तमाम आरोप-प्रत्यारोपों के बीच शिवसेना ने भारतीय जनता पार्टी से कह दिया है कि महाराष्ट्र में गठबंधन तभी होगा जब उसे बड़ा भाई माना जाएगा। शिवसेना ने स्पष्ट कर दिया है कि 1995 के बाल ठाकरे के फ़ॉर्मूले के आधार पर ही बीजेपी के साथ गठबंधन किया जा सकता है। इस फ़ॉर्मूले के अनुसार विधानसभा में शिवसेना-बीजेपी में सीटों का बंटवारा 171-117 सीटों का होता था। लेकिन 2014 में मोदी लहर में लोकसभा चुनाव में मिली बड़ी जीत के बाद बीजेपी, शिवसेना को 171 तो दूर 152 सीटें भी देने को तैयार नहीं हुई और गठबंधन टूट गया।
विधानसभा सीटों को लेकर फंसा पेच
2014 या उससे पहले के लोकसभा चुनाव में प्रदेश की कुल 48 लोकसभा सीटों में से शिवसेना 22 और बीजेपी 26 सीटों पर चुनाव लड़ती आई है। बताया जा रहा है कि इस बार बीजेपी, शिवसेना को ख़ुश करने के लिए 24 सीटें देने को भी राजी हो गई है लेकिन वह विधानसभा चुनावों में शिवसेना को 171 तो क्या 150 सीटें भी देने को तैयार नहीं है और एक बार फिर गठबंधन का पेच फंस गया है।
शिवसेना चाहती है कि गठबंधन में मुख्यमंत्री का पद उसके लिए रहना चाहिए, भले ही उसकी सीटें बीजेपी से कम रहें। 1995 में दोनों पार्टियों में तय हुआ फ़ॉर्मूला यही था लेकिन पिछले विधानसभा चुनाव में यह समझौता टूट गया।
विधानसभा चुनाव के बाद दोनों दलों ने साथ मिलकर सरकार बनाई लेकिन मुख्यमंत्री बीजेपी का ही बना। इस घटना के बाद से ही शिवसेना नाराज़ है क्योंकि प्रदेश में उसके बड़े भाई होने का रुतबा जाता रहा।
- बीजेपी को लोकसभा चुनाव में अच्छा प्रदर्शन बरक़रार रखने के लिए शिवसेना की ज़्यादा ज़रूरत है, इसलिए इस सौदेबाजी में शिवसेना अपना हाथ ऊपर रखना चाहती है।
नहीं बन पा रही बात
बीजेपी, शिवसेना के साथ गठबंधन के लिए सारी कोशिशें कर रही है और इसी सिलसिले में उसने चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर को भी मुंबई में उद्धव ठाकरे से मिलने भेजा था। उस समय ऐसा संदेश निकला था कि प्रशांत किशोर अपने आंकड़ों के खेल से शिवसेना नेताओं को मनाने में सफल हो गए हैं। लेकिन दो दिन बाद ही बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह और मुख्यमंत्री देवेंद्र फडनवीस का पुणे के एक कार्यक्रम में बयान आया कि बीजेपी राज्य में सभी 48 सीटों पर लड़ेगी। इसके अगले ही दिन शिवसेना ने इसके ख़िलाफ़ सामना में संपादकीय लिखकर बीजेपी को घमंडी बता दिया।
नायडू के धरने में पहुँचे संजय राउत
तीन दिन पहले ही शिवसेना प्रवक्ता संजय राउत दिल्ली में चंद्रबाबू नायडू के धरने में बीजेपी के ख़िलाफ़ खड़े दिखे। लेकिन अब शिवसेना ने 1995 मॉडल को आधार बताकर अपना प्रस्ताव बीजेपी आलाकमान के पास भेज दिया है। बता दें कि महाराष्ट्र में पहली बार बीजेपी और शिवसेना गठबंधन की सरकार 1995 में बनी थी और मुख्यमंत्री का ताज शिवसेना के मनोहर जोशी के सिर सज़ा था।
क्या बीजेपी मानेगी शिवसेना की ख़्वाहिशें?
शिवसेना ने बीजेपी के साथ गठबंधन करने के लिए पहली शर्त यह रखी है कि फडणवीस की सरकार भंग कर दी जाए और महाराष्ट्र में विधानसभा और लोकसभा चुनाव एक साथ कराए जाएँ। दूसरी शर्त यह है कि मुख्यमंत्री का पद उसे दिया जाए। शिवसेना, बीजेपी से महाराष्ट्र विधानसभा की कुल 288 सीटों में से 150 सीटें चाहती है। इसी तरह से वह लोकसभा की 48 सीटों में से 25 से 26 सीटों की डिमांड रख रही है।
शिवसेना की इन माँगों को बीजेपी आसानी से मानने वाली नहीं है, क्योंकि 2014 के विधानसभा चुनाव में शिवसेना की इसी जिद के चलते बीजेपी अकेले चुनावी मैदान में उतरी थी। तब बीजेपी सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी थी और बाद में शिवसेना को उसके साथ मिलकर सरकार बनानी पड़ी थी।
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