बाबूलाल मरांडी
बीजेपी - धनवार
आगे
बाबूलाल मरांडी
बीजेपी - धनवार
आगे
हेमंत सोरेन
जेएमएम - बरहेट
आगे
पार्टी नेताओं के बीच खींचतान-तनातनी, तू-तू, मैं-मैं और ज़बरदस्त गुटबाज़ी की वजह से कांग्रेस पार्टी को केरल के स्थानीय निकाय चुनावों में जीत नहीं मिल पायी है। विधानसभा चुनाव से ऐन पहले हुए इन चुनावों में सत्ताधारी वाम मोर्चे की जीत से यह साफ है कि कांग्रेस के लिए केरल में सब कुछ ठीक नहीं है।
कांग्रेस के लिए केरल इस वजह से भी काफी मायने रखता है क्योंकि खुद राहुल गांधी यहाँ की वायनाड लोकसभा सीट से सांसद हैं। राजनीति के कई जानकार मान रहे थे कि केरल ही वह राज्य है जहाँ कांग्रेस काफ़ी मजबूत है और पार्टी स्पष्ट बहुमत के साथ सरकार बनाएगी। लेकिन स्थानीय निकायों के चुनाव नतीजे आने के बाद कईयों की राय बदल गयी है।
कांग्रेस वाम मोर्चा सरकार पर लगे भ्रष्टाचार के गंभीर आरोपों का भी राजनीतिक लाभ उठाने में नाकाम रही है। इतना ही नहीं, बीजेपी के लगातार बढ़ते जनाधार ने भी कांग्रेस नेतृत्व को परेशानी में डाल दिया है।
गौर करने वाली बात है कि वाम मोर्चा की सरकार पर अरब देशों से सोने की अवैध तस्करी करने, गैर-कानूनी तरीके से कुरान की प्रतियाँ मंगवाकर मतदाताओं में मुफ्त बांटने के आरोप हैं। इन मामलों की जांच सीबीआई और ईडी कर रही हैं। आरोपों के घेरे में मुख्यमंत्री कार्यालय भी आया। आरोप मुख्यमंत्री पिनराई विजयन के प्रधान सचिव शिवशंकर पर भी लगे। शिव शंकर को मजबूरन छुट्टी पर जाना पड़ा।
कुरान की प्रतियों के मामले में उच्च शिक्षा मंत्री के. टी. जलील विवादों से घिरे हैं। इनके अलावा विजयन पर बाढ़ पीड़ितों को राहत पहुंचाने में ढिलाई बरतने के आरोप भी हैं। सीपीएम के प्रदेश सचिव कोडियेरी बालकृष्णन के बेटे बिनीश को ड्रग्स-तस्करी मामले में गिरफ्तार किया गया। इस गिरफ्तारी के बाद बालकृष्णन को अपने पद से इस्तीफा देना पड़ा था। इन सब के बावजूद वाम मोर्चा की जीत से साफ हो गया कि कांग्रेस के लिए केरल में दुबारा सत्ता में लौटना आसान नहीं है।
विश्लेषकों का कहना है कि केरल में स्थानीय निकाय चुनाव के नतीजों से ही साफ हो जाता है कि विधानसभा चुनाव कौन जीतेगा। लोग इन चुनावों में जिस-जिस पार्टी को जिताते हैं, वे उसी पार्टी-मोर्चा को विधानसभा चुनाव में भी जिताते हैं। पिछले कई दशकों से केरल में ऐसा ही हुआ है।
विधानसभा चुनाव से छह महीने पहले हुए इन स्थानीय निकाय चुनावों से केरल की जनता के मूड का पता चल जाता है। इन चुनावों में वाम मोर्चा ने ज़्यादातर ग्राम पंचायतों, ब्लॉक पंचायतों, ज़िला पंचायतों में जीत का परचम लहराया है। इतना ही नहीं, प्रदेश की ज़्यादातर नगरपालिकाओं और नगर निगमों में भी वाम मोर्चे की ही जीत हुई है। बात साफ है। ग्रामीण और शहरी दोनों इलाकों में वाम मोर्चा विपक्षी पार्टियों से बहुत आगे है।
अगर नतीजों का विश्लेषण किया जाये तो ये नतीजे पिछले चुनाव जैसे ही हैं। 2015 में विधानसभा चुनाव से ठीक पहले हुए स्थानीय निकाय चुनावों में वाम मोर्चे ने जितनी पंचायतें जीती थीं, लगभग उतनी ही इस बार भी जीती हैं। कांग्रेस पिछली बार की तरह ही इस बार भी काफ़ी पीछे है। उल्टे बीजेपी ने बेहतर प्रदर्शन किया है।
राजधानी तिरुवनंतपुरम के नगर निगम में बीजेपी ने कांग्रेस को पछाड़ कर दूसरा स्थान हासिल किया है। बीजेपी के नेता दावा कर रहे थे कि तिरुवनंतपुरम में इस बार भगवा परचम लहराएगा। लेकिन ऐसा नहीं हुआ और यहाँ भी वाम मोर्चा की शानदार जीत हुई। तिरुवनंतपुरम से कांग्रेस के शशि थरूर लोकसभा सदस्य हैं।
राजनीति के जानकारों के मुताबिक केरल में कांग्रेस की हार के तीन बड़े कारण हैं। पहला कारण है, केरल के कांग्रेस के नेताओं के बीच गुटबाज़ी। दूसरा, पुरानी पीढ़ी के बड़े नेताओं के विकल्प के रूप में नये लोकप्रिय नेताओं की कमी। तीसरा, बीजेपी की लगातार बढ़ती लोकप्रियता। वामपंथी पार्टियों का वोट बैंक जस का तस बरकरार है, जबकि कांग्रेस का वोट बैंक बीजेपी की ओर खिसकता नज़र आ रहा है।
दिल्ली के कांग्रेस नेता भले ही यह दावा करें कि केरल में कांग्रेसी नेता एकजुट हैं, लेकिन पंचायत चुनाव के नतीजों ने यह साफ कर दिया है कि पार्टी नेताओं के बीच गुटबाज़ी चरम पर है।
प्रदेश अध्यक्ष एम. रामचंद्रन और विधायक दल के नेता रमेश चेन्निथला के बीच वर्चस्व की लड़ाई से पार्टी को नुकसान हो रहा है। दोनों खुद को मुख्यमंत्री के उम्मीदवार के तौर पर पेश करने में ज़्यादा समय लगा रहे हैं। उधर, 77 साल के ऊमन चांडी ने भी अभी तक मुख्यमंत्री पद की दावेदारी नहीं छोड़ी है। दो लोकसभा सदस्य - बेन्नी बेहनन और शशि थरूर आपस में उलझे हुए हैं।
पी.जे.कुरियन, पी.सी.चाको जैसे कई नेता कांग्रेस नेतृत्व से नाराज़ हैं। जिन तेईस बड़े नेताओं ने 'कांग्रेस में चुनाव' की बाबत सोनिया गांधी को चिट्ठी लिखी थी, उनमें केरल से भी दो नेता शामिल हैं।
पी.जे.कुरियन और शशि थरूर के चिट्ठी लिखने वाले नेताओं में शामिल होने से यह साफ है कि वे भी पार्टी नेतृत्व के कुछ फैसलों से नाराज़ हैं। उधर, केरल में कई कांग्रेसी नेता के. सी. वेणुगोपाल के बढ़ते महत्व से भी परेशान हैं। कई नेताओं का मानना है कि सोनिया गांधी और राहुल गांधी के. सी. वेणुगोपाल को ज़रूरत से ज़्यादा तवज्जो दे रहे हैं।
कई नेता पूर्व रक्षा मंत्री और पूर्व मुख्यमंत्री ए. के. एंटनी की चुप्पी से भी नाराज़ हैं। इन नेताओं को लगता है कि एंटनी कांग्रेस नेतृत्व का मार्गदर्शन नहीं कर रहे हैं, जिसकी वजह से पार्टी को केरल में नुकसान हो रहा है। केरल में कांग्रेस की एक बड़ी समस्या युवा नेतृत्व की कमी है।
कांग्रेस के लिए फिलहाल मार्क्सवादी नेता पिनराई विजयन की लोकप्रियता भी परेशानी का सबब बनी हुई है। 77 साल के पिनराई विजयन वामपंथी वोट बैंक को बनाये-बचाये रखने में कामयाब हैं। वामपंथियों का पारंपरिक वोट बैंक– किसान और मजदूर वर्ग अब भी उन्हीं के साथ है।
2019 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस के नेतृत्व वाले यूनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट ने केरल की 20 में से 19 सीटों पर जीत दर्ज़ की थी। डेढ़ साल भी पूरे नहीं हुए कि वाम मोर्चा ने चुनावी मैदान में शानदार वापसी की और मैदान जीत लिया। विश्लेषकों का कहना है कि अगर कांग्रेस नेतृत्व गुटबाजी को खत्म करने में नाकाम रहा तो कई कांग्रेसी नेता बीजेपी में चले जाएँगे और इससे पार्टी को और भी नुकसान होगा।
About Us । Mission Statement । Board of Directors । Editorial Board | Satya Hindi Editorial Standards
Grievance Redressal । Terms of use । Privacy Policy
अपनी राय बतायें