कोरोना वायरस ने ऐसी स्थिति पैदा कर दी है कि किसी अपने की मृत्यु पर अंतिम संस्कार में भी परिवार का सदस्य शामिल नहीं हो पाए। क्या ऐसी स्थिति की कल्पना की जा सकती है कि न केवल अपने परिवार, बल्कि नज़दीकी रिश्तेदार और आसपड़ोस के लोग भी चाहें तो भी अंतिम संस्कार में शामिल नहीं हो पाएँ!
कर्नाटक के बेंगलुरु में ऐसा ही एक मामला सामने आया है। 'द इंडियन एक्सप्रेस' की रिपोर्ट के अनुसार, कोरोना पीड़ित एक 65 वर्षीय वृद्ध की तबीयत ख़राब हुई थी। हॉस्पिटल में लाया गया। 13 अप्रैल को उनकी मौत के बाद उनके कोरोना पॉजिटिव होने की रिपोर्ट आई। उनके परिवार और नज़दीकी रिश्तेदार के 26 लोगों को क्वरेंटाइन में जाना पड़ा। उस स्थिति में शव के अंतिम संस्कार में परिवार का कोई सदस्य नहीं जा सकता था। उन 26 लोगों के अलावा उस कोरोना मरीज के संपर्क में आए दूर के परिवार के सदस्य, उनके पड़ोसी, उनके तीन मंजिली बिल्डिंग में सभी किरायेदार सहित 78 लोगों को भी क्वरेंटाइन किया गया।
अंतिम संस्कार में हॉस्पिटल के तीन कर्मचारी और बेंगलुरु सिटी कार्पोरेश के कुछ कर्मचारी शामिल हुए और एक एनजीओ के कुछ सदस्यों ने दफनाने में सहयोग किया।
ऐसे मामले इटली में काफ़ी ज़्यादा आए थे। क्योंकि किसी मृत व्यक्ति के क़रीबी क्वरेंटाइन में थे तो उनका अंतिम संस्कार करने वाला कोई नहीं था। तब वहाँ मौत के काफ़ी ज़्यादा मामले आ रहे थे। हॉस्पिटल में कोरोना वायरस के मरीजों के लिए जगह नहीं थी। इसी पर 'न्यूयॉर्क टाइम्स' की एक रिपोर्ट आई थी कि कई हॉस्पिटलों के मुर्दाघर भरे हुए हैं। कुछ तो इसलिए कि मृतक के परिजन ख़ुद कोरोना वायरस के इलाज के लिए हॉस्पिटल में भर्ती हैं। जिन कुछ जगहों पर दफनाया जा रहा था वहाँ भी लाइनें लगी थीं।
बेंगलुरु में कोरोना मरीज के पीड़ित भी इससे काफ़ी आहत हैं कि वे अंतिम संस्कार में नहीं शामिल हो सके। 'इंडियन एक्सप्रेस' की रिपोर्ट के अनुसार, कोरोना मरीज के दामाद ने कहा, ‘मुझे यह सोच कर पीड़ा होती है कि हम दफनाने के वक़्त वहाँ नहीं थे... हमें इस बीमारी ने दूर रहने के लिए मजबूर किया। उनके अंतिम क्षणों में हममें से कोई भी नहीं हो सकता था। यह काफ़ी गहरी पीड़ा देता है।'
बता दें कि उस मरीज को साँस लेने में दिक्कत होने के बाद 12 अप्रैल को राजीव गाँधी इंस्टीट्यूट ऑफ़ चेस्ट डिजीज में भर्ती कराया गया था। वह दिल के मरीज थे। मरीज के परिजनों ने कहा कि वे इसलिए उनसे दूरी नहीं बना पाए थे क्योंकि उनको लगा था कि उनकी वह बीमारी दिल की बीमारी है। उन्होंने कहा कि वह न तो विदेश गए थे और न हीं कहीं बाहर। वह कभी-कभी सिर्फ़ सब्जी लेने बाहर जाते थे।
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