लंबे समय से इस पर बहस हो रही थी कि उत्तर प्रदेश में सपा-बसपा और कांग्रेस साथ मिलकर चुनाव लड़ेंगे या नहीं। अब यह तय हो गया है कि कांग्रेस इस गठबंधन से बाहर रहेगी।
बीजेपी के वरिष्ठ नेता संघप्रिय गौतम ने एक बार फिर नरेंद्र मोदी पर हमला बोलते हुए कहा है कि राम मंदिर या मोदी के कामकाज के भरोसे अगला चुनाव नहीं जीता जा सकता।
जहां बीजेपी और प्रधानमंत्री मोदी 2019 की चुनाव तैयारियों में ज़ोर शोर से लग चुके हैं, विपक्षी दल बहुत पीछे छूट चुके हैं। वे अभी भी जनता के असंतोष के भरोसे ही हैं।
क्या इस साल देश अपने पुराने रास्ते ल आएगा? क्या संघ हिन्दू राष्ट्र बनाने की दिशा में आगे बढ़ पाएगा? क्या राहुल ब्रांड मोदी को पूरी तरह खारिज करा पाएंगे? नया साल इन सवालों का उत्तर देगा।
बीजेपी ने नए साल के 100 दिनों में पीएम मोदी के जरिये 123 लोकसभा सीटों के मतदाताओं तक पहुँचने की रणनीति तैयार की है। इन 123 सीटों पर पार्टी को पिछले चुनाव में हार मिली थी।
हार्दिक पटेल ने यूपी में बेजीपे के ही मुद्दों पर उसे घेरा, योगी-मोदी को लिया निशाने पर सरकार को कटघरे में खड़ा किया। क्या वे वहां अपनी सियासी ज़मीन तलाश रहे हैं?
क्या बीजेपी को 2019 लोकसभा चुनाव में किसानों के ग़ुस्से का डर है? यदि ऐसा नहीं है तो वह अब क्यों किसानों को लुभाने की तैयारी में जुट गई है? अब ज़ोर-शोर से बैठकें क्यों शुरू कर दी है?
महाराष्ट्र कांग्रेस के नेता राधे कृष्ण पाटिल के बेटे सुजॉय ने संकेत दिया है कि वे पार्टी छोड़ सकते हैं, इससे पार्टी नेतृत्व परेशान है। इसका असर पूरी पार्टी पर पड़ सकता है।
कानून मंत्री ने न्यायपालिका में आरक्षण देने की बात तो कही है लेकिन अब जब सरकार के सिर्फ़ कुछ महीने शेष हैं तो ऐसे में यह चुनाव में वोट बँटोरने के सिवा और कुछ नहीं है।
एनडीए से नाता तोड़ने वाली शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे की धमकी को लेकर आरएसएस के मुखपत्र तरुण भारत में छपे एक लेख के ज़रिए ठाकरे की जमकर आलोचना की गई है।
क़ानून मंत्री रविशंकर प्रसाद अब निचली अदालतों में न्यायाधीशों की नियुक्ति में भी आरक्षण की वकालत कर रहे हैं। क्या पाँच राज्यों में हार ने बीजेपी को नई रणनीति के लिए मजबूर किया है?