इस बार लोकसभा चुनावों में बीजेपी ने उम्रदराज नेताओं को चुनाव लड़ने के लिये पार्टी का टिकट नहीं दिया तो सवाल उठा कि क्या यह सब उम्र के फ़ॉर्मूले के तहत किया गया या फिर किसी और मक़सद से। इस सवाल का जवाब अभी तक पार्टी स्पष्ट तौर पर दे नहीं पाई है। लेकिन पार्टी के इस फ़ैसले को पार्टी के ही बुजुर्ग नेता पचा नहीं पा रहे हैं। पार्टी के इस बर्ताव पर उनके आँसू थम नहीं रहे हैं।
पिछले लोकसभा चुनावों के बाद बीजेपी ने जिस मार्गदर्शक मंडल का गठन किया था, उसमें लाल कृष्ण आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी के साथ कांगड़ा से सांसद शांता कुमार को भी रखा गया था। लेकिन 5 साल तक बीजेपी ने इन नेताओं से कोई सलाह-मशविरा तक नहीं किया।
इस बार बीजेपी ने इन नेताओं को टिकट नहीं दिया है। शांता कुमार अपना टिकट कटने के बाद पार्टी के कद्दावर नेता लाल कृष्ण आडवाणी से मिलने गये तो लाल कृष्ण आडवाणी की आँखों में आँसू देख कर उन्हें बहुत पीड़ा हुई।
उन्होंने कहा, ‘देश में मुसलिम आक्रांता, अंग्रेज आए तो उनके अधिकतर सेवक 25 से 35 साल के युवा थे। उस दौर में भी 80 साल के वीर कुंवर सिंह हाथ कटने के बावजूद अंग्रेजों से लोहा लेकर अमर हो गए...मेरा मानना है कि सेवा में उम्र मानक नहीं होती।’
बीजेपी सांसद ने कहा कि पार्टी की ओर से चुनाव लड़ने के लिये 75 साल की आयु सीमा निर्धारित की गई है। जिससे कई वरिष्ठ बीजेपी नेता इस बार चुनाव लड़ने से इस बार महरूम हो गये। मौजूदा सांसदों तक को पार्टी ने टिकट नहीं दिया।
शांता कुमार ने कहा कि पार्टी कार्यकर्ता होने के नाते मैंने इस फ़ैसले को स्वीकार तो कर लिया लेकिन एक लेखक होने के नाते मेरा मानना है कि चुनाव लड़ने में आयु सीमा निर्धारण का औचित्य ही नहीं है। उन्होंने कहा कि पार्टी में उम्रदराज हो चुके कई नेताओं ने पार्टी को अपना जीवन दिया है। राष्ट्र की सेवा में उनका योगदान अनुकरणीय है लेकिन उन्हें बुजुर्ग कहकर नजरअंदाज नहीं किया जा सकता।
वरिष्ठ नेता ने बताया कि मैं पिछला चुनाव नहीं लड़ना चाहता था लेकिन राजनाथ सिंह जी ने मुझे बाध्य कर दिया। इस बार भी मैंने पहले ही चुनाव नहीं लड़ने की घोषणा कर दी थी।
हिमाचल के मुख्यमंत्री रहे शांता कुमार मानते हैं कि राजनीति का तेज़ी से अवमूल्यन हुआ है। हालात यह हैं कि नेताओं की मंडी सजी हुई है। टिकट ही निष्ठा का पैमाना बन गया है। जब राजनीति इस स्तर तक पहुँच जाए तो मन में सवाल उठता है कि क्या शहीदों के सपनों का भारत ऐसे ही बनेगा?
शांता कुमार ने कहा कि नब्बे के दशक तक तो सियासत में सब ठीक था। इसके बाद लोकसभा, शोकसभा और शोरसभा बन गई। एक दिन मैंने आडवाणी जी को दर्शक गैलरी की ओर दिखाया, जहाँ कार्यवाही देखने आया एक छात्र सदन में शोर-शराबे के कारण हमें देखकर मुस्कुरा रहा था। इसके बाद हम दोनों सदन से बाहर निकल आए।
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