डीके शिवकुमार के मामले में सीबीआई को कर्नाटक हाईकोर्ट से तगड़ा झटका लगा है। डीके शिवकुमार के खिलाफ आय से अधिक संपत्ति के मामले में फिलहाल सीबीआई जांच नहीं हो पाएगी। ऐसा इसलिए कि हाईकोर्ट ने सीबीआई जाँच के लिए सहमति वापस लेने के राज्य सरकार के कदम को चुनौती देने वाली याचिकाओं को खारिज कर दिया। सीबीआई और विपक्षी भाजपा विधायक बसंगौड़ा पाटिल यतनाल ने याचिकाएँ दायर की थीं। याचिकाओं में उन्होंने शिवकुमार के ख़िलाफ़ भ्रष्टाचार के आरोपों की सीबीआई जांच के लिए सहमति वापस लेने के सिद्धारमैया सरकार के फ़ैसले को चुनौती दी थी।
राज्य में सत्तारूढ़ कांग्रेस सरकार ने नवंबर 2023 में उनके ख़िलाफ़ मामले की जांच के लिए सीबीआई से सहमति वापस ले ली थी और मामले को लोकायुक्त के पास भेज दिया था। फरवरी में लोकायुक्त पुलिस ने शिवकुमार के खिलाफ मामला दर्ज किया था। पिछले सप्ताह कर्नाटक के उपमुख्यमंत्री शिवकुमार अपने खिलाफ आय से अधिक संपत्ति मामले की जांच के लिए लोकायुक्त पुलिस के समक्ष पेश हुए थे।
सीबीआई ने सितंबर 2020 में शिवकुमार के खिलाफ एफआईआर दर्ज की थी, जिसमें आरोप लगाया गया था कि उन्होंने 2013 और 2018 के बीच अपनी आय के ज्ञात स्रोतों से अधिक संपत्ति अर्जित की है। उस दौरान वह तत्कालीन कांग्रेस सरकार में मंत्री थे। सुप्रीम कोर्ट ने 15 जुलाई को डीके शिवकुमार की उस याचिका को खारिज कर दिया था, जिसमें उन्होंने सीबीआई द्वारा उनके खिलाफ दर्ज एफआईआर को चुनौती दी थी। कोर्ट ने कहा था कि वह हाईकोर्ट के आदेश में हस्तक्षेप नहीं कर सकता। हाईकोर्ट ने अक्टूबर 2023 में उनकी याचिका खारिज कर दी थी और केंद्रीय एजेंसी को मामले की जांच पूरी करने और तीन महीने के भीतर रिपोर्ट दाखिल करने का निर्देश दिया था।
इस बीच कांग्रेस सरकार ने शिवकुमार की कथित अवैध संपत्तियों की जांच के लिए सहमति वापस लेने का फ़ैसला 28 नवंबर 2023 को किया था। इसने मामले को जांच के लिए लोकायुक्त को भेजने के लिए 26 दिसंबर, 2023 को आदेश जारी किया था। इसी को सीबीआई और बीजेपी विधायक ने चुनौती दी थी।
जस्टिस के सोमशेखर और उमेश अडिगा की पीठ ने गुरुवार को इसकी सुनवाई की। कोर्ट ने फैसले में कहा है कि याचिकाओं में उठाए गए मुद्दों को सर्वोच्च न्यायालय निपटा जाना चाहिए।
डीके शिवकुमार का प्रतिनिधित्व वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल और अभिषेक मनु सिंघवी ने किया।
सीबीआई और भाजपा विधायक ने सुप्रीम कोर्ट के आदेशों का हवाला दिया, जिसमें राज्य की सहमति वापस लेने के बाद भी सीबीआई जांच जारी रखने की अनुमति दी गई थी। द इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार 1994 के खाजी लेंडुप दोरजी बनाम सीबीआई मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले का हवाला दिया, जिसमें शीर्ष अदालत ने फैसला सुनाया था कि सीबीआई जांच के लिए सहमति रद्द करने से मामलों पर कोई असर नहीं पड़ेगा।
शिवकुमार के वकील ने तर्क दिया कि शून्य सहमति आदेश के आधार पर राज्य में सीबीआई का प्रवेश संघवाद का उल्लंघन होगा, जो संविधान के मूल ढांचे का हिस्सा है। तर्क दिया गया कि खाजी दोरजी मामले में सामान्य सहमति शामिल थी, जबकि शिवकुमार के मामले में सीबीआई जांच के लिए विशिष्ट सहमति शामिल थी, ऐसा तर्क दिया गया। उन्होंने तर्क दिया कि 25 सितंबर, 2019 को जारी किया गया मूल सरकारी आदेश- जब भाजपा सत्ता में थी - सीबीआई को जांच के लिए मंजूरी देने से दुर्भावना की बू आती है।
बता दें कि सबसे पहले आयकर विभाग की जांच में भ्रष्टाचार के आरोप सामने आए थे। इसकी जांच के लिए ईडी द्वारा भेजे गए संदर्भ के बाद तत्कालीन भाजपा सरकार द्वारा दी गई सहमति के आधार पर सीबीआई ने 3 अक्टूबर, 2020 को शिवकुमार के खिलाफ आय से अधिक संपत्ति का मामला दर्ज किया था। मई 2023 में सत्ता में आई कांग्रेस सरकार ने 23 नवंबर, 2023 को कैबिनेट के फ़ैसले के बाद शिवकुमार के ख़िलाफ़ आय से अधिक संपत्ति के आरोपों की जाँच के लिए सीबीआई को 2019 में दी गई सहमति वापस ले ली। कांग्रेस ने कहा है कि 2020 में एफआईआर दर्ज होने से पहले ही मामला 2019 में सीबीआई को सौंप दिया गया था।
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