अपने बोल्ड उपन्यास 'मित्रो मरजानी' से हिन्दी साहित्य जगत में तहलका मचा देने वाली कृष्णा सोबती का 94 साल की उम्र में निधन हो गया। उनका अंतिम संस्कार शुक्रवार शाम दिल्ली में निगम बोध घाट पर होगा। सोबती 2015 में एक बार चर्चा में आईं जब उन्होंने देश में असहिष्णुता के माहौल से नाराज़ होकर साहित्य अकादमी पुरस्कार वापस कर दिया था।
कृष्णा सोबती को साहित्य के क्षेत्र में दिया जाने वाला देश का सर्वोच्च सम्मान ज्ञानपीठ पुरस्कार साल 2017 में मिला था। उनकी रचनाओं में महिला सशक्तिकरण और स्त्री जीवन की जटिलताओं का ज़िक्र है। सोबती को राजनीति-सामाजिक मुद्दों पर अपनी मुखर राय के लिए भी जाना जाता है।
18 फरवरी 1925 को वर्तमान पाकिस्तान में जन्मी सोबती को उनके उपन्यास ‘ज़िंदगीनामा’ के लिए 1980 का साहित्य अकादमी पुरस्कार मिला था। उन्हें 1996 में अकादमी के उच्चतम सम्मान ‘साहित्य अकादमी फैलोशिप’ से नवाजा गया था। इसके अलावा कृष्णा सोबती को पद्मभूषण, व्यास सम्मान, शलाका सम्मान से भी नवाजा जा चुका है।
उन्होंने ‘सूरजमुखी अंधेरे के’, ‘दिलोदानिश’, ‘ज़िन्दगीनामा’, ‘ऐ लड़की’, ‘समय सरगम’, ‘जैनी मेहरबान सिंह’, ‘हम हशमत’, ‘बादलों के घेरे’ जैसे प्रसिद्ध उपन्यास लिखे।
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