साबित हुए हैं।
भाजपा के साथ ही संघ में ये बगावत अप्रत्याशित है। अब तक के इतिहास में ऐसा कभी नहीं हुआ। मध्यप्रदेश में कांग्रेस इसलिए मन मोदक फोड़ रही है क्योंकि इस बार उसका मुकाबला संगठित भाजपा के बजाय बिखरी हुई भाजपा से है जिसमें एक शिवराज भाजपा है, एक महाराज भाजपा है और एक नाराज भाजपा है। नाराज भाजपा में भाजपा के उम्रदराज नेता और संघ के पुराने प्रचारक हैं, महाराज भाजपा में महाराज के अपने भक्त हैं और शिवराज भाजपा में वे भाजपाई हैं जो विधानसभा चुनाव में टिकट की आस लगाए बैठे हैं।
मुख्यमंत्री अब प्रदेश में भाजपा की सरकार बनाने के बजाय खुद को मुख्यमंत्री बनाने की दुहाई देते हैं। ऐसी आशंका है कि जिस 'टाइगर' [सिंधिया] की वजह से भाजपा बिना जनादेश के तीन साल पहले सत्ता में आयी थी उसी 'टाइगर' की वजह से वो सत्ताच्युत भी हो सकती है। भाजपा ने 'टाइगर' को मेमना बनाकर गलती की या नहीं, ये आने वाले दिनों में पता चलेगा!
(राकेश अचल फ़ेसबुक पेज से)
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