मध्य प्रदेश विधानसभा की 28 सीटों के लिए हुए उपचुनाव के नतीजे तो 10 नवंबर को आएंगे लेकिन शनिवार को आया इंडिया टुडे-एक्सिस माई इंडिया का एग्जिट पोल बताता है कि शिवराज सिंह चौहान की सरकार को ख़तरा नहीं है। लेकिन जिस तरह के प्रदर्शन की उम्मीद बीजेपी ने ज्योतिरादित्य सिंधिया से लगाई है, वैसा होता नहीं दिख रहा है।
इंडिया टुडे-एक्सिस माई इंडिया का एग्जिट पोल कहता है कि बीजेपी को 28 में से 16-18 जबकि कांग्रेस को 10-12 सीटें मिल सकती हैं। इसका सीधा मतलब यह है कि शिवराज सिंह चौहान की सरकार बची रहेगी क्योंकि अपनी सरकार के बहुमत के लिए उन्हें 8 सीटों पर जीत चाहिए।
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बहुमत का आंकड़ा 115
मध्य प्रदेश विधानसभा में बीजेपी के पास अभी 107 सीटें हैं। जबकि कांग्रेस के पास 87 सीटें हैं। बीएसपी के पास दो, एसपी के पास एक और चार विधायक निर्दलीय हैं। उपचुनाव के बीच में कांग्रेस के एक और विधायक राहुल सिंह लोधी ने इस्तीफा दिया है। इसलिए अभी जोर-आजमाइश 229 सीटों के हिसाब से होगी। ऐसे में स्पष्ट बहुमत का आंकड़ा 115 है।
बीजेपी को चाहिए आठ सीटें
इस हिसाब से बीजेपी को आठ सीटें मिल गईं तो भी वह बहुमत में आ जायेगी। वैसे बीजेपी ने बीएसपी के दो, एसपी के एक और चारों निर्दलीय विधायकों को कमलनाथ सरकार के गिरने के बाद से ही साध रखा है। लेकिन अपने विधायकों के दम पर सरकार चलाने के लिए 8 विधायकों को जिताना ज़रूरी है।
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राज्य की जिन 28 सीटों पर उपचुनाव हुआ, उनमें से साल 2018 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने से 27 सीटें हासिल की थीं। सिर्फ़ आगर सीट बीजेपी के खाते में गई थी।
उपचुनाव वाली 28 सीटों में से 16 ग्वालियर-चंबल संभाग की हैं। वर्ष 2018 के विधानसभा चुनाव में ये सभी 16 सीटें कांग्रेस को मिली थीं। इसे सिंधिया फैक्टर माना गया था। लेकिन इस बार ऐसा होता नहीं दिख रहा है क्योंकि यहां 28 में से भी बीजेपी को 16-18 सीटें दिखाई जा रही हैं जबकि बीजेपी को सिंधिया के कारण यह आंकड़ा बढ़ने की उम्मीद रही होगी।
उपचुनाव में पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ ने जमकर पसीना बहाया है। कांग्रेस ने पूरे प्रचार को ‘बिकाऊ बनाम टिकाऊ’ पर केन्द्रित रखा। जबकि बीजेपी कमलनाथ सरकार के कथित भ्रष्टाचार और उस दौरान राज्य का विकास ठप होने का राग अलापती रही।
बीजेपी ने कांग्रेस के बाग़ी सभी पूर्व विधायकों को टिकट दिया। उधर, कांग्रेस ने बीजेपी के अनेक बागियों पर दांव खेला। पिछले चुनाव में जो कांग्रेस के टिकट पर लड़े थे, वे उपचुनाव में बीजेपी के प्रत्याशी हो गये। जबकि जो बीजेपी के प्रत्याशी रहे थे, वे कांग्रेस के टिकट पर मैदान में नज़र आये।
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