चुनाव बाद यदि एनडीए ज़रूरी आँकड़े जुटा भी लेती है तो क्या नरेंद्र मोदी दुबारा प्रधानमंत्री बनेंगे? यह सवाल इसलिए कि प्रधानमंत्री पद के लिए बार-बार नितिन गडकरी का नाम उछलता रहा है। इंटरव्यू में ऐसा ही एक सवाल जब गडकरी के सामने आया तो हर बार की तरह इस बार भी उन्होंने इस बात को खारिज कर दिया कि वह प्रधानमंत्री पद की दौड़ में हैं। गडकरी ने कहा कि प्रधानमंत्री पद के लिए वह छुपे हुए रुस्तम नहीं हैं और इसके लिए न तो कोई एजेंडा है और न ही ऐसी कोई इच्छा या ऐसा कोई सपना है।
केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी ने एनडीटीवी को दिये इंटरव्यू में कहा है कि राजनीति में दो और दो मिलकर हमेशा चार नहीं होते। बहुमत नहीं मिलने की स्थिति में गठबंधन के साथियों पर निर्भरता और दूसरा चेहरा चुनने के सवाल पर गडकरी ने साफ़ तौर पर कह दिया कि नरेंद्र मोदी हमारे नेता हैं और वही प्रधानमंत्री बनेंगे। हालाँकि उन्होंने यह भी जोड़ा कि बीजेपी के नेतृत्व वाला गठबंधन अच्छे अंतर से बहुमत लाएगा और मोदी के नेतृत्व में सरकार बनाएगा।
कई चुनावी विश्लेषणों और ओपिनियन पोल ने बीजेपी की सीटें 2014 से काफ़ी कम होने की संभावना जताई है और सरकार बनाने के लिए बीजेपी को एनडीए के घटक दलों पर निर्भर रहना पड़ सकता है। ऐसे में प्रधानमंत्री पद के लिए दूसरा चेहरा हो सकता है।
बहुमत नहीं मिल सकता है: राम माधव
हाल ही में बीजेपी के वरिष्ठ नेता राम माधव ने ब्लूमबर्ग को दिये एक इंटरव्यू में कहा था कि इस लोकसभा चुनाव में बीजेपी बहुमत से पीछे रह सकती है। उनका यह बयान ऐसे समय में सामने आया था जब ख़ुद नरेंद्र मोदी, अमित शाह और अरुण जेटली जैसे तमाम नेता दावा करते रहे हैं कि पार्टी अपने दम पर बहुमत हासिल कर लेगी। हालाँकि उन्होंने कहा कि हालाँकि एनडीए को पूर्ण बहुमत मिलेगा।
गडकरी का नाम चर्चा में क्यों?
गडकरी आरएसएस के काफ़ी क़रीबी माने जाते हैं। वह संघ की कृपा से ही 2009 में पार्टी अध्यक्ष बने थे। फिर वह एकमात्र मंत्री है जिनके काम की तारीफ़ उनके विरोधी भी करते हैं। उनकी अगुआई में हाई वे का काम काफ़ी बेहतर हुआ है। वह अक़ेले मंत्री हैं जो प्रधानमंत्री से अलग राय कैबिनेट में रखते हैं। मोदी के बारे में मशहूर है कि वह किसी की नहीं सुनते, सारे गठबंधन के सहयोगी उनसे नाराज़ रहते हैं। त्रिशंकु लोकसभा होने पर बीजेपी को सरकार बनाने के लिए सहयोगी दलों की ज़रूरत होगी तो मोदी की जगह वह किसी ऐसे नेता को पीएम के तौर पर पसंद करेंगे जो सबको साथ लेकर चल सके। संघ को भी ऐसा ही नेता पसंद आएगा। गडकरी उसकी पहली पसंद होंगे।
पार्टी नेतृत्व से रहे हैं खफ़ा!
बता दें कि पिछले कुछ महीनों से नितिन गडकरी पार्टी नेतृत्व वह पार्टी लाइन या मोदी अमित शाह लाइन के ख़िलाफ़ ख़ूब बोल रहे हैं। तीन राज्यों, मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ में चुनाव हारने के बाद गडकरी ने कहा था कि जीत के तो ढेरों बाप होते हैं पर हार अनाथ होती है और इसके लिए नेतृत्व को ज़िम्मेदारी लेनी चाहिए। गडकरी ने तो यह भी सलाह दे दी थी कि लीडरशिप का संगठन के प्रति भरोसा तभी साबित होगा जब वह हार की भी ज़िम्मेदारी लेगा। तब मीडिया में यह संदेश गया कि शायद वह मोदी और अमित शाह पर निशाना लगा रहे थे। हालाँकि बाद में उन्होंने इस बात का खंडन किया कि वह किसी को निशाना बना रहे हैं। उन्होंने कहा कि मीडिया उनकी बातों को तोड़-मरोड़ कर पेश कर रहा है। हालाँकि कुछ ही दिन के बाद वह फिर बोल पडे़ कि अगर सांसद और विधायक काम नहीं कर रहे हैं तो पार्टी अध्यक्ष को ही बोला जाएगा।
नेतृत्व बदलने की माँग भी उठी थी
मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ में चुनाव के बाद बीजेपी के अंदर से यह आवाज़ उठी थी कि गडकरी को नेतृत्व सौंप देनी चाहिए। महाराष्ट्र के बडे़ किसान नेता किशोर तिवारी और बीजेपी के पूर्व उपाध्यक्ष संघप्रिय गौतम इस बाबत बात कर चुके हैं। कुछ ख़बरें तो यह भी आईं कि आरएसएस मोदी सरकार के प्रदर्शन से खुश नहीं है। राममंदिर पर मोदी सरकार भी ज़्यादा कुछ नहीं कर पायी है।
नेहरू और इंदिरा की तारीफ़ भी की थी
सबको मालूम है कि मोदी जवाहरलाल नेहरू और इंदिरा गाँधी की तीखी आलोचना का कोई भी मौक़ा नहीं छोड़ते। लेकिन गडकरी ने दोनों नेताओं की तारीफ़ कर दी थी। चार महीने पहले ही जनवरी में नागपुर के एक कार्यक्रम में नितिन गडकरी ने कहा कि इंदिरा गांधी महिला सशक्तीकरण की प्रतीक हैं। उन्होने कहा, 'इस देश में इंदिरा गांधी जैसी नेता भी हुई हैं, जो अपने समय के पुरूष दिग्गजों से बेहतर थी। क्या वह आरक्षण से आगे बढ़ी थीं?' इसी दौरान उन्होंने यह भी कहा था कि 'मैं नेहरू को पसंद करता हूँ। वह कहते थे कि भारत एक देश नहीं, जनसंख्या है।’
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