प्रधानमंत्री नरेेंद्र मोदी चुनाव सभाओं में काला धन, बेरोज़गारी, किसानों के हाल पर कोई बात नहीं कर रहे हैं। वह देश की सुरक्षा के ख़तरे को मुद्दा बनाने में सफल हैं। लोग सभाओं में उन्हें अभी भी सुनने आ रहे हैं। विपक्ष को मर्म समझ नहीं आ रहा है। किसी भी सर्वेक्षण में मोदी की संभावित सीटें कम हुई भले ही हुई दिखें, अभी भी वे सबसे कहीं ज्यादा हैं! भारत में करीब 30 करोड़ स्मार्ट फोन स्तेमाल में हैं। यह व्यवसायिक प्रमाणित डाटा है। कई लोग दो-तीन फोन भी रखते हैं, पर वे 10 प्रतिशत से ज्यादा नहीं हैं। यह संख्या करीब 15 प्रतिशत सालाना की दर से बढ़ रही है।
साल 2017 में ही यह आँकड़ा आ गया था कि भारत में क़रीब 20 करोड़ लोग व्हाट्सऐप का उपयोग करते हैं। अब यह संख्या (अनुमानित) 25 करोड़ जा पहुँची है, जो व्हाट्सऐप के बिज़नेस के हिसाब से दुनिया के किसी भी देश में इस्तेमाल होने वाली सबसे बड़ी संख्या है।
यह भी अनुमान ही है, पर बीजेपी-मोदी-संघ-तमाम अन्य हिंदू संगठन-धार्मिक मठ-मंदिर, सेक्ट आदि क़रीब एक मिलियन यानी 10 लाख के आसपास व्हाट्सऐप ग्रुप चलाते हैं। इनमें से बहुत सारे सदस्य कई कई ग्रुपों में होते हैं, फिर भी ये करीब 15 करोड़ लोगों तक पहुँच रखते हैं। कांग्रेस ने बहुत बाद में आईटी सेल के महत्व को समझा। आम आदमी पार्टी वाले इसे शुरू से समझते हैं, इसीलिये वे कम से कम दिल्ली में बीजेपी के मुक़ाबिल टिके हुए हैं। उनके पास भी कई हज़ार व्हाट्सऐप ग्रुप हैं, जिनमें सुबह सुबह केजरीवाल पहुँच जाते हैं। बीजू जनता दल, तृणमूल कांग्रेस, तेलुगु देशम पार्टी, शिवसेना और वामपंथी पार्टियाँ भी यहाँ सक्रिय हुए हैं। पर सारे ग़ैर भाजपाई दल मिलकर भी बीजेपी के सामने इस मामले में निहायत ही बौने हैं।
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बीजेपी आई टी सेल अब फ्रैंकस्टीन मॉन्सटर बन चुका है, यह मेरी परिकल्पना से परे है। 2014 के चुनाव के पहले ही आईटी सेल गॉधीनगर में मोदी कैंप के नियंत्रण में जा चुका था, जो नरक मचा है, वह वहीं से आया है।
प्रद्युत वोरा, बीजेपी आईटी सेल के पूर्व प्रमुख
हमारे देश में पतंजलि उत्पाद और मोदी ब्रांड की राजनैतिक सफलता के पीछे टेलीविज़न का बहुत बड़ा स्पष्ट हाथ है, वरना मीमांसा की जाए तो दोनों के दावे असंगत हैं। कई दावे तो शत प्रतिशत झूठे हैं।
वर्तमान राजनीति में संचार के साधनों का प्रभावी स्तेमाल बहुत बड़े अंतर पैदा कर रहा है, क्योंकि अब यह सर्वस्वीकृत है कि लोगों की राय बनाई-बदली जा सकती है। ऐसे में यदि भारत का विपक्ष इस ग़लतफ़हमी में है कि आर्थिक मोर्चे पर बढ़ती कठिनाइयों से त्रस्त अवाम खुद ही मोदी को उखाड़ फेंकेंगे तो यह चुनाव उनकी ग़लतफ़हमी दूर कर देगा। क्योंकि संचार के साधनों पर क़ब्ज़े के ज़रिये मोदी कैम्प ने ख़ुद विपक्ष को ही मुद्दे बदल कर देशद्रोही ठहरा दिया है।
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