224 सीटों वाली कर्नाटक विधानसभा में अभी भाजपा के 119 विधायक हैं, जबकि कांग्रेस के पास 75 और उसके सहयोगी जद (एस) के पास 28 सीटें हैं। 2018 में जो चुनाव हुए थे, उसमें कांग्रेस और जेडीएस गठबंधन की सरकार बनी थी। क्योंकि बीजेपी के पास बहुमत नहीं था। लेकिन बाद में उसे दूसरे दलों के विधायकों का समर्थन मिला और उसने सरकार बना ली। लेकिन इसी दौरान उसे बीएस येदियुरप्पा को मुख्यमंत्री पद से हटाकर बसवराज बोम्मई को सीएम की कुर्सी पर बैठाना पड़ा। बीजेपी की सरकार बनने के बाद बीजेपी को अंदरुनी कलह का ज्यादा सामना करना पड़ा।
प्रधानमंत्री के 7 दौरे
2014 में केंद्र की सत्ता पाने के बाद बीजेपी हर चुनाव प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के चेहरे पर लड़ रही है। यहां तक कई नगर निगम चुनाव में भी मोदी के नाम पर वोट मांगे गए। यही वजह है कि कर्नाटक जैसे राज्य में जीत दर्ज कराने की योजना बीजेपी लंबे समय से बना रही है।पीएम नरेंद्र मोदी इस साल सात बार राज्य का दौरा कर चुके हैं। 25 मार्च को उनकी सातवीं यात्रा थी। तीन महीने में किसी राज्य में प्रधानमंत्री के 7 दौरे होना मामूली बात नहीं है। दुनिया के सबसे विशाल लोकतंत्र का सबसे व्यस्त प्रधानमंत्री अगर किसी राज्य के लिए तीन महीने में 7 बार दौरे कर रहा है तो इसका कुछ तो मतलब है। इसी क्रम में केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह और बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा के अनगिनत दौरे हुए।प्रधानमंत्री का हर कर्नाटक दौरा वोट बैंक के नजरिए से हुआ। उन्होंने 12 मार्च को पुराने मैसूर क्षेत्र के वोक्कालिगा क्षेत्र के मांड्या और उत्तर कर्नाटक के धारवाड़ में दो जनसभाओं को संबोधित किया था। मांड्या को जद (एस) का गढ़ माना जाता है। लेकिन वक्त बताएगा कि मोदी का जादू जेडीएस और कांग्रेस के वोट बैंक को कितना काटेगा।
क्या हैं मुद्दे
कर्नाटक में बीजेपी चुनाव नजदीक आते-आते ओबीसी राजनीति पर आ गई। राज्य में 54 फीसदी ओबीसी मतदाता हैं। हालांकि बीजेपी राज्य में विकास के मुद्दे पर चुनाव लड़ने की बात कहती रही है। 23 मार्च 2023 को उसने जब मुसलमानों का 4 फीसदी आरक्षण काटकर उसे वोक्लालिगा और लिंगायत में बांट दिया। लिंगायत समुदाय में पंचमसाली उप जाति के लोग लंबे समय से आरक्षण सीमा बढ़ाने की मांग कर रहे थे। बीजेपी ने यहां डबल कार्ड खेला। उसने ओबीसी समुदाय का आरक्षण कोटा बढ़ाया और दूसरी तरफ यह भी कहा कि उसने मुसलमानों का आरक्षण खत्म कर दिया है। इस तरह उसने राज्य में हिन्दू-मुस्लिम धार्मिक ध्रुवीकरण की राजनीति भी शुरू कर दी। लेकिन बीजेपी ने यह बात बड़ी होशियारी से छिपा ली कि चार फीसदी आरक्षण मुसलमानों की पिछड़ी जातियों को जेडीएस के नेतृत्व वाली देवगौड़ा सरकार ने कई दशक पहले दिया था।भ्रष्टाचार के मुद्दे पर बीजेपी ने जितना कांग्रेस को घेरने की कोशिश की, उतना वो उसमें फंसती चली गई। कर्नाटक कांग्रेस अध्यक्ष डीके शिवकुमार के घर कई बार छपे पड़े, उन्हें ईडी ने कई बार पूछताछ के लिए तलब किया। लेकिन जनता ने सरेआम देखा कि बीजेपी विधायक मदल विरुपक्षप्पा को 27 मार्च को करप्शन के आरोप में गिरफ्तार किया गया। बीजेपी विधायक के बेटे को 40 लाख की रिश्वत के आरोप में गिरफ्तार किया गया था। बाद में लोकायुक्त पुलिस के छापे में पिता-पुत्र के घर से 8 करोड़ रुपये बरामद किए गए थे।
कितने काम आएंगे येदियुरप्पा
बीजेपी ने येदियुरप्पा को उम्र के आधार पर मुख्यमंत्री पद से हटाया था, हालांकि उन पर भी करप्शन के गंभीर आरोप थे। लेकिन येदियुरप्पा के हटते ही लिंगायतों में बीजेपी की पकड़ ढीली होती चली गई। लिंगायतों के सारे मठों से येदियुरप्पा के संबंध बहुत बेहतर हैं। आखिरकार पीएम मोदी और शाह को दोबारा येदियुरप्पा को मनाना पड़ा और 10 मई 2023 के चुनाव की बागडोर उन्हें देना पड़ी। लेकिन यदियुरप्पा बहुत चतुर राजनीतिक खिलाड़ी हैं। उन्हें मालूम है कि कर्नाटक विधानसभा चुनाव के बाद फिर से उन्हें पर्दे के पीछे धकेल दिया जाएगा। इसलिए उन्होंने अपने बेटे विजयेंद्र को राजनीतिक रूप से स्थापित करने की शर्त रख दी है। विजयेंद्र इस समय प्रदेश बीजेपी में उपाध्यक्ष है।
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