कर्नाटक के सियासी नाटक का अंत होता नहीं दिख रहा है। राज्यपाल वजुभाई वाला ने मुख्यमंत्री कुमारस्वामी को एक और चिट्ठी लिखकर शुक्रवार शाम 6 बजे से पहले विश्वास मत हासिल करने के लिए कहा था। लेकिन यह समयसीमा ख़त्म हो गई और फ़्लोर टेस्ट नहीं हुआ। इससे पहले भी राज्यपाल ने शुक्रवार दोपहर 1.30 बजे तक का वक्त दिया था, लेकिन तब भी सदन में फ़्लोर टेस्ट नहीं हुआ था।
सियासी संकट का हल न होते देख कर्नाटक कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष दिनेश गुंडू राव ने दोबारा सुप्रीम कोर्ट में दस्तक दी है। दिनेश गुंडू राव ने अदालत में याचिका दायर कर कहा है कि कोर्ट के पिछले आदेश से उनकी पार्टी के अधिकारों का हनन हुआ है। बता दें कि सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश में विधायकों को व्हिप से छूट दे दी थी। कुमारस्वामी ने भी सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर राज्यपाल के आदेश को चुनौती दी है। कांग्रेस का कहना है कि उसके पास यह अधिकार है कि वह पार्टी विधायकों को व्हिप जारी कर सकती है और जब सदन चल रहा हो तो राज्पाल किसी तरह के निर्देश नहीं दे सकते या डेडलाइन नहीं जारी कर सकते हैं। पार्टी का कहना है कि अभी फ़्लोर टेस्ट की ज़रूरत है।
Siddaramaiah,Congress on trust vote debate in Karnataka assembly: The discussion is still not complete and 20 members are yet to participate.I don’t think it will finish today and it will continue on Monday also. (file pic) pic.twitter.com/pmCUng1GeL
— ANI (@ANI) July 19, 2019
बता दें कि गुरुवार को भी राज्यपाल ने विधानसभा के स्पीकर रमेश कुमार को पत्र लिखकर कहा था कि उसी दिन (गुरुवार को) विश्वास मत की प्रक्रिया को पूरा कर लिया जाए। लेकिन स्पीकर रमेश कुमार ने सदन को दिन भर के लिए स्थगित कर दिया था। इसके बाद बीजेपी के विधायक विधानसभा के भीतर ही रात भर के लिए धरने पर बैठ गए थे और उन्होंने सरकार से राज्यपाल के पत्र का जवाब देने और फ़्लोर टेस्ट कराने की माँग की थी।
बीजेपी फ़्लोर टेस्ट की माँग पर अड़ी हुई है। गुरुवार को सदन में पूर्व मुख्यमंत्री और बीजेपी नेता बीएस येदियुरप्पा ने स्पीकर से कहा था कि भले ही रात के 12 बज जाएँ, मगर विश्वास प्रस्ताव पर वोटिंग गुरुवार को ही कराएँ। इस तरह कर्नाटक का यह सियासी ड्रामा गुरुवार दिन व रात भर चला। शुक्रवार सुबह बीजेपी विधायकों की विधानसभा परिसर में मॉर्निंग वॉक पर जाने की तसवीरें भी सामने आईं।
लेकिन कर्नाटक के सियासी संकट पर संवैधानिक स्थिति बिल्कुल स्पष्ट है कि राज्यपाल स्पीकर को किसी भी तरह का आदेश या सलाह नहीं दे सकते। और संविधान के ही मुताबिक़, स्पीकर इस मामले में राज्यपाल की सलाह या आदेश मानने के लिए बाध्य नहीं हैं। तो फिर ऐसी स्थिति में क्या होगा। अगर आज भी स्पीकर बाग़ी विधायकों के इस्तीफ़ों पर या उन्हें अयोग्य साबित करने को लेकर कोई फ़ैसला नहीं लेते, तो फिर क्या होगा। ऐसे में लगता है कि कांग्रेस-बीजेपी फिर से सुप्रीम कोर्ट का रुख कर सकते हैं।
BJP State President BS Yeddyurappa at Vidhana Soudha, Bengaluru: We are 101 per cent confident. They are less than 100, we are 105. There is no doubt that their motion will be defeated. pic.twitter.com/JdutzxPbaC
— ANI (@ANI) July 18, 2019
यह राजनीतिक संकट तब शुरू हुआ था जब कांग्रेस और जेडीएस के 13 विधायकों ने इस्तीफ़ा दे दिया था और बाद में कई और विधायकों ने भी इस्तीफ़ा दिया था। हालाँकि विधानसभा के स्पीकर ने इसे मंज़ूर नहीं किया था। बाद में इस मामले को कोर्ट में ले जाया गया। सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई के दौरान राज्य में 16 जुलाई तक स्थिति को जस की तस बनाए रखने का आदेश दिया था। इस बीच कांग्रेस नेतृत्व ने बाग़ी विधायकों को मनाने की बहुत कोशिश की और अपने संकटमोचक डी.के. शिवकुमार को भी भेजा, लेकिन उससे बहुत ज़्यादा सफलता नहीं मिली।
कर्नाटक की सत्ता पर लंबे समय से बीजेपी की नज़र है। लोकसभा चुनाव में सबसे ज़्यादा सीटें जीतने के बाद भी वह सरकार बनाने में नाकामयाब रही थी। सरकार बनाने के लिए उसने ‘ऑपरेशन लोटस’ भी चलाया था और कांग्रेस-जेडीएस के विधायकों को तोड़ने की कोशिश की थी।
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