loader
मुख्यमंत्री सिद्धारमैया

कर्नाटकः क्या मुख्यमंत्री सिद्धारमैया भी राजभवन की साजिश का शिकार हुए?

कर्नाटक में मुख्यमंत्री सिद्धारमैया के खिलाफ भाजपा का एक साल से चल रहा अभियान शनिवार को रंग लाया, जब आरएसएस के पुराने कार्यकर्ता और भाजपा नेता रहे राज्यपाल थावरचंद गहलोत ने कथित भ्रष्टाचार के आरोप में मुख्यमंत्री के खिलाफ मुकदमा चलाने की अनुमति दे दी। यह सब ठीक उसी अंदाज में हुआ, जैसा दिल्ली में मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल और बंगाल में मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के खिलाफ हुआ। केजरीवाल के खिलाफ बिना सबूत पेश किए उन्हें जेल भेज दिया गया। ममता बनर्जी को परेशान करने का अभियान पिछले पांच वर्षों से ज्यादा समय से चल रहा है लेकिन भाजपा को कामयाबी नहीं मिली। अलबत्ता आरोप यह लगा कि पहले जगदीप धनखड़ ने, फिर मौजूदा गवर्नर सीवी आनंद बोस ने और कोलकाता हाईकोर्ट के कुछ फैसलों ने ममता के खिलाफ माहौल बनाया। 

सिद्धारमैया के खिलाफ मुकदमा चलाने का राज्यपाल थावर चंद गहलोत का फैसला आरटीआई कार्यकर्ता टीजे अब्राहम की शिकायत के बाद आया, जिन्होंने कथित 'एमयूडीए घोटाले' को उजागर किया था। राज्यपाल ने शिकायतकर्ता को शनिवार दोपहर तीन बजे राजभवन में उनसे मिलने का निर्देश दिया। किसी मुख्यमंत्री पर मुकदमा चलाने के लिए राज्यपाल की अनुमति आवश्यक होती है।

ताजा ख़बरें

क्या है कथित MUDA मामला

विवाद मैसूरु के केसरू गांव में सिद्धारमैया की पत्नी पार्वती के स्वामित्व वाली 3.16 एकड़ जमीन को लेकर है। यह भूमि एक लेआउट प्लान को विकसित करने के लिए लिए MUDA द्वारा अधिग्रहित की गई थी। इसके बदले पार्वती को 50:50 योजना के तहत मुआवजे के रूप में 2022 में विजयनगर में 14 प्रीमियम साइटें आवंटित की गई थीं। आरोप है कि पार्वती को आवंटित भूखंड की संपत्ति का मूल्य उनकी भूमि के स्थान की तुलना में अधिक था, जिसे MUDA द्वारा अधिग्रहित किया गया था। हालांकि  सिद्धारमैया ने MUDA द्वारा अपनी पत्नी को अनुचित भूमि आवंटन के आरोपों से बार-बार इनकार किया है। उन्होंने कहा, "हमारी जमीन MUDA द्वारा अवैध रूप से ली गई थी, जिसके लिए वह (मेरी पत्नी) जमीन या मुआवजे की पात्र है।"

आरोप लगने के बाद जुलाई में, कर्नाटक सरकार ने मामले की जांच के लिए हाईकोर्ट के पूर्व जज जस्टिस पीएन देसाई के नेतृत्व में एक सदस्यीय जांच आयोग का गठन किया। लेकिन भाजपा ने मामले को राजनीतिक रंग दिया। वो जांच का आदेश देने से शांत नहीं हुई। उसने जगह-जगह प्रदर्शन किए और पदयात्रा निकाली।
कर्नाटक के मुख्यमंत्री सिद्धारमैया ने शनिवार को केंद्र पर राजनीति के लिए राजभवन का इस्तेमाल करने का आरोप लगाया। घटनाक्रम पर अपनी पहली प्रतिक्रिया में सिद्धारमैया ने आरोप लगाया कि यह उनकी चुनी हुई सरकार को गिराने की भाजपा की साजिश है। उन्होंने कहा कि कांग्रेस उनके साथ खड़ी है और राज्यपाल के फैसले को अदालत में चुनौती दी जाएगी। मुख्यमंत्री ने कहा, "पूरा मंत्रिमंडल मेरे साथ है। पूरा आलाकमान मेरे साथ है। सभी एमएलए और एमएलसी मेरे साथ खड़े हैं।" सिद्धारमैया ने कहा कि राज्यपाल का फैसला "संविधान विरोधी" और "कानून के खिलाफ" है।

डीके शिवकुमार का भी साथः सीएम सिद्धारमैया के साथ डिप्टी सीएम डीके शिवकुमार भी साथ खड़े हैं। डीके शिवकुमार ने शनिवार को कहा कि राज्य सरकार सिद्धारमैया के पीछे अपना पूरा जोर लगाएगी। उन्होंने कहा कि "हम सीएम सिद्धारमैया के साथ खड़े हैं। पार्टी, पूरा राज्य आलाकमान और मंत्रिमंडल उनके साथ खड़ा है। हम इसे कानूनी रूप से लड़ेंगे और हम इसे राजनीतिक रूप से भी लड़ेंगे... जो भी नोटिस और मंजूरी दी गई है वह कानून के खिलाफ है।" शिवकुमार ने कहा कि हमने इसे कानूनी रूप से लड़ने के लिए अपनी पूरी तैयारी कर ली है, यह पिछड़े वर्ग के सीएम सिद्धारमैया के खिलाफ एक स्पष्ट साजिश के अलावा कुछ नहीं है जो दूसरी बार सरकार चला रहे हैं।

कांग्रेस का कहना है कि 'बात यह है कि भाजपा ने जहां भी राज्यपाल नियुक्त किए हैं, चाहे वह पश्चिम बंगाल हो, कर्नाटक हो, तमिलनाडु हो या जहां भी (राज्यों में) गैर-भाजपा सरकार है, वे अधिक परेशानी पैदा कर रहे हैं।'

दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल इस समय जेल में हैं। पूर्व डिप्टी सीएम मनीष सिसोदिया अभी हाल ही में 17 महीने जेल में बिताकर बाहर आए हैं। दिल्ली सरकार के पूर्व मंत्री सत्येंद्र जैन अभी भी जेल में हैं। आप सांसद संजय सिंह को भी जेल भेजा गया, लेकिन कोर्ट ने उनको बाइज्जत जाने दिया। यह उस राज्य दिल्ली की कहानी है जहां उपराज्यपाल वीके सक्सेना ने शिकायतों के आधार पर आम आदमी पार्टी की सरकार में नाक में दम कर दिया है। अभी तक किसी भी नेता के खिलाफ कोर्ट में सबूत पेश नहीं किया जा सका है लेकिन मात्र शिकायतों के आधार पर लोग एक साल से ज्यादा समय जेल में बिताकर जमानत पर बाहर आ रहे हैं।
झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन को भी कथित जमीन घोटाले में जेल भेज दिया गया। लेकिन उनकी जमानत मंजूर करते समय हाईकोर्ट ने जांच एजेंसी ईडी की धज्जियां उड़ा दीं। कोर्ट ने कहा था कि ईडी के पास कोई सबूत हेमंत सोरेन के खिलाफ नहीं है। वो सिर्फ आरोप के आधार पर कार्रवाई कर रही है। जबकि पुलिस दस्तावेजों में कथित जमीन घोटाले का मामला कुछ और ही है। उसका एक मुख्यमंत्री से क्या लेना देना। 
केरल और तमिलनाडु के राज्यपालों पर भी इसी तरह वहां की चुनी हुई सरकारों को परेशान करने का आरोप है। तमिलनाडु में डीएमके का शासन है जबकि केरल में सीपीएम और उसके सहयोगी दलों की सरकार है। डीएमके ने हाल ही में कहा था कि आरएन रवि राज्यपाल जैसे संवैधानिक पद के योग्य नहीं हैं। केरल सरकार ने तो राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान को चांसलर के पद से ही हटा दिया। उनके खिलाफ सदन तक ने निन्दा की। आरिफ मोहम्मद खान को बुद्धिजीवी माना जाता है लेकिन वो केरल की चुनी हुई वामपंथी सरकार के खिलाफ इस तरह स्टैंड लेते हैं, जैसे कोई भाजपा का नेता लेता है।
विपक्षी दलों की राज्य सरकार के ख़िलाफ़ मोर्चा खोल देने वाले राज्यपालों में पश्चिम बंगाल के पूर्व राज्यपाल और वर्तमान उप राष्ट्रपति जगदीप धनखड़ का नाम विशेष रूप से उल्लेखनीय है। राज्यपाल बनने के बाद से ही धनखड़ का राज्य सरकार के साथ टकराव होता रहा। विपक्ष का तो यहां तक कहना है कि बंगाल में धनखड़ जिस तरह ममता बनर्जी के साथ पेश आए, उसी के इनाम में उन्हें उपराष्ट्रपति बनाया गया। वो राज्यसभा के सभापति भी हैं और विपक्ष के साथ उनका व्यवहार सामने है। विपक्ष का कहना है कि सदन में सभापति धनखड़ भाजपा नेता की तरह पेश आते हैं। अब शायद उनकी नजर राष्ट्रपति पद पर है। विपक्ष को इतना परेशान करने के बदले उन्हें यह पद मिल सकता है। पिछले दिनों धनखड़ प्रधानमंत्री मोदी के सामने जिस मुद्रा में खड़े हुए, वो खासा चर्चा का विषय रहा है। 
कर्नाटक से और खबरें
पंजाब के राज्यपाल बनवारी लाल पुरोहित और राज्य की भगवंत मान सरकार के बीच भी टकराव चला था। भगवंत मान सरकार ने जब 22 सितंबर 2023 को विधानसभा का विशेष सत्र बुलाया तो राज्यपाल ने पहले इसे मंजूरी दे दी थी और फिर रद्द कर दिया था। यह विवाद तब चल रहा था जब कयास लगाए जा रहे थे कि क्या आम आदमी पार्टी के विधायक टूटने वाले हैं। ये कयास इसलिए लगाए जा रहे थे क्योंकि अरविंद केजरीवाल ने आरोप लगाया था कि उनके विधायकों को खरीदने की कोशिश की गई।
सत्य हिन्दी ऐप डाउनलोड करें

गोदी मीडिया और विशाल कारपोरेट मीडिया के मुक़ाबले स्वतंत्र पत्रकारिता का साथ दीजिए और उसकी ताक़त बनिए। 'सत्य हिन्दी' की सदस्यता योजना में आपका आर्थिक योगदान ऐसे नाज़ुक समय में स्वतंत्र पत्रकारिता को बहुत मज़बूती देगा। याद रखिए, लोकतंत्र तभी बचेगा, जब सच बचेगा।

नीचे दी गयी विभिन्न सदस्यता योजनाओं में से अपना चुनाव कीजिए। सभी प्रकार की सदस्यता की अवधि एक वर्ष है। सदस्यता का चुनाव करने से पहले कृपया नीचे दिये गये सदस्यता योजना के विवरण और Membership Rules & NormsCancellation & Refund Policy को ध्यान से पढ़ें। आपका भुगतान प्राप्त होने की GST Invoice और सदस्यता-पत्र हम आपको ईमेल से ही भेजेंगे। कृपया अपना नाम व ईमेल सही तरीक़े से लिखें।
सत्य अनुयायी के रूप में आप पाएंगे:
  1. सदस्यता-पत्र
  2. विशेष न्यूज़लेटर: 'सत्य हिन्दी' की चुनिंदा विशेष कवरेज की जानकारी आपको पहले से मिल जायगी। आपकी ईमेल पर समय-समय पर आपको हमारा विशेष न्यूज़लेटर भेजा जायगा, जिसमें 'सत्य हिन्दी' की विशेष कवरेज की जानकारी आपको दी जायेगी, ताकि हमारी कोई ख़ास पेशकश आपसे छूट न जाय।
  3. 'सत्य हिन्दी' के 3 webinars में भाग लेने का मुफ़्त निमंत्रण। सदस्यता तिथि से 90 दिनों के भीतर आप अपनी पसन्द के किसी 3 webinar में भाग लेने के लिए प्राथमिकता से अपना स्थान आरक्षित करा सकेंगे। 'सत्य हिन्दी' सदस्यों को आवंटन के बाद रिक्त बच गये स्थानों के लिए सामान्य पंजीकरण खोला जायगा। *कृपया ध्यान रखें कि वेबिनार के स्थान सीमित हैं और पंजीकरण के बाद यदि किसी कारण से आप वेबिनार में भाग नहीं ले पाये, तो हम उसके एवज़ में आपको अतिरिक्त अवसर नहीं दे पायेंगे।
क़मर वहीद नक़वी
सर्वाधिक पढ़ी गयी खबरें

अपनी राय बतायें

कर्नाटक से और खबरें

ताज़ा ख़बरें

सर्वाधिक पढ़ी गयी खबरें