कर्नाटक में एक बार फिर से सियासी पारा ऊपर चढ़ गया है। सूत्रों की मानें तो बीजेपी ने कुमारस्वामी सरकार को गिराने के लिए 'ऑपरेशन लोटस' को नए सिरे से शुरू किया है। सूत्रों के मुताबिक़ बीजेपी इस बार सरकार नहीं बनना चाहती है, वह बस सरकार गिराना चाहती है। बीजेपी के नेता चाहते हैं कि कर्नाटक में कुमारस्वामी सरकार गिरने के बाद विधानसभा भंग करवा दी जाय और लोकसभा चुनाव के साथ ही कर्नाटक में विधानसभा चुनाव भी करवा दिए जाएँ। विश्वसनीय सूत्र बताते हैं कि बीजेपी के रणनीतिकारों को लगता है कि लोकसभा और विधानसभा के चुनाव साथ-साथ होने पर ही कर्नाटक में बीजेपी को बहुत फ़ायदा होगा। इतना फ़ायदा कि वह कर्नाटक में अपने दम पर सरकार बना लेगी और लोकसभा की 28 सीटों में से कम से कम 20 पर उसकी जीत होगी।
बीजेपी की नज़र कांग्रेस के उन विधायकों पर है जो मंत्री न बनाये जाने से नाराज़ हैं, ख़ासतौर पर लिंगायत समुदाय के विधायकों पर। बीजेपी की नज़र बहुजन समाज पार्टी के इकलौते विधायक एन. महेश, निर्दलीय विधायक आर. शंकर पर भी है।
- अगर आँकड़ों की बात करें तो 224 सीटों वाली कर्नाटक विधानसभा में अभी कुमारस्वामी सरकार को 120 सदस्यों का समर्थन हासिल है, इसमें कांग्रेस से 80, जेडीएस के 37, बहुजन समाज पार्टी और कर्नाटक प्रज्ञावन्त जनता पार्टी के एक-एक और एक निर्दलीय विधायक शामिल हैं।
बीजेपी के पास 104 विधायक हैं। यानी अगर बीजेपी को सरकार गिरानी है तो उसे सत्ताधारी पक्ष से 9 विधायकों को तोड़ना होगा। ऐसी स्थिति में सत्ताधारी पक्ष के पास सिर्फ 111 विधायक होंगे और विपक्ष के पास 113 विधायक। और ऐसा होने पर अगर विश्वासमत हुआ तो सरकार गिर जाएगी।
विधानसभा भंग कराने में दिलचस्पी क्यों?
बड़ी दिलचस्प बात यह है कि बीजेपी ने अब तक जितनी बार भी ऑपेरशन लोटस चलाया है तो वह कुमारस्वामी सरकार को गिराकर येदियुरप्पा सरकार बनाने के लिए ही किया है। लेकिन सूत्रों की मानें तो इस बार कोशिश विधानसभा भंग करवाने की है। इसके पीछे एक खास रणनीति और राजनीतिक चाल है। अगर कांग्रेस के विधायक पाला बदलते हैं तो वे एन्टी-डिफ़ेक्शन लॉ के तहत विधानसभा की अपनी सदस्यता खो देंगे। अगर यह काम विश्वासमत से पहले हुआ तो शायद कुमारस्वामी सरकार बच भी जाय। राजनीतिक जानकार मानते हैं कि कांग्रेस-जेडीएस की सरकार के रहते इन बाग़ी विधायकों के लिए उप-चुनाव जीतना आसान नहीं होगा। वैसे तो बीजेपी ने सत्तापक्ष के 12 विधायकों को अपनी ओर खींचने की कोशिश शुरू की है, लेकिन उसे उम्मीद है कि 20 जनवरी से पहले कम से कम 9 उसके पक्ष में आ जाएँगे और इससे सरकार गिर जाएगी। बीजेपी को ज़्यादा भरोसा लिंगायत समुदाय से जुड़े कांग्रेस के पाँच विधायकों पर है। इनमें से 4 को विधानसभा का टिकट और एक को लोकसभा का टिकट देने का भरोसा दिया गया है।
- और तो और, इस बार सरकार गिराने की चर्चा उस समय शुरू हुई जब कांग्रेस के कद्दावर नेता और कर्नाटक सरकार में मंत्री डी. के. शिवकुमार ने यह आरोप लगाया कि कुमारस्वामी सरकार को गिराने के लिए कांग्रेस के विधायकों को ख़रीदने की कोशिश शुरू की है।
कांग्रेस के मंत्री डीके शिवकुमार ने आरोप लगाया कि बीजेपी ने एक बार फिर 'ऑपरेशन लोटस' शुरू किया है। शिवकुमार ने यह संकेत देकर मामला और रोचक बना दिया कि मुख्यमंत्री कुमारस्वामी भी बीजेपी की ओर झुकते नज़र आ रहे हैं।
कुमारस्वामी की क्या रही है परेशानी?
ग़ौरलतब है कि जबसे कर्नाटक में जेडीएस और कांग्रेस की सरकार बनी है तभी से दोनों पार्टियों के बीच का रिश्ता नाज़ुक ही रहा है। पार्टियों में गठजोड़ हुआ है लेकिन दोनों पार्टियों के नेताओं के दिल नहीं मिल पाए हैं। ख़ुद मुख्यमंत्री कुमारस्वामी सार्वजनिक तौर पर यह कह चुके हैं कि सरकारी कामकाज में कुछ कांग्रेसी नेताओं की दखलंदाज़ी से वे बहुत परेशान हैं और सही तरह से अपनी ज़िम्मेदारी नहीं निभा पा रहे हैं। कुमारस्वामी का इशारा हमेशा कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गाँधी और पूर्व मुख्यमंत्री सिद्दरामैया की ओर रहा है। वहीं बीजेपी, कांग्रेस और जेडीएस के नाराज़ विधायकों को अपनी ओर खींच कर सरकार गिराने की कोशिशें रुक-रुक कर करती ही रही है। ऑपरेशन लोटस के नाम से हुई इन कोशिशों से भी कुमारस्वामी काफ़ी परेशान रहे हैं।
मीडिया में उनके स्वास्थ्य को लेकर आती ख़बरों ने भी कुमारस्वामी को परेशान किया है। लेकिन इस बार बीजेपी की बदली रणनीति ने सभी को चौकन्ना कर दिया है। कर्नाटक में सियासी नाटक एक बार फिर से बड़े रोचक मोड़ पर आ खड़ा हुआ है। सूत्रों के मुताबिक़ बीजेपी ने येदियुरप्पा से साफ़ कह दिया है कि यह उनके लिए आख़िरी मौका होगा। यानी येदियुरप्पा के लिए संदेश साफ़ है - अभी नहीं तो कभी नहीं। इतना साफ़ है कि अगर इस बार ऑपरेशन लोटस कामयाब नहीं हुआ तो लोकसभा चुनाव के बाद केंद्र में नई सरकार के बनने तक तो कुमारस्वामी सरकार चलेगी।
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