एलडीएफ़ को निर्णायक कामयाबी
राज्य चुनाव आयोग के अनुसार, एलडीएफ़ ने 945 ग्राम सभाओं में से 520 पर बढ़त ले ली है। कांग्रेस नेतृत्व वाला संयुक्त लोकतांत्रिक मोर्चा यानी युनाइटेड डेमोक्रेटिक फ़्रंट 371 पंचायतों में आगे चल रहा है।एलडीएफ़ 14 में से 10 ज़िला पंचायतों में बढ़त ले चुका है, पिछले चुनाव में उसे सात ज़िला पंचायतों में जीत हासिल हुई थी।
यूडीएफ़ पिछड़ा
लेकिन यूडीएफ़ 86 में से 45 म्युनिसपैलिटियों में आगे चल रहा है। उसने इसके अलावा चार ज़िला पंचायतों में भी बढ़त ले ली है।बीजेपी को उम्मीद थी कि वह तिरुवनंतपुरम में जीत दर्ज कर लेगी, वह ऐसा नहीं कर सकी, लेकिन उसने तितरफा मुक़ाबले में कांग्रेस को तीसरे स्थान पर ज़रूर धकेल दिया है।
एलडीएफ़ बेहतर स्थिति में
साल 2015 के चुनाव में एलडीएफ़ को 42 वार्डों में सफलता मिली थी। ज़्यादातर स्थानीय निकायों पर वाम मोर्चे को जीत मिली थी, लेकिन ज़िला पंचायतों में से एलडीएफ़ और यूडीएफ़ ने सात-सात पर कब्जा कर लिया था।“
“लोगों ने बीजेपी और कांग्रेस के दुष्प्रचार और केंद्रीय एजेन्सियों की चाल को खारिज कर दिया है। आम जनता ने वामपंथी राजनीति और विकास कार्यक्रम को वोट दिया है।”
टी. एम. थॉमस, वित्त मंत्री, केरल
बीजेपी इस पर ज़रूर खुश हो सकती है कि कन्नूर नगर निगम में उसे पहली बार कौंसिलर सीट पर कामयाबी मिली है। इसके अलावा उसके लिए राहत की यह बात भी है कि उसके ग्राम पंचायतों और म्युनिसपैलिटियों में पहले से थोड़ी बढ़त मिली है।
त्रिसूर में बीजेपी हारी
लेकिन बीजेपी को त्रिसूर नगर निगम के चुनाव में हार का मुँह देखना पड़ा है। उसके मेयर पद के उम्मीदवार और पार्टी के प्रवक्ता बी. गोपालकृष्णन अपनी सीट हार गए, उन्हें यूडीएफ़ के उम्मीदवार ने पटकनी दी है।वाम मोर्चा के लिए यह संकट का समय था, क्योंकि वह सोना तस्करी के मामले में बुरी तरह फँसा हुआ दिख रहा था, वह विपक्ष के हमलों का ठीक से जवाब नहीं दे पा रहा था।
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