अमित शाह के नामांकन में दिग्गजों के जमावड़े के बाद यह सवाल उठ रहा है कि क्या अमित शाह ने ख़ुद को प्रधानमंत्री मोदी के उत्तराधिकारी के रूप में देखना शुरू कर दिया है?
उत्तराखंड में यह रोचक संयोग है कि पिछले दो चुनावों में जिस दल की राज्य में सरकार रही, उसे लोकसभा में शून्य अंक मिला। 2009 में बीजेपी और 2014 में यहाँ कांग्रेस सता में थी और दोनों को ज़ीरो सीट मिली थी।
कांग्रेस महासचिव प्रियंका गाँधी ने यह साफ़ कर दिया है कि वह वाराणसी में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को चुनौती देने को तैयार हैं। यदि ऐसा हुआ तो दोनों ही पार्टियों के चुनाव प्रचार पर क्या असर पड़ेगा?
रायबरेली में कांग्रेस कार्यकर्ताओं ने जब कहा कि आप रायबरेली से चुनाव लड़ें तो इसके जवाब में प्रियंका गाँधी ने कहा कि अगर वे बनारस से चुनाव लड़ती हैं तो कैसा रहेगा? कहीं वह मोदी के ख़िलाफ़ तो नहीं उतरेंगी? देखिये वरिष्ठ पत्रकार आशुतोष और शैलेष की चर्चा।
पश्चिम उत्तर प्रदेश में आश्चर्यजनक रूप से हर बार मुसलिम राजनीति के केंद्र में रहने वाले इन इलाक़ों में रहस्यमय चुप्पी का नज़ारा है। शायद यह पहली बार है कि ज़्यादातर दलों से सबसे कम मुसलिम प्रत्याशी इस चुनाव में उतरे हैं।
लोकसभा चुनाव के पहले चरण में पश्चिमी उत्तर प्रदेश की 8 सीटों पर 11 अप्रैल को वोट डाले जाएँगे।राजनीतिक दृष्टि से पश्चिमी उत्तर प्रदेश बेहद महत्वपूर्ण इलाक़ा है।
पूर्वी उत्तर प्रदेश के प्रभारी महासचिव प्रियंका गाँधी वाड्रा को डर है कि इस बार अमेठी में उनकी ग़ैर-मौजूदगी से कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गाँधी की मुश्किलें बढ़ सकती है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के भाषण से यह बात साफ़ हो गई है कि चुनाव राष्ट्रवाद, राष्ट्रीय सुरक्षा, देशप्रेम, पाकिस्तान विरोध तथा आतंकवाद के मुद्दों पर लड़ा जाएगा।
उत्तर प्रदेश के राजनीतिक हालात देखकर ऐसा लगता है कि प्रदेश में बना गठबंधन और कांग्रेस, दोनों एक-दूसरे का नुक़सान करने और बीजेपी को फायदा पहुँचाने में लगे हैं।
लोकसभा चुनाव में बीजेपी की तरफ़ से ज़्यादातर सीटों पर उम्मीदवार उतारे जा चुके हैं। उसके उम्मीदवारों की लिस्ट को देखते हुए लगता है कि इस लोकसभा में बीजेपी पूरी तरह मुसलिम मुक्त होगी।
बीजेपी के कई ऐसे दिग्गज नेता हैं जो वर्षों तक पार्टी के टिकट पर चुनाव लड़ते रहे और संगठन से लेकर सरकार में कई बड़े पदों पर रहे। लेकिन इस बार वे चुनावी समर से बाहर हैं।