Kerala: Congress President Rahul Gandhi holds a roadshow in Wayanad after filing nomination. Priyanka Gandhi Vadra and Ramesh Chennithala also present pic.twitter.com/kAW08X22u0
— ANI (@ANI) April 4, 2019
वायनाड में 49 फ़ीसदी मतदाता हिंदू हैं जबकि क़रीब 27 फ़ीसदी मुसलमान और 22 फ़ीसदी ईसाई मतदाता हैं। कांग्रेस को लगता है कि ज़्यादातर मुसलमान और ईसाई मतदाता ही नहीं बल्कि हिंदू वोटर भी उसके साथ हैं।
इस लिहाज़ से वायनाड सीट को कांग्रेस की सुरक्षित सीट मानी जा सकती है। ऐसे में सवाल उठता है कि क्या राहुल गाँधी ने अपने लिए सुरक्षित सीट तलाशी है?
क्या अमेठी में हार का डर?
अमेठी के साथ ही वायनाड सीट से भी चुनाव लड़ने पर बीजेपी आरोप लगाती है कि अमेठी सीट से केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी से तगड़े मुक़ाबले की वजह से ही राहुल गाँधी ने दक्षिण की एक ‘सुरक्षित’ सीट से चुनाव लड़ने का फ़ैसला किया है। लेकिन राहुल ने इन आरोपों को ख़ारिज़ कर दिया था। वायनाड से चुनाव लड़ने के सवाल पर राहुल ने हाल ही में कहा था, 'दक्षिण भारत में एक भावना है कि मौजूदा सरकार में उन पर ध्यान नहीं दिया जा रहा है। दक्षिण भारत को लगता है कि नरेंद्र मोदी जी उससे शत्रुता का भाव रखते हैं। उनको लगता है कि इस देश की, निर्णय लेने की प्रक्रिया में उनको शामिल नहीं किया जा रहा है।' राहुल ने कहा,“
मैं दक्षिण भारत को संदेश देना चाहता था कि हम आपके साथ खड़े हैं। इसलिए मैंने केरल से चुनाव लड़ने का फ़ैसला किया।
राहुल गाँधी
वायनाड से चुनाव लड़ने की कई वजहें
राजनीति के जानकारों के मुताबिक़, राहुल गाँधी के वायनाड से चुनाव लड़ने के पीछे कई कारण हैं।- राहुल गाँधी दक्षिण से चुनाव लड़कर यह संदेश देना चाहते हैं कि उनकी प्राथमिकताओं में कहीं भी दक्षिण को नज़रअंदाज़ नहीं किया गया है।
- दक्षिण में बीजेपी सिर्फ़ कर्नाटक को छोड़कर बाक़ी जगह कमज़ोर है। राहुल की रणनीति है कि दक्षिण के कार्यकर्ताओं और सहयोगी दलों में उत्साह बढ़ाया जाए।
- कांग्रेस आलाकमान को लगता है कि वायनाड से चुनाव लड़ने की वजह से पार्टी को तीन राज्यों, केरल, कर्नाटक और तमिलनाडु में सीधा फ़ायदा होगा।
- कांग्रेस नहीं चाहती कि बीजेपी पिछले दिनों हुए सबरीमला आंदोलन का राजनीतिक लाभ उठाए।
- राहुल से पहले उनकी माँ सोनिया गाँधी और दादी इंदिरा गाँधी भी दक्षिण से चुनाव लड़ चुकी हैं।
सोनिया और इंदिरा भी गयी थीं
बता दें कि गाँधी परिवार में इससे पहले सोनिया गाँधी और इंदिरा गाँधी भी दक्षिणी राज्यों से चुनाव लड़ चुकी हैं। 1999 में सोनिया गाँधी अपना पहला चुनाव रायबरेली के साथ कर्नाटक के बेल्लारी सीट से भी लड़ा था। इसी तरह इंदिरा गाँधी 1980 में रायबरेली के साथ आंध्रप्रदेश की मेडक सीट से एक साथ चुनाव लड़ा था। तब दोनों नेताओं ने ही जीत दर्ज की थी।
अपनी राय बतायें