क्या सुप्रीम कोर्ट पर किसी 'रिमोट कंट्रोल' का दबाव था? और क्या चार जजों की बहुचर्चित प्रेस कान्फ़्रेन्स के पीछे यही कारण था? सुप्रीम कोर्ट से अभी-अभी रिटायर हुए जस्टिस जोज़फ़ कूरियन ने अपने इंटरव्यू में यह विस्फ़ोटक ख़ुलासा किया है कि उन्हें और उनके कई साथी जजों को लगता था कि कोई 'रिमोट कंट्रोल' था, जो पूर्व चीफ़ जस्टिस दीपक मिश्रा को 'बाहर से नियंत्रित' करता था और वह 'राजनीतिक रूप से पूर्वग्रह से ग्रसित' जजों को संवेदनशील मामले सौंप दिया करते थे। रिटायरमेंट के बाद यह जस्टिस कूरियन का पहला इंटरव्यू था, जो उन्होंने अंग्रेज़ी अख़बार ‘टाइम्स ऑव इंडिया’ को दिया था। जस्टिस कूरियन ने इस इंटरव्यू में सुप्रीम कोर्ट के भीतर के उन दिनों के हालात पर विस्तार से चर्चा की। उन्होंने जानकारी दी कि किन स्थितियों में उन्होंने और सुप्रीम कोर्ट के दूसरे तीन जजों, जस्टिस जस्ती चेलामेश्वर, जस्टिस रंजन गोगोई और जस्टिस मदन बी लोकूर ने प्रेस कॉन्फ़्रेंस की थी।
'ख़ास जजों को ख़ास मामले'
उन्होंने कहा कि यह अकसर साफ़ तौर पर समझ में आता था कि कुछ 'ख़ास' मामले कुछ 'ख़ास' जजों के पीठ को ही क्यों दिए जाते थे। मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्र के कार्यकाल के चार महीने बीतने के भीतर ही सुप्रीम कोर्ट के कामकाज में ऐसी क्या गड़बड़ी उन्होंने और बाक़ी तीन जजों ने महसूस की कि उन्हें प्रेस कान्फ़्रेन्स करने की बात सोचनी पड़ी, इस सवाल पर जस्टिस कूरियन ने कहा कि ऐसे बहुत से मामले थे जहाँ खंडपीठों को सुनवाई के लिए मुक़दमे भेजने में 'बाहरी असर' दिखने लगा था। यह 'बाहरी असर' सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट के जजों की नियुक्ति में भी दिख रहा था।जस्टिस कूरियन ने कहा कि जब हमने लगातार कई मामलों में यह बात नोटिस की तो हमने चीफ़ जस्टिस से बात की, उन्हें लिखा कि वह सुप्रीम कोर्ट की गरिमा और स्वतंत्रता को बनाए रखें। लेकिन जब हमारी ऐसी तमाम कोशिशें विफल रहीं, तो हमें मजबूर हो कर प्रेस कान्फ़्रेन्स करनी पड़ी। सबसे पहले यह ख़याल जस्टिस चेलामेश्वर को आया कि प्रेस कान्फ़्रेन्स करनी चाहिए, फिर उन्होंने हमसे चर्चा की और हम तीनों जज इस पर सहमत हुए कि प्रेस कान्फ़्रेन्स करनी चाहिए।जस्टिस कूरियन से सवाल पूछा गया कि वह जिस 'बाहरी असर' की बात कर रहे हैं, उसके बारे में क्या कुछ और विस्तार से बताएँगे तो उन्होंने कहा कि कुछ 'ख़ास' मामले कुछ ऐसे 'ख़ास' जजों को दिए जाते थे, जो 'राजनीतिक रूप से पूर्वग्रहों से ग्रसित' समझे जाते थे।सुप्रीम कोर्ट के चार जजों ने मुख्य न्यायाधीश पर गंभीर आरोप लगाए थे।
उस प्रेस कॉन्फ़्रेंस में चारों जजों ने मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्र की कार्यप्रणाली पर कई गम्भीर सवाल उठाए थे, हालाँकि तब किसी 'रिमोट कंट्रोल' या 'बाहरी दख़ल' की बात नहीं उठाई गई थी। इस प्रेस कान्फ़्रेन्स में न्यायिक अधिकारी बी. एच. लोया की मौत की जाँच को जस्टिस अरुण मिश्रा की अगुआई वाले खंडपीठ को सौंपने के मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा के निर्णय पर भी सवालिया निशान लगाया था। हालाँकि बाद में 13 जनवरी को सुप्रीम कोर्ट के जजों की रोज़ सुबह होने वाली मीटिंग में जस्टिस चेलामेश्वर से नोंकझोंक के बाद जस्टिस अरुण मिश्र ने अपने को इस मुक़दमे से अलग कर लिया था।
'सत्ता से नज़दीकी'
प्रेस कान्फ़्रेन्स में यह भी आरोप लगाया गया था कि मुख्य न्यायाधीश सत्ता के नज़दीक होते जा रहे हैं और उससे बेहतर रिश्ते बना रहे हैं। बाद में कांग्रेस समेत कई विपक्षी दलों ने जब मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्र के ख़िलाफ़ राज्यसभा में महाभियोग लाने का नोटिस दिया, तो उसमें भी 'सत्ता से नज़दीकी' के आरोप का हवाला दिया गया था। लेकिन उस नोटिस को सदन के अध्यक्ष वेंकैया नायडू ने ख़ारिज कर दिया था। जस्टिस कूरियन ने इसी इंटरव्यू में कहा कि अब जजों की नियुक्ति के मामले में कलीजियम सिस्टम का असर दिखने लगा है और स्थितियां सुधरने लगी हैं। वे पाँच सदस्यों वाले उस खंडपीठ में थे, जिसने जजों की नियुक्ति के लिए बने नेशनल ज्यूडिशियल अपॉयन्टमेंट कमीशन को ख़ारिज कर दिया था। उन्होंने कलीजियम सिस्टम की शुरुआती खा़मियों के बारे में कहा कि पहले इसमें पारदर्शिता नहीं थी, आपसी बातचीत नहीं होती थी, बहस नहीं होती थी। ‘मुख्य न्यायाधीश जजों के नाम की घोषणा कर देते थे और कॉलीजियम के बाकी सदस्य उस पर दस्तख़त कर देते थे। पर अब ऐसा नहीं होता है’, उन्होंने कहा।
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