कर्नाटक की कांग्रेस-जेडीएस सरकार फिर गहरे संकट में है। यह संकट तब और गहरा दिखने लगा जब विधानसभा के बजट सत्र में व्हिप जारी होने के बावजूद कांग्रेस के 9 विधायक हाज़िर नहीं हुए। ये 9 बाग़ी कांग्रेसी विधायक वही हैं जो शुरू से बीजेपी के संपर्क में रहे हैं। अगले दो दिन में बजट पेश होना है और इसमें ही यह साफ़ हो जाएगा कि कुमारस्वामी स्वामी सरकार बचेगी या गिर जाएगी।
कांग्रेस के लिए इस बार मामला इस वजह से बेहद पेचीदा है क्योंकि 8 फ़रवरी यानी शुक्रवार को विधानसभा में बजट पेश किया जाना है। सूत्र बताते हैं कि बीजेपी बजट पेश होने नहीं देगी और यह दावा करेगी कि कुमारस्वामी सरकार अल्पमत में है और उसने बजट पेश करने का अधिकार खो दिया है। वहीं कांग्रेस और जेडीएस की यह कोशिश है कि वे अपने पाले के सभी विधायकों को बचाये रखें। दोनों पार्टियों को यह डर इसलिए सताने लगा है कि इस बार बीजेपी ने 9 विधायकों को अपनी ओर खींच लिया है। दो निर्दलीय विधायक पहले ही बीजेपी के साथ आ चुके हैं। इन दोनों निर्दलीय विधायकों ने सरकार से समर्थन वापसी की चिट्ठी राज्यपाल को पहले ही सौंप दी है।
बात बिलकुल साफ़ है, अगर 9 बाग़ी कांग्रेसी विधायक आज भी सत्र में नहीं आते हैं तो यह लगभग तय हो जाएगा कि वे बीजेपी के साथ चले गये हैं। ऐसी स्थिति में शुक्रवार को यह देखना होगा कि बीजेपी के विधायक बजट पेश होने देते हैं या नहीं।
बीजेपी की रणनीति है कि एंटी-डिफ़ेक्शन लॉ के तहत ‘डिसक्वालिफाई’ होने से पहले ही 9 बाग़ी विधायकों के ज़रिये सरकार के ख़िलाफ़ वोट करवा दिया जाए। सूत्र बताते हैं कि बीजेपी शुक्रवार को यह कहते हुए बजट पेश नहीं होने देगी कि सरकार चलाने के लिए कांग्रेस-जेडीएस गठबंधन के पास बहुमत नहीं है। बीजेपी वोटिंग की डिमांड करेगी और वोटिंग के दौरान 9 बाग़ी विधायक सरकार के ख़िलाफ़ मतदान करेंगे। अगर ऐसा ही हुआ तो सरकार अल्पमत में आ जाएगी। बीजेपी मान रही है कि फ़िलहाल कोई कारण नहीं है कि कांग्रेस के बाग़ी विधायकों की विधानसभा सदस्यता रद्द की जा सके। अगर वे सरकार के ख़िलाफ़ वोट डालते हैं तब ही वे ‘अयोग्य’ होंगे। अगर इन विधायकों का वोट सरकार के ख़िलाफ़ गया तो सरकार का गिरना तय है, क्योंकि आँकड़े इसी ओर इशारा कर रहे हैं।
- इन ख़तरों के बीच ही कांग्रेस और जेडीएस ने इस बार नयी रणनीति अपनाई है। सत्ता में साझीदार इन दोनों पार्टियों ने अपने विधायकों को बाग़ी होने से बचाने के अलावा आक्रामक रुख़ भी अपनाया है।
कांग्रेस और जेडीएस ने सरकार बचाने के लिए ‘काउंटर अटैक’ की रणनीति अपनायी है। दोनों पार्टियाँ बीजेपी विधायकों को तोड़ने की कोशिश में हैं। राज्यपाल के अभिभाषण के दौरान बीजेपी के 4 विधायक अनुपस्थित थे। इनकी ग़ैर-मौजूदगी ने बीजेपी को भी परेशानी में डाला है।
लेकिन, बीजेपी के सूत्र बताते हैं कि येदियुप्पा ने सुनिश्चित कर लिया है कि उनका कोई भी विधायक पाला नहीं बदलेगा। बीजेपी की ओर से हर बार की तरह येदियुरप्पा मोर्चा संभाले हुए हैं तो वहीं कांग्रेस की ओर से सिद्दारमैया- डी. के. शिव कुमार की जोड़ी और जेडीएस की ओर से ख़ुद मुख्यमंत्री कुमारस्वामी सरकार बचाने की क़वायद में दूसरों से आगे हैं।
सरकार गिराने से बीजेपी को क्या फ़ायदा?
सूत्रों की मानें तो बीजेपी आला कमान को लगता है कि अगर यह सरकार लोकसभा चुनाव तक टिकी रही तो कांग्रेस और जेडीएस मिलकर चुनाव लड़ेंगे। इन दोनों पार्टियों के साथ मिलकर चुनाव लड़ने से बीजेपी को नुक़सान होगा क्योंकि मुक़ाबला सीधे कांग्रेस-जेडीएस गठबंधन और बीजेपी के बीच होगा। अगर सरकार गिर गयी और गठबंधन टूट गया तब कांग्रेस, जेडीएस और बीजेपी के बीच त्रिकोणीय मुक़ाबला होगा और इस मुक़ाबले में बीजेपी को फ़ायदा होगा। यही वजह है कि जब से कर्नाटक में कुमारस्वामी सरकार बनी है तभी से बीजेपी ने कांग्रेस और जेडीएस के बाग़ी विधायकों को अपने पाले में लाने की कोशिश शुरू कर दी थी। अब तक कुमारस्वामी सरकार को गिराने के लिए आठ बार कोशिशें की जा चुकी हैं। इन कोशिशों के दौरान ‘रिसॉर्ट राजनीति’ भी हुई, जिसके तहत दोनों खेमों ने अपने-अपने विधायकों को दूसरों के पाले में जाने से बचाने के लिए उन्हें बेंगलुरु से दूर रिसॉर्ट में रखा। इस बार रिसॉर्ट राजनीति संभव नहीं है क्योंकि विधानसभा का बजट सत्र चल रहा है।
येदियुरप्पा ने साफ़ कह दिया है कि वह कुमारस्वामी सरकार के ख़िलाफ़ अविश्वास प्रस्ताव नहीं लाएँगे और सरकार ख़ुद-ब-ख़ुद गिर जाएगी। उन्होंने इशारों-इशारों में ही बजट पेश किये जाने के समय बड़ी राजनीतिक घटना होने का संकेत दिया है।
आँकड़ों में देखिए सरकार का भविष्य
आँकड़ों के मुताबिक़, इस समय 224 सीटों वाली कर्नाटक विधानसभा में कुमारस्वामी सरकार को 118 सदस्यों का समर्थन हासिल है, इसमें कांग्रेस से 80, जेडीएस के 37 शामिल हैं। बीजेपी के पास 104 विधायक हैं और उसे दो निर्दलीयों का भी समर्थन हासिल है। यानी अगर बीजेपी को सरकार गिरानी है तो उसे सत्ताधारी पक्ष से सिर्फ़ 7 विधायकों को तोड़ना होगा। ऐसी स्थिति में सत्ताधारी पक्ष के पास सिर्फ 111 विधायक होंगे और विपक्ष के पास 113 विधायक। और ऐसा होने पर अगर वोटिंग हुई तो सरकार गिर जाएगी। मौजूदा स्थिति को देखकर तो यही लग रहा है कि बीजेपी ‘ऑपरेशन लोटस’ को कामयाब बनाने के बहुत ही क़रीब पहुँच गयी है।
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