हेमंत सोरेन
जेएमएम - बरहेट
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हेमंत सोरेन
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कल्पना सोरेन
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केरल में हाल में हुए विधानसभा चुनाव में मिली हार के बाद कांग्रेस आलाकमान गुटबाज़ी करने वाले नेताओं पर सख़्त हो गया है। पार्टी ने वीडी सतीशन का विपक्ष के नेता के रूप में चयन करके यह साफ संकेत दे दिया है कि गुटबाज़ी बर्दाश्त नहीं होगी। केरल में कांग्रेस नेताओं के बीच जबरदस्त गुटबाज़ी के कारण ही पार्टी आलाकमान ने विधानसभा चुनाव में किसी भी नेता को मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित नहीं किया था।
सतीशन की नियुक्ति कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी और महासचिव (संगठन) केसी वेणुगोपाल के मजबूती से उनके पक्ष में खड़े रहने के कारण हुई है और आलाकमान इस बार पूर्व मुख्यमंत्री ओमन चांडी और पिछली विधानसभा में विपक्ष के नेता रहे रमेश चेन्निथला के दबाव में नहीं आया।
राहुल गांधी के इस फ़ैसले से चेन्निथला को निराशा हुई है क्योंकि वह एक बार और इस पद पर रहना चाहते थे लेकिन राहुल ने उनसे अपेक्षाकृत युवा नेता को इस पद पर काम करने का मौक़ा दिया है।
केरल कांग्रेस में नेताओं के बीच मचे आपसी घमासान, गुटबाज़ी की वजह से ही राहुल गांधी ने विधानसभा चुनाव की कमान अपने हाथों में थामे रखी थी। राहुल गांधी के लिए अन्य राज्यों की तुलना में केरल सबसे ज़्यादा मायने रखता है, क्योंकि वे यहां की वायनाड लोकसभा सीट से सांसद हैं।
वैसे तो केरल में कांग्रेसी नेताओं के अलग-अलग गुट हैं, लेकिन दो बड़े गुटों की वजह से कांग्रेस आलाकमान यहां मुश्किल में फंसता रहा है। ये गुट ओमन चांडी और रमेश चेन्निथला के हैं। केरल कांग्रेस में एक वक़्त दो बड़े कांग्रेसी नेताओं के. करुणाकरन और एके एंटनी के बीच जो सियासी लड़ाई थी, वैसी ही ओमन चांडी और रमेश चेन्निथला के बीच है।
बताया जाता है कि चांडी और चेन्निथला ने इस बार हाथ मिला लिए थे लेकिन कांग्रेस के चार विधायकों पीसी विष्णुनाथ, एम. विंसेंट, शफी परम्बिल और टी. सिद्दीकी ने राज्य में केंद्रीय पर्यवेक्षक के तौर पर भेजे गए वरिष्ठ नेता मल्लिकार्जुन खड़गे के सामने चेन्निथला का खेल बिगाड़ दिया।
इन चारों विधायकों ने साफ कहा कि अगर कांग्रेस को केरल की सत्ता में वापस लाना है तो बदलाव करना ही होगा। उन्होंने यह भी तर्क दिया कि राज्य की सत्ता में लौटने वाली सीपीएम ने इस बार अपनी कैबिनेट में नए चेहरों को जगह दी है।
इसके अलावा भी केरल के कई कांग्रेस विधायकों, पार्टी नेताओं ने राज्य कांग्रेस में संगठनात्मक बदलाव करने की मांग की थी।
केरल में हुए विधानसभा चुनाव में मार्क्सवादियों के नेतृत्व वाले लेफ्ट डेमोक्रेटिक फ्रंट (एलडीएफ) और कांग्रेस के नेतृत्व वाले यूनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट (यूडीएफ) के बीच हुआ था। लेकिन यूडीएफ का प्रदर्शन बेहद ख़राब रहा था और उसे 126 सीटों वाली विधानसभा में सिर्फ़ 41 सीटें मिली थीं जबकि एलडीएफ़ ने 97 सीटें जीती थीं।
ये नतीजे कांग्रेस के लिए बेहद ख़राब रहे थे क्योंकि राहुल गांधी ने पांच राज्यों के चुनाव प्रचार में सबसे ज़्यादा जोर केरल में ही लगाया था और माना जा रहा था कि उनकी मेहनत रंग लाएगी लेकिन ऐसा नहीं हुआ।
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