सिद्धारमैया के खिलाफ मुकदमा चलाने का राज्यपाल थावर चंद गहलोत का फैसला आरटीआई कार्यकर्ता टीजे अब्राहम की शिकायत के बाद आया, जिन्होंने कथित 'एमयूडीए घोटाले' को उजागर किया था। राज्यपाल ने शिकायतकर्ता को शनिवार दोपहर तीन बजे राजभवन में उनसे मिलने का निर्देश दिया। किसी मुख्यमंत्री पर मुकदमा चलाने के लिए राज्यपाल की अनुमति आवश्यक होती है।
क्या है कथित MUDA मामला
विवाद मैसूरु के केसरू गांव में सिद्धारमैया की पत्नी पार्वती के स्वामित्व वाली 3.16 एकड़ जमीन को लेकर है। यह भूमि एक लेआउट प्लान को विकसित करने के लिए लिए MUDA द्वारा अधिग्रहित की गई थी। इसके बदले पार्वती को 50:50 योजना के तहत मुआवजे के रूप में 2022 में विजयनगर में 14 प्रीमियम साइटें आवंटित की गई थीं। आरोप है कि पार्वती को आवंटित भूखंड की संपत्ति का मूल्य उनकी भूमि के स्थान की तुलना में अधिक था, जिसे MUDA द्वारा अधिग्रहित किया गया था। हालांकि सिद्धारमैया ने MUDA द्वारा अपनी पत्नी को अनुचित भूमि आवंटन के आरोपों से बार-बार इनकार किया है। उन्होंने कहा, "हमारी जमीन MUDA द्वारा अवैध रूप से ली गई थी, जिसके लिए वह (मेरी पत्नी) जमीन या मुआवजे की पात्र है।"
आरोप लगने के बाद जुलाई में, कर्नाटक सरकार ने मामले की जांच के लिए हाईकोर्ट के पूर्व जज जस्टिस पीएन देसाई के नेतृत्व में एक सदस्यीय जांच आयोग का गठन किया। लेकिन भाजपा ने मामले को राजनीतिक रंग दिया। वो जांच का आदेश देने से शांत नहीं हुई। उसने जगह-जगह प्रदर्शन किए और पदयात्रा निकाली।
डीके शिवकुमार का भी साथः सीएम सिद्धारमैया के साथ डिप्टी सीएम डीके शिवकुमार भी साथ खड़े हैं। डीके शिवकुमार ने शनिवार को कहा कि राज्य सरकार सिद्धारमैया के पीछे अपना पूरा जोर लगाएगी। उन्होंने कहा कि "हम सीएम सिद्धारमैया के साथ खड़े हैं। पार्टी, पूरा राज्य आलाकमान और मंत्रिमंडल उनके साथ खड़ा है। हम इसे कानूनी रूप से लड़ेंगे और हम इसे राजनीतिक रूप से भी लड़ेंगे... जो भी नोटिस और मंजूरी दी गई है वह कानून के खिलाफ है।" शिवकुमार ने कहा कि हमने इसे कानूनी रूप से लड़ने के लिए अपनी पूरी तैयारी कर ली है, यह पिछड़े वर्ग के सीएम सिद्धारमैया के खिलाफ एक स्पष्ट साजिश के अलावा कुछ नहीं है जो दूसरी बार सरकार चला रहे हैं।
कांग्रेस का कहना है कि 'बात यह है कि भाजपा ने जहां भी राज्यपाल नियुक्त किए हैं, चाहे वह पश्चिम बंगाल हो, कर्नाटक हो, तमिलनाडु हो या जहां भी (राज्यों में) गैर-भाजपा सरकार है, वे अधिक परेशानी पैदा कर रहे हैं।'
दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल इस समय जेल में हैं। पूर्व डिप्टी सीएम मनीष सिसोदिया अभी हाल ही में 17 महीने जेल में बिताकर बाहर आए हैं। दिल्ली सरकार के पूर्व मंत्री सत्येंद्र जैन अभी भी जेल में हैं। आप सांसद संजय सिंह को भी जेल भेजा गया, लेकिन कोर्ट ने उनको बाइज्जत जाने दिया। यह उस राज्य दिल्ली की कहानी है जहां उपराज्यपाल वीके सक्सेना ने शिकायतों के आधार पर आम आदमी पार्टी की सरकार में नाक में दम कर दिया है। अभी तक किसी भी नेता के खिलाफ कोर्ट में सबूत पेश नहीं किया जा सका है लेकिन मात्र शिकायतों के आधार पर लोग एक साल से ज्यादा समय जेल में बिताकर जमानत पर बाहर आ रहे हैं।
केरल और तमिलनाडु के राज्यपालों पर भी इसी तरह वहां की चुनी हुई सरकारों को परेशान करने का आरोप है। तमिलनाडु में डीएमके का शासन है जबकि केरल में सीपीएम और उसके सहयोगी दलों की सरकार है। डीएमके ने हाल ही में कहा था कि आरएन रवि राज्यपाल जैसे संवैधानिक पद के योग्य नहीं हैं। केरल सरकार ने तो राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान को चांसलर के पद से ही हटा दिया। उनके खिलाफ सदन तक ने निन्दा की। आरिफ मोहम्मद खान को बुद्धिजीवी माना जाता है लेकिन वो केरल की चुनी हुई वामपंथी सरकार के खिलाफ इस तरह स्टैंड लेते हैं, जैसे कोई भाजपा का नेता लेता है।
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