केरल में फिलिस्तीन के समर्थन में आयोजित एक रैली से बड़ा विवाद खड़ा हो गया है। मलप्पुरम में जमात-ए-इस्लामी की युवा शाखा सॉलिडेरिटी यूथ मूवमेंट द्वारा आयोजित फिलिस्तीन समर्थक रैली में शुक्रवार को हमास नेता खालिद मशाल ने वर्चुअल रूप से संबोधित किया। और हंगामे की वजह भी हमास नेता का संबोधन ही है। बीजेपी ने आयोजकों के साथ-साथ वामपंथी और कांग्रेस की केंद्रीय व राज्य की एजेंसियों से जांच कराने की मांग की है। इसके अलावा, इज़राइल के राजदूत ने भी हमास नेता के संबोधन को मुद्दा बना दिया है।
हमास नेता मशाल के संबोधन पर भारत में इजराइल के राजदूत नाओर गिलोन ने भी तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त की। उन्होंने ट्वीट किया, "अविश्वसनीय! हमास आतंकवादी खालिद मशाल ने क़तर से केरल के एक कार्यक्रम में 'बुलडोजर हिंदुत्व और रंगभेदी यहूदीवाद को उखाड़ फेंको' नारे के तहत संबोधित किया। मशाल ने लोगों से कहा: 1. सड़कों पर उतरें और गुस्सा दिखाएं। 2. (इज़राइल पर) जिहाद की तैयारी करो। 3. हमास को आर्थिक रूप से समर्थन दें। 4. सोशल मीडिया पर फ़िलिस्तीनी नैरेटिव का प्रचार करें। अब समय आ गया है कि हमास-आईएसआईएस को भी भारत की आतंकी सूची में जोड़ा जाए।''
Unbelievable😮! #HamasTerrorist Khaled Mashal speaks from Qatar in a #Kerala event under the slogan ‘Uproot bulldozer Hindutva & Apartheid Zionism’.
— Naor Gilon (@NaorGilon) October 29, 2023
Mashal calls participants to:
1. Take the streets and show anger.
2. Prepare for jihad (on Israel).
3. Support Hamas… pic.twitter.com/RH7nyAkEbN
हमास को अभी भी भारत ने आतंकवादी संगठनों की सूची में नहीं डाला है। बता दें कि भारत ने शुरुआत से ही फिलिस्तीन के मुद्दे का समर्थन किया है। 1947 में भारत ने संयुक्त राष्ट्र महासभा में फिलिस्तीन के विभाजन के खिलाफ मतदान किया था। फिलिस्तीन के नेता यासर अराफात कई बार भारत आए। उनके इंदिरा गांधी से लेकर अटल बिहारी वाजपेयी तक के नेताओं से अच्छे संबंध रहे। 1999 में तो फिलिस्तीनी नेता यासर अराफात तत्कालीन पीएम वाजपेयी के घर पर उनसे मिले थे। खुद प्रधानमंत्री मोदी ने 2018 में पहली बार फिलिस्तीन की ऐतिहासिक यात्रा की थी।
7 अक्टूबर के हमास के हमले के तुरंत बाद प्रधानमंत्री मोदी ने भले ही इज़राइल के साथ खड़े होने की बात कही हो, लेकिन बाद में विदेश मंत्रालय की ओर से कहा गया कि इजराइल-फिलिस्तीन पर भारत का रुख पहले की तरह ही जस का तस है और इसमें कोई बदलाव नहीं आया है।
इसी बीच केरल में हंगामा मचा है। दरअसल, इज़राइल-हमास संघर्ष की आंच केरल में भी महसूस की जा रही है। राज्य में सीपीएम के नेतृत्व वाले लेफ्ट डेमोक्रेटिक फ्रंट और कांग्रेस के नेतृत्व वाले यूनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट दोनों पारंपरिक रूप से फिलिस्तीनी मुद्दे का समर्थन करते रहे हैं।
ग़ज़ा पट्टी में इजराइली हमलों की निंदा करने और फिलिस्तीनियों के साथ एकजुटता की घोषणा करने के लिए राज्य में मार्च और सम्मेलन हो रहे हैं। द इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार ऐसी ही एक रैली में शुक्रवार को अपने संदेश में हमास नेता मशाल ने कहा, 'हमें फिलिस्तीन की भूमि के लिए सभी प्रयास करने चाहिए। ये गतिविधियाँ अल-अक्सा मस्जिद को फिर से हासिल करने के लिए हैं। हमें हर संभव प्रयास करना चाहिए। ...इजराइल हमारे निवासियों से बदला ले रहा है। मकान तोड़े जा रहे हैं। उन्होंने ग़ज़ा के आधे से ज्यादा हिस्से को तबाह कर दिया है। वे चर्चों, मंदिरों, विश्वविद्यालयों और यहां तक कि संयुक्त राष्ट्र संस्थानों को भी नष्ट कर रहे हैं। इस हमले का मतलब ग़ज़ा को खाली कराना है। वे इसका बदला ले रहे हैं क्योंकि ग़ज़ा में लड़ाकों ने उन्हें सैन्य रूप से हरा दिया है।'
अंग्रेज़ी अख़बार की रिपोर्ट के अनुसार रैली के आयोजक सॉलिडैरिटी यूथ मूवमेंट के प्रदेश अध्यक्ष सुहैब सीटी ने कहा, 'पहले भी हमास के नेताओं ने वीडियो कॉन्फ्रेंस के माध्यम से केरल में कई एकजुटता सम्मेलनों को संबोधित किया था। केरल में इस्लामी आंदोलनों के बिना शर्त समर्थन के कारण भी फिलिस्तीन मुद्दा ज़िंदा है।' उन्होंने कहा कि 'जब हिंदुत्ववादी ताकतें खुले तौर पर इजराइल के साथ खड़ी हैं और एक अन्य वर्ग को आतंकवादी बना रही हैं, तो उन तथाकथित आतंकवादियों के साथ खड़ा होना हिंदुत्व के खिलाफ लड़ाई है।'
केंद्रीय मंत्री राजीव चन्द्रशेखर ने कांग्रेस और सीपीएम की राजनीति को तुष्टिकरण की राजनीति करार दिया और कहा कि केरल में नफरत फैलाने और 'जिहाद' का आह्वान करने के लिए आतंकवादी हमास को आमंत्रित करना कांग्रेस/सीपीएम/यूपीए/इंडिया गठबंधन के मानकों के अनुसार भी शर्मनाक है।'
राज्य भाजपा प्रमुख के सुरेंद्रन ने भी मलप्पुरम में रैली को मशाल के संबोधन पर वाम और कांग्रेस की आलोचना की। उन्होंने कहा कि हमने ऐसे सम्मेलनों और कार्यक्रमों को देखा है जिनमें हमास नेता इस राज्य में भाग लेते हैं। उन्होंने कहा, 'धर्मनिरपेक्ष केरल में हालात ऐसी स्थिति में पहुंच गए हैं। हमास के चरमपंथी केरल में कार्यक्रमों में हिस्सा ले रहे हैं। वीजा न मिलने के कारण ही उन्होंने वर्चुअल तरीके से बैठक को संबोधित किया। आयोजकों का एजेंडा बिल्कुल साफ़ है। इसकी जाँच केंद्र और राज्य एजेंसियों द्वारा की जानी चाहिए।'
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