सराय की एक ख़ूबसूरत बेग़म की याद में इस ज़िले का नाम बेगूसराय रख दिया गया। 1972 में मुंगेर से अलग होकर बेगूसराय ज़िला बना, जो राष्ट्रकवि दिनकर की जन्म-भूमि है। बेगूसराय के इस चुनाव में दिनकर के द्वंदगीतों की गूंज सुनाई दी। सार्वजनिक चुनाव प्रचार में शनिवार तक द्वंदगीत गूंजते रहे।
सुधाकर रेड्डी की मानें, तो उनके मन में पिक्चर साफ़ थी कि कामरेड कन्हैया कुमार और फ़ायर ब्रांड बीजेपी नेता गिरिराज सिंह के बीच सीधी लड़ाई है और कन्हैया को हर तबके़ का समर्थन मिल रहा है। उनके मुताबिक़, अगर महागठबंधन के उम्मीदवार तनवीर हसन को चुनाव मैदान से हटा लिया जाए तो कन्हैया की जीत सुनिश्चित है।
कन्हैया का उत्साह बढ़ाने के लिए देशभर से युवा और प्रबुद्ध लोग बेगूसराय पहुँचे। मगर बिहार और बेगूसराय की राजनीति का पेच यह है कि अगर तनवीर हसन बैठ जाते तो उनका राजनीतिक वजूद बैठ जाता।
बड़े लोगों ने त्रिकोणीय बनाया मुक़ाबला
बिहार के प्रतिष्ठित अख़बार ‘आर्यावर्त’ के समय से पत्रकार रहे भुनानन्द मिश्री जी अपने जीवन का 13वाँ लोकसभा चुनाव कवर कर रहे हैं। उनकी मानें तो शुरुआत में मुक़ाबला गिरिराज सिंह और तनवीर हसन के बीच ही था। मगर, वाममोर्चा के उम्मीदवार कन्हैया के समर्थन में फ़िल्म स्टार शबाना आज़मी, प्रकाश राज, गीतकार जावेद अख़्तर, कविता कृष्णन, डी. राजा, सीताराम येचुरी, जिग्नेश मेवाणी आदि अनेक बड़े-बड़े नामी-गिरामी लोगों के आने से संघर्ष त्रिकोणीय बन गया है।
देश और दुनिया का ध्यान बेगूसराय खींच रहा है। यह सच है किसी जमाने की ख़ूबसूरत बेग़म अब नहीं रहीं और अब वह सराय भी नहीं रही। मगर बेगूसराय का वजूद कायम है। उसकी एक नई ख़ूबसूरती भी बनी हुई है। यह बिहार के प्रथम मुख्यमंत्री श्री बाबू की भूमि है।
कमजोर होता गया वामपंथ
स्थानीय पत्रकारों की मानें, तो पिछड़ी जातियों में वामपंथ का जो जनाधार था, वह खिसक कर लालू और नीतीश के पास चला गया। कन्हैया ने कोशिश की है कि पिछड़े वर्ग का वामपंथी वोट वापस वाममोर्चा में आ जाए। वैसे, सीपीआई और सीपीएम के बीच के खूनी संघर्ष ने वाम आंदोलन की जड़ों को खोखला कर दिया है। रही-सही कसर तब पूरी हो गई जब कांग्रेस ने बेगूसराय के पहले बाहुबली कामदेव सिंह को अपनी पार्टी में शामिल कर लिया, इस तरह वामपंथ की जड़ों को कमजोर करने में कांग्रेस की अहम भूमिका रही। इस प्रकार की परिस्थिति में संघ-जनसंघ और बीजेपी का उदय हुआ।
कन्हैया के प्रचार में फ़िल्मी ग्लैमर का तड़का लगा, तो गिरिराज सिंह के पक्ष में नए हिंदुत्व के वक्ता पुष्पेंद्र कुलश्रेष्ठ और कर्नल एसआरएन सिंह का व्याख्यान आयोजित करवा कर सामाजिक कार्यकर्ता दीपक साह ने बेगूसराय को एक नए राष्ट्रवाद के रंग से रंगने की एक पहल की।
बरौनी विधानसभा का बीहट गाँव कन्हैया का गाँव है। यहाँ भूमिहारों की आबादी सर्वाधिक है। भागलपुर के डीआईजी विकास वैभव का ही यही गाँव है। सिमरिया से बीहट के बीच रिक्शा चलाने वाले एक व्यक्ति बताते हैं कि यूँ तो लोग फूल छाप के साथ हैं मगर मुकेश सहनी के कारण लालटेन की भी चर्चा है। फूलबरिया वालों का कहना है कि हमारे वोट फूल को ही जाएँगे।बेगूसराय के बछवारा विधानसभा में मेरी मुलाक़ात प्रेमशंकर राय (भूमिहार) जिला उपाध्यक्ष बीजेपी, कमल पासवान सीपीआई से लोजपा में आए प्रखंड अध्यक्ष और विश्वनाथ महतो (धानुक) जदयू प्रखंड अध्यक्ष से हुई। वे बताते हैं कि राजनीति में वर्चस्व के लिए सीपीआई और सीपीएम में खूनी संघर्ष हुआ सैकड़ों लोगों की जानें गई। वामपंथियों ने दूसरे की ज़मीन पर बाँटने के लिए नहीं अपने लिए लाल झंडा गाड़ा। ग़रीबों की लड़ाई से कन्नी काटने के कारण वामपंथ की धारा सूखने लगी। कैडर रह गए, पार्टी गुम हो गई।
स्थानीय लोग बताते हैं कि बछवाड़ा दियारा के चमथा-एक, दो, तीन, बीसनपुर, दादूपुर में सड़क, गली, नाली, बिजली, शौचालय, प्रधानमंत्री आवास योजना और गैस कनेक्शन को घरों में जाकर देख सकते हैं। बेगूसराय लोकसभा में तेछड़ा, बेगूसराय, साहेबपुर कमाल, बखरी, बछवाड़ा और चेरिया बरियारपुर विधानसभा क्षेत्र हैं। इन सीटों पर जदयू और कांग्रेस के दो-दो विधायक हैं।
गिरिराज को महादेव से है उम्मीद
दिवंगत बीजेपी सांसद भोला बाबू भी नवादा से बेगूसराय पहुँचे थे। उसी नक्शे क़दम पर गिरिराज सिंह भी विवादों के बीच यहाँ पहुँचे हैं। जय महादेव के सहारे जय-जय की उम्मीद उन्हें ज़्यादा हैं। समस्त द्वैत-द्वैताद्वैत, द्वंद और विपरीत परिस्थितियों से महादेव ही उन्हें उबारेंगे। यह उनकी आशा और अभिलाषा है और उनके मन में ऐसा विश्वास है।
मार्क्सवादी राजनीति के उभरते सितारे कन्हैया के सहारे वामपंथी कश्ती को नए खेवैया के मिलने की उम्मीद है तो राजद कोटे के महागठबंधन प्रत्याशी तनवीर हसन ख़ामोशी से चुनाव को रोचक बना रहे हैं।
बेगूसराय में कुल 19 लाख मतदाता हैं। जिनमें भूमिहार 4 लाख 30 हज़ार, मुसलमान 2 लाख 80 हज़ार, महादलित 3 लाख 50 हज़ार, कानू, कोईरी, कुर्मी, धानुक मिलाकर 2 लाख 50 हज़ार, यादव 1 लाख, 50 हज़ार, ब्राह्मण 70 हज़ार, राजपूत 60 हज़ार, सहनी 60 हज़ार, चंद्रवंशी 60 हज़ार और 2 लाख वैश्य मतदाता हैं।
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