प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने विधानसभा चुनावों के ठीक पहले बीफ़ का मुद्दा उठा कर मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस और उसके अध्यक्ष राहुल गांधी को घेरने की कोशिश की है। उन्होंने तंज करते हुए कहा कि कांग्रेस मध्य प्रदेश में गाय की पूजा करने की बात करती है, पर केरल में उसके कार्यकर्ता बीफ़ खाते हैं। लेकिेन इस मुद्दे पर ख़ुद भारतीय जनता पार्टी की कथनी और करनी में अंतर है। अलग-अलग राज्यों में इस मुद्दे पर पार्टी का अलग-अलग स्टैंड है।
सवाल 'नामदार' से?
मध्य प्रदेश के छिंदवाड़ा में एक चुनाव रैली में मोदी ने रविवार को कहा, ‘कांग्रेस इस राज्य के चुनाव घोषणा पत्र में गाय की पूजा करने की बात करती है। मैं इसके लिए इसकी आलोचना नहीं करूंगा। उसे ऐसा करने का पूरा हक़ है। पर केरल में उनके कार्यकर्ता खुले आम सड़कों पर बछड़े को काटते हैं। वे बीफ़ खाते हैं।’'कन्फ़्यूज़्ड कांग्रेस'
प्रधानमंत्री ने राहुल गांधी का नाम लिए बग़ैर उन पर कटाक्ष किया और इस पर रवैया साफ़ करने को कहा। उन्होंने कहा कि पार्टी के ‘नामदार’ लोगों को कन्फ़्यूज़्ड करते हैं। आख़िर इस मुद्दे पर तो पार्टी का एक ही रवैया होना चाहिए। वे बताएं कि वह रवैया क्या है।
हिंदी इलाक़ों में बीजेपी गाय के नाम पर इस तरह उग्र है कि वह मुसलमानोें को निशाना बनाती है, बीफ़ रखने या खाने वालों, यहां तक कि गाय बेचने ले जा रहे लोगों की पीट-पीट कर हत्या कर देती है। पर गोवा, केरल और पूर्वोत्तर में यह बीफ़ को लोगों की निज़ी पसंद क़रार देती है।
बीफ़ के कारण हत्या
पर सवाल उठता है कि ख़ुद मोदी की पार्टी का इस पर क्या रवैया है। बीफ़ के मुद्दे पर बीजेपी का अलग-अलग राज्यों में अलग-अलग स्टैंड होता है। हिंदी पट्टी में वह 'प्रखर गोभक्त' की छवि के लिए काम करती है। वह इस हद तक चली जाती है कि उसके कार्यकर्ता बीफ़ खाने या रखने के आरोप में मुसलमानों कोे निशाना बनाती है, अख़लाक़ और पहलू खां जैसे लोगों को मार डालती है। वहां की बीजेपी सरकारें अभियुक्तों को पकड़ने और उन्हें सज़ा दिलाने में बहुत अधिक दिलचस्पी नहीं दिखाती है।
बीजेपी के लोग गोवा में खुले आम बीफ़ खाते हैं और इसका समर्थन भी करते हैं। यहां रोज़ाना 30 टन से 50 टन बीफ़ की खपत है। नए साल के उत्सव या दूसरे समय यह माँग बढ़ भी जाती है। साल 2016 में बीफ़ की कमी हो गई तो बीजेपी के लोगों ने ही खूब बावेला मचाया था।
सत्तारूढ़ दल बीजेपी के विधायक माइकल लोबो ने खुले आम अपनी ही सरकार की आलोचना की और कहा कि हर कीमत पर बीफ़ की आपूर्ति बढ़ाई जानी चाहिए। उन्होंने विधानसभा में यह मुद्दा उठाया और अपनी ही सरकार की जम कर खिंचाई की।
इस पर राज्य के पशुपालन मंत्री मॉविन गोदिन्यो को सफ़ाई देनी पड़ी थी। उन्होंने कहा था कि बीफ़ की कमी नहीं होने दी जायेगी। उन्होंने सदन को आश्वस्त करते हुए कहा था कि यदि सरकारी क़त्लखानों से बीफ़ की सप्लाई पूरी नहीं होगी, तो उसे दूसरे राज्यों से मँगाया जायेगा।
यह मामला इतना बढ़ा कि राज्य के मुख्यमंत्री मनोहर पर्रीकर ने लोगों को भरोसा दिलाया कि उन्हें बीफ़ मिलेगा और सरकार इसका इंतज़ाम करेगी।
इसी तरह जब वहां विधानसभा चुनाव हुए तो बीफ़ एक राजनीतिक मुद्दा बन गया। उस समय बीजेपी के राज्य नेतृत्व ने कहा था कि यदि उनकी पार्टी की सरकार बनी तो कम कीमत पर अच्छे क्वालिटी का बीफ़ मुहैया कराया जायेगा।
मैं बीफ़ खाता हूं: बीजेपी मंत्री
यह मामला गोवा तक सीमित नहीं है। केंद्रीय मंत्री किरेन रिजिजू खुले आम कह चुके हैं कि वे बीफ़ खाते हैं। उन्होंने यह भी कहा था कि बीफ़ खाने की वजह से उनके हिन्दुत्व पर कोई असर नहीं पड़ेगा। पूर्वोत्तर और बीफ़
बीजेपी ने पूर्वोत्तर राज्यों में भी यही रवैया अपना रखा है। मणिपुर, अरुणाचल जैसे राज्यों में वह बीफ़ खाने का विरोध नहीं करती है। वहां उसका कहना होता है कि यह लोगों की निज़ी पसंद है। यही स्थिति मिज़ोरम में है। वहां भी राज्य विधानसभा का चुनाव होने को है। पर इस ईसाई बहुल राज्य में बीजेपी बीफ़ का मुद्दा नहीं उठा रही है। मोदी से कोई पूछे कि इस पर उनका क्या स्टैंड है। बीजेपी के लिए बीफ़ ध्रुवीकरण का मुद्दा है। पार्टी गैयापट्टी में ही गाय की बात करती है ताकि इस मुद्दे पर वह हिंदुओं को अपनी ओर ला सके और कांग्रेस जैसे विपक्षी दल को कटघरे में खड़ा कर सके। यह संवेदनशील मुद्दा उनके लिए वोट खींचने का ज़रिया इन्हीं राज्यों में है। पर वह केरल, गोवा या पूर्वोत्तर के राज्यों में यह मुद्दा इस तरीके से नहीं उठाती है। वजह साफ़ है, वहां गाय के नाम पर ध्रुवीकरण करने या बीफ़ खाने वालों को निशाना बनाने से मामला उल्टा पड़ सकता है।
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