कर्नाटक में अगला विधानसभा चुनाव जब चार महीने से भी कम समय में लड़ा जाने वाला है, राज्य में राजनीतिक गोटियां बिछाने और हिन्दू-मुसलमान ध्रुवीकरण का अभियान जोर पकड़ गया है। खनन उद्योग से जुड़े पूर्व मंत्री और पूर्व बीजेपी नेता गली जनार्दन रेड्डी ने आज रविवार 25 दिसंबर को अपनी अलग पार्टी की घोषणा कर दी। हालांकि इन्हें रेड्डी ब्रदर्स के नाम से भी जाना जाता है। यह राज्य का महत्वपूर्ण राजनीतिक घटनाक्रम है। इस समय बीजेपी से कांग्रेस, कांग्रेस से बीजेपी और जेडीएस से कांग्रेस में नेताओं का सिलसिला भी चल रहा है।
रेड्डी की नई पार्टी का मतलब क्या है
खनन कारोबारी गली जनार्दन रेड्डी ने रविवार को 'कल्याण राज्य प्रगति पक्ष' पार्टी की घोषणा की है। यह घोषणा तब हुई जब कर्नाटक 2023 में विधानसभा चुनाव की तैयारी कर रहा है।
पूर्व बीजेपी नेता ने यह भी घोषणा की कि वह आगामी विधानसभा चुनाव गंगावती क्षेत्र से लड़ेंगे।
रेड्डी ने कहा कि पार्टी की शुरुआत एक नई राजनीतिक कड़ी है। मैं इसके जरिए कर्नाटक के लोगों का कल्याण करने और सेवा करने के लिए आया हूं। आगामी विधानसभा चुनावों में हर घर तक पहुंचने की कोशिश करूंगा। रेड्डी ने बीजेपी का नाम लिए बिना कहा-
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अगर राजनीतिक दल राज्य में लोगों को बांटने की कोशिश करेंगे और उसका फायदा उठाने की कोशिश करेंगे तो मैं बताना चाहता हूं कि यहां यह संभव नहीं है। राज्य के लोग हमेशा एकजुट रहे हैं और रहेंगे।
-गली जनार्दन रेड्डी, अध्यक्ष, कल्याण राज्य प्रगति पक्ष पार्टी, 25 दिसंबर 2022
उन्होंने बीजेपी नेता और मंत्री रामुलु के साथ अपने मतभेदों की अफवाहों का भी खंडन किया। उन्होंने कहा, बीजेपी में मेरा किसी से कोई विवाद नहीं है। रामुलु मेरे बचपन से ही घनिष्ठ मित्र रहे हैं और हमारे बीच अच्छे संबंध बने रहेंगे।
खनन कारोबारी गली जनार्दन रेड्डी को 2011 में करोड़ों के अवैध खनन मामले में गिरफ्तार किया गया था। 2015 में उन्हें जमानत मिल गई थी। सुप्रीम कोर्ट ने जमानत देते हुए उन्हें अपना पासपोर्ट जमा करने, कर्नाटक के बेल्लारी, आंध्र प्रदेश के अनंतपुर और कडप्पा में जाने पर भी रोक लगा दी।
-गली जनार्दन रेड्डी का पुराना फोटो
रेड्डी के नई पार्टी बनाने और बड़े पैमाने पर चुनाव में उतरने का संकेत देने का सीधा अर्थ है कि वो बीजेपी के लिए मुश्किल पैदा कर सकते हैं। क्योंकि वो हमेशा बीजेपी में रहे। बतौर कारोबारी पार्टी ने उन्हें प्रोजेक्ट भी किया था। इस तरह बीजेपी के वोट बैंक में उनकी पैठ है और शायद उसी पर उनकी नजर भी है। कर्नाटक में मुकाबला तीन कोणीय होने की संभावना है। ऐसे में अगर रेड्डी की पार्टी को दो-चार सीटें भी मिल गईं तो वो किसी भी दल से हाथ मिला सकते हैं।
ध्रुवीकरण की राजनीति
कर्नाटक ने अतीत में ध्रुवीकरण की ऐसी गंदी राजनीति कभी नहीं देखी थी, जैसा उसने 2022 में देखा। ऐसा ध्रुवीकरण अयोध्या आंदोलन के समय ही देखा गया था। तब लंबे समय बाद हालात सामान्य हुए थे। 2022 में हिजाब संकट के बाद हुए सांप्रदायिक ध्रुवीकरण ने अधिकांश आबादी को प्रभावित किया है और बीजेपी हिन्दू-मुसलमान को गहराई से बांटने में कामयाब है। कर्नाटक में घटी घटनाओं ने सभी गलत कारणों से अंतरराष्ट्रीय समुदाय का ध्यान भी आकर्षित किया।
सत्तारूढ़ बीजेपी ने अपने एक्शन से साफ कर दिया है कि वह हिंदुत्व के मुद्दे पर चुनाव लड़ने जा रही है। कांग्रेस की कर्नाटक इकाई ने आधिकारिक तौर पर घोषणा की है कि आंतरिक सर्वेक्षणों ने संकेत दिया है कि पार्टी कर्नाटक में एक आरामदायक बहुमत से जीतेगी।
दूसरी ओर, सत्तारूढ़ भाजपा ने गोहत्या विरोधी अधिनियम, धर्मांतरण विरोधी अधिनियम, स्कूल पाठ्यक्रम को फिर से डिजाइन करने, सावरकर को पाठ्यक्रम में शामिल करने, मैसूर के शासक टीपू सुल्तान के चैप्टर को हटाने, कक्षाओं में हिजाब बैन करने का नियम बनाने, मुस्लिम व्यापारियों का हिंदू धार्मिक स्थलों पर दुकान लगाने से रोकने विधानसभा हॉल में सावरकर का चित्र लगाने आदि कुछ एक्शन हैं, जिससे यह स्पष्ट हो गया कि आगामी चुनावों में भाजपा के लिए हिंदुत्व मुख्य एजेंडा होने जा रहा है।
भाजपा के राष्ट्रीय महासचिव बी.एल. संतोष स्पष्ट रूप से संकेत दिया है कि पार्टी पुराने मैसूर क्षेत्र में पैठ बनाने की योजना बना रही है। जिसे जद-एस का गढ़ माना जाता है। पूर्व मुख्यमंत्री व जद-एस नेता एच.डी. कुमारस्वामी ने इसकी पुष्टि की है।
पूर्व प्रधानमंत्री एच.डी. देवेगौड़ा ने घोषणा की है कि वह जेडी-एस को सत्ता में स्थापित करेंगे। कुमारस्वामी ने बीएल संतोष को चेतावनी दी कि चुनाव के बाद उन्हें उनके दरवाजे पर आना होगा। इसलिए वो सोचसमझ कर बोलें।
दूसरी ओर, आम आदमी पार्टी (आप) भी राज्य में अपनी उपस्थिति दर्ज कराने की तैयारी में है। राज्य संयोजक पृथ्वी रेड्डी बार-बार अपनी पार्टी द्वारा अपनाई जा रही वैकल्पिक राजनीति की बात कर रहे हैं, जिसे राष्ट्रीय दल कभी नहीं उठा पाएंगे।
जानकारों ने कहा है कि कर्नाटक दोराहे पर है और 2023 में होने वाले विधानसभा चुनाव के नतीजे राज्य की आगे की राह तय करने वाले हैं।
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