मध्य प्रदेश सरकार और बीजेपी की गले की हड्डी बन गए “सीधी पेशाब कांड” को रफू करने के प्रयास तेज हो गए हैं। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने गुरुवार को पीड़ित आदिवासी युवक को सीएम हाउस बुलाकर पैर धोये और पीड़ित से माफी मांगी।
एमपी के भाजपा नेता प्रवेश शुक्ला की इस गंदी हरकत ने पूरे भारत को दहला दिया था। फाइल फोटो।
सीधी ज़िले के कुबरी गांव में भाजपा के नेता द्वारा शराब पीने के बाद मानसिक रूप से कमजोर एक आदिवासी युवक पर पेशाब करने का मामला बेहद गर्म है।
मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव के ठीक पहले सामने आये इस मामले को लेकर विरोधी दलों में राज्य की शिवराज सिंह चौहान सरकार और समूची भाजपा को निशाने पर लिया हुआ है।
आदिवासियों को वोट बैंक के तौर पर उपयोग करने, अपमानित करने और अत्याचार के आरोप बीजेपी पर लगाये जा रहे हैं।
मुख्यमंत्री शिवराज सिंह और भाजपा संगठन तमाम सफ़ाई दे रहे हैं। आरोपी को रासुका के तहत जेल भेजा चुका है। बुधवार को उसके घर का अतिक्रमण गिराया गया है।
सीधी पेशाब कांड के पीड़ित और उनके परिजनों को सीएम हाउस में बुलाकर सीएम शिवराज सिंह चौहान ने गुरुवार को “दुख बांटा।” सीएम ने पीड़ित के पैर धोए, शाल ओढ़ाकर सम्मान किया और उसके साथ भोजन भी किया।
सीएम चौहान ने कहा कि घटना के बाद से मेरा मन दु:खी हैं। सीएम ने कहा, “पीड़ित दशरथ आपकी पीड़ा बाँटने का यह प्रयास है। मैं घटना के लिए आपसे माफी भी माँगता हूँ। मेरे लिए जनता ही भगवान है।”
परिवार का हाल जाना
बताया गया है सीएम चौहान ने पीड़ित से पूछा कितने बच्चे हैं और पढ़ाई कर रहे हैं कि नहीं। किसी भी तरह की कोई परेशानी तो नहीं और आगे हो तो मुझसे कहना। इसके बाद सीएम चौहान पीड़ित युवक दशमत को भोजन कराने अंदर ले गए।”कांग्रेस ने लिया आड़े हाथों
इस पूरे मामले में मध्य प्रदेश कांग्रेस ने सीएम शिवराज सिंह और भाजपा को जमकर आड़े हाथों लिया है। मध्य प्रदेश कांग्रेस मीडिया सेल के अध्यक्ष के.के.मिश्रा ने “सत्य हिंदी” से कहा, “पहले बीजेपी नेता ने पाशविकता की हद पार कर पीड़ित के सिर पर पेशाब की और अब सीएम ने राजनीतिक रोटियां सेंकने और वोट बैंक के ख़ातिर अपमानित किया। मिश्रा ने कहा, “सम्मान और माफी मांगने की नौटंकीबाजी में पीड़ित के फ़ोटो सार्वजनिक कर सीएम ने पीड़ित को पूरे समाज एवं देश के समक्ष लज्जित कर दिया है। सीएम का कृत्य पेशाब करने वाले पार्टी नेता से कहीं ज़्यादा घृणित है।” मिश्रा ने आरोपी के खिलाफ अतिक्रमण की कार्रवाई को भी फ़ौरी बताया है।
84 आदिवासी सीटों का “खेल ख़राब”
मध्यप्रदेश की कुल 230 विधानसभा सीटों में 47 आदिवासियों के लिए रिज़र्व हैं। राज्य में क़रीब दो करोड़ आदिवासी हैं। रिज़र्व सीटों के अलावा 37 सीटें और भी ऐसी हैं जहां ट्राइबल वोट जीत-हार में महत्वपूर्ण रोल अदा करता है।
कांग्रेस ने 2018 के विधानसभा चुनाव में 47 रिज़र्व सीटों में से 30 सीटें जीती थीं। जबकि भाजपा को 16 सीटें मिलीं थीं। आदिवासी सीटों की बदौलत ही कांग्रेस ने 114 का आंकड़ा छूकर भाजपा को सत्ता से बाहर किया था।
प्रदेश में 2013 के विधानसभा चुनाव में स्थितयां उलट रहीं थीं। आदिवासी वर्ग के लिए आरक्षित 47 सीटों में से भाजपा ने 31 सीटें जीती थीं, जबकि कांग्रेस के खाते में 15 सीट आयी थीं। बीजेपी के लगातार तीसरी बार सरकार बनाने की एक मुख्य वजह ट्राइबल सीटों की जीत का यह समीकरण भी रहा था।
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