पूर्व केन्द्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया को लेकर मध्य प्रदेश विधानसभा के 2018 के चुनाव का चर्चित नारा ‘माफ करो महाराज, एक बार फिर शिवराज’ को लोग भूले नहीं हैं। अगले माह संभावित राज्य विधानसभा की 27 सीटों के उपचुनाव में पिछले विधानसभा चुनाव जैसे ही हालात बन रहे हैं।
बस अंतर यह है कि विधानसभा चुनाव के दौरान ‘दुश्मन’ रहे शिवराज और ‘महाराज’ (ज्योतिरादित्य) अब ‘एक’ हो चुके हैं। उधर, कमल नाथ और कांग्रेस की सिंधिया से खांटी दुश्मनी हो चुकी है।
इसी साल मार्च में कमल नाथ सरकार का तख्ता पलट हुआ था। तब कांग्रेस के कुल 22 विधायकों ने कांग्रेस का साथ छोड़कर बीजेपी का दामन थाम लिया था। 27 सीटों के लिए होने वाले उपचुनाव की तारीख़ जल्द घोषित हो सकती है। अक्टूबर महीने में ही उपचुनाव की संभावनाएं जताई जा रही हैं।
बीजेपी जोर-शोर से जुटी
तारीख़ घोषित होने से पहले मध्य प्रदेश में उपचुनाव की सरगर्मियां तेज हो गई हैं। बीजेपी पिछले दो महीने से उपचुनाव की तैयारियों में जोर-शोर से जुटी हुई है और मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान भी चैन से नहीं बैठे हैं। उपचुनाव में यदि सबसे ज्यादा किसी की साख दांव पर है तो वो पूर्व केन्द्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया हैं। बीजेपी ज्वाइन करने के बाद से ही वे अपने ‘कार्डस’ पूरी शिद्दत से खेल रहे हैं और बीजेपी उनकी पूरी मदद भी कर रही है।
सिंधिया ने बीजेपी ज्वाइन करने के बाद हाल ही में ग्वालियर-चंबल संभाग में मेगा शो करके अपनी ताकत का मुजाहिरा किया है। सिंधिया और उनके समर्थकों का दावा रहा है कि इस शो के दरमियान 70 हजार से ज्यादा कांग्रेसियों को बीजेपी में शामिल कराया गया है।
कांग्रेस के निशाने पर बीजेपी और शिवराज से कहीं ज्यादा ज्योतिरादित्य सिंधिया एवं कांग्रेस छोड़कर बीजेपी में जाने वाले उनके समर्थक पूर्व विधायक भी हैं। पूर्व मुख्यमंत्री और प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष कमल नाथ के निशाने पर विशेषकर सिंधिया ही हैं।
सिंधिया को घेरने की कोशिश
उपचुनाव से जुड़ा कांग्रेस का कैम्पेन सिंधिया के आसपास ही सिमटा हुआ है। कांग्रेस ने उपचुनाव के लिए ग्वालियर में अपना कैम्प कार्यालय आरंभ किया तो आगाज महारानी लक्ष्मीबाई की समाधि पर जाने से हुआ। सिंधिया राजघराने द्वारा वीरांगना के साथ की गई कथित गद्दारी से जुड़े वृतांत याद किये और कराये गये।
पूर्व मुख्यमंत्री और राज्यसभा के सदस्य दिग्विजय सिंह ने भी दो दिन पहले ग्वालियर दौरे के दौरान महारानी लक्ष्मीबाई की समाधि पर मत्था टेका था। प्रेक्षकों का मानना है कि सिंधिया पर सीधा अटैक और उनके ख़िलाफ़ तीख़ी बयानबाज़ी कमलनाथ और मध्य प्रदेश कांग्रेस को उसी तरह से भारी पड़ सकती है, जैसी कि 2018 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी को पड़ी थी।
बता दें, बीजेपी ने मध्य प्रदेश विधानसभा के चुनाव को सिंधिया पर केन्द्रित रखा था। कांग्रेस से कहीं ज्यादा तीखे राजनीतिक हमले बीजेपी और शिवराज सिंह ने सिंधिया पर बोले थे। बीजेपी को यह रणनीति उलटी पड़ गई थी। क्योंकि तमाम कोशिश के बाद भी वह लगातार चौथी बार सरकार नहीं बना पायी थी।
ग्वालियर-चंबल संभाग में सिंधिया फैक्टर की बदौलत कांग्रेस ने इस क्षेत्र की 34 में से 26 सीटें हासिल कर ना केवल बीजेपी को सत्ता में आने से रोका था, बल्कि कुल 114 सीटें पाकर सात गैर बीजेपी विधायकों को साथ लेकर कमलनाथ की अगुवाई में सरकार बनाई थी।
मध्य प्रदेश कांग्रेस की ओर से चुनाव प्रचार में ‘टिकाऊ और बिकाऊ’ के मुद्दे को भी उछाला जा रहा है हालांकि राज्य में मुद्दों की कमी नहीं है। विशेषकर शिवराज के मुख्यमंत्री के तौर पर चौथे कार्यकाल के पांच-साढ़े पांच महीने मुश्किलों भरे रहे हैं।
मध्य प्रदेश में कोरोना भी कहर ढा रहा है। संक्रमितों की संख्या 66 हजार के करीब पहुंच गई है। अस्पतालों के हाल बदहाल हैं। राजकीय खजाने की हालत बेहद खस्ता है। कर्मचारियों को तनख्वाह कर्ज से बंट पा रही है। अतिवर्षा ने सरकार की मुश्किलें बढ़ा रखी हैं। किसान अत्याधिक परेशान हैं।
कुल मिलाकर कांग्रेस के पास मुद्दों की लंबी फेहरिस्त है। बावजूद इसके मुख्य मुद्दों को छोड़कर मप्र कांग्रेस का पूरा ध्यान सिंधिया को ‘डिफेम’ करने पर है।
कांग्रेस को पेश आएगी मुश्किल
मध्य प्रदेश के वरिष्ठ पत्रकार और राजनैतिक विश्लेषक राकेश दीक्षित मानते हैं कि कमल नाथ और कांग्रेस वही गलती करती नजर आ रहे हैं जो कि साल 2018 के चुनाव में शिवराज एवं बीजेपी ने की थी। बकौल दीक्षित, ‘तब बीजेपी और शिवराज को सिंधिया के ख़िलाफ़ खेला गया कार्ड उलटा पड़ा था और आने वाले वक्त में वैसी ही मुश्किलों का सामना कांग्रेस खेमे को होने की संभावनाएं बन रही हैं।’
मोदी फैक्टर को कैश कराने की तैयारी
मध्य प्रदेश बीजेपी और उसके रणनीतिकार प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को भी उपचुनावों में पूरी तरह से कैश कराये जाने की जुगत में हैं। मुख्यमंत्री शिवराज जहां भी जा रहे हैं, मोदी का गुणगान कर रहे हैं। कोरोना के ख़िलाफ़ केन्द्र सरकार की जंग भी बीजेपी की चुनावी रणनीति का खास हिस्सा है। कांग्रेस से बीजेपी में आये ज्योतिरादित्य सिंधिया भी मोदी की शान में कसीदे काढ़ने में पीछे नहीं रह रहे हैं।
सभी 27 सीटें जीतनी होंगी
मध्य प्रदेश विधानसभा में कुल 230 सीटें हैं। बहुमत के लिए आंकड़ा 116 का है। वर्तमान में कांग्रेस के पास 89 सीटें हैं। यदि उसे अपने दम पर सत्ता में वापसी करनी है तो सभी 27 सीटें जीतनी होंगी। बीजेपी के पास 107 सीटें हैं। बीएसपी, एसपी और निर्दलियों की संख्या 7 है। ऐसे में बीजेपी को अपने दम पर सत्ता में बने रहने के लिए केवल 9 सीटों की आवश्यकता है।
कांग्रेस के पास पुनः सरकार में आने का दूसरा विकल्प कम से कम 20 सीटें जीतना और 2018 में साथ देने वाले बीएसपी, एसपी और चार निर्दलीय विधायकों को पुनः साथ मिलाने का भी है। हालांकि निर्दलीय विधायक कांग्रेस से रूठे हुए हैं। वे खुलेआम कमल नाथ और उनकी अगुवाई में 15 महीने प्रदेश पर राज करने वाली कांग्रेस की सरकार को खुलकर कोसते हैं। कांग्रेस की सरकार चले जाने के बाद कुछ तो खुले आम बीजेपी से गलबहियां भी कर रहे हैं।
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