भारतीय जनता पार्टी के वरिष्ठ नेता और पूर्व मंत्री संघ प्रिय गौतम का मानना है कि राम मंदिर के नाम पर अगला लोकसभा चुनाव जीतना मुमकिन नहीं है। उन्होंने सत्य हिन्दी.कॉम से बात करते हुए इसकी वजहें भी गिनाईं और वैकल्पिक रास्ता भी बताया।
गौतम का मानना है कि राम मंदिर आंदोलन के पीछे आम जनता नहीं है, यह कट्टरपंथी हिन्दुओं को ही अपील करता है और उनकी तादाद बहुत अधिक नहीं है। फ़िलहाल मंदिर की माँग को लेकर सबसे ज़्यादा मुखर साधु-सन्त हैं, जो वोट नहीं देते। हिन्दुओं की भी बहुत बड़ी आबादी इसे लेकर बहुत गंभीर नही है। लिहाज़ा, यह मान कर न चला जाए कि राम मंदिर के नाम पर बहुमत हिन्दू बीजेपी को वोट देंगे।
'संघ गंभीर नहीं'
वे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रमुख मोहन भागवत के अध्यादेश बना कर राम मंदिर निर्माण की माँग को भी बहुत तवज्ज़ो नहीं देते। वे इसे मोदी पर दबाव बनाने की चाल क़रार देते हैं। वे कहते हैं कि आरएसएस राष्ट्रवादी संगठन है, वह कभी देश में अशान्ति नहीं चाहेगा। लिहाज़ा, वे
संघप्रिय गौतम का कहना है कि मोहन भागवत राम मंदिर बनाने के मुद्दे पर केवल दबाव ही बनाएँगे, कुछ ख़ास नहीं करेंगे। वे भी अदालत के फ़ैसले का इंतज़ार करेंगे क्योंकि दूसरा कोई उपाय नहीं है। गौतम ने यह भी कहा कि सिर्फ़ संघ प्रचारकों के बल पर कोई चुनाव नहीं जीता जा सकता।
कौन कर रहा है द्रोपदी का चीरहरण?
गौतम ने 13 दिसंबर 2018 को संघ प्रमुख को एक कड़ी चिट्ठी लिख कर नरेंद्र मोदी को हटाने की बात की थी। इसे मोदी को हटाने की सुगबुगाहट माना गया था। वे अपनी बात पर अड़े हुए हैं। गौतम कहते हैं कि वे उन लोगों में से हैं, जिन्होंने पार्टी खड़ी की है। वे इसे बर्बाद होता देख चुप नहीं रह सकते। इसलिए उन्होंने पार्टी को कुछ व्यवहारिक उपाय सुझाए। पर किसी ने उनसे इस मुद्दे पर बात ही नहीं की, न आरएसएस ने ही बीजेपी के किसी आदमी ने। वे कहते हैं, 'महाभारत की लड़ाई इसलिए हुई की भरी सभा में द्रौपदी का चीरहरण हुआ। मैं भी 90 साल का हूं, पार्टी में पितामह की तरह ही हूं, मैं चीरहरण होता नहीं देख सकता।' लेकिन वे यह नहीं कह सकते कि आज के संदर्भ में कौन चीरहरण कर रहा है। वे कहते हैं, 'बुद्धिमान आदमी ख़ुद समझ लेगा, मैं किसी का नाम नहीं लूंगा।' बीजेपी के इस वरिष्ठ नेता ने एक बार फिर मोदी पर तीखा हमला बोला और कहा कि उन्होंने चुनाव से जुड़ा कोई वायदा नहीं निभाया, लिहाज़ा लोगों को उनसे ग़ुस्सा है। उनके मुताबिक़,
मोदी के राज में न तो किसी के खाते में 15 लाख रुपए आए, न ही काला धन वापस आया, न रोज़गार के मौक़े बने, न महँगाई रुकी, न किसानों की आय बढी और न ही उन्हें सस्ते में खाद-बीज मिले। ऐसे में लोगों से वोट की उम्मीद करना बेकार है।
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