टीपू सुल्तान पर फिर विवाद हो गया है। इस बार वजह है कर्नाटक के मुख्यमंत्री बी.एस. येदियुरप्पा का बयान। येदियुरप्पा ने अपने बयान में संकेत दिए हैं कि उनकी सरकार माध्यमिक स्कूलों के इतिहास की किताब से टीपू सुल्तान के पाठ को हटाने की तैयारी कर रही है। उन्होंने कहा है कि मुझे नहीं लगता है कि 18वीं सदी में मैसूर के राजा रहे टीपू सुल्तान स्वतंत्रता सेनानी थे। उन्होंने यह भी कहा कि हम इस पर ग़ौर करेंगे और इसकी जाँच करेंगे।
मुख्यमंत्री येदियुरप्पा ने कहा, 'हम टीपू से जुड़ा सब कुछ हटा रहे हैं। किताबों से भी सामग्री हटाने पर विचार किया जा रहा है।' उनकी यह प्रतिक्रिया बीजेपी विधायक अप्पाचु राजन की उस माँग के बाद आई है जिसमें राजन ने ग़लत जानकारी दिए जाने का आरोप लगाते हुए किताबों से टीपू सुल्तान से जुड़े पाठ को हटाने की माँग की थी। इसके बाद राज्य के प्राथमिक और माध्यमिक शिक्षा मंत्री सुरेश कुमार ने भी अधिकारियों से कह दिया था कि वे राजन की माँग के संबंध में तीन दिन में रिपोर्ट दें। और अब येदियुरप्पा का बयान आया है। विपक्षी पार्टी कांग्रेस ने बीजेपी के इस रुख की आलोचना की है और कहा कि पाठ को किताब से हटाने का मतलब होगा- इतिहास से छेड़छाड़।
यह पहला मौक़ा नहीं है जब टीपू सुल्तान पर विवाद हुआ है। कर्नाटक में सत्ता में आने के तुरंत बाद जुलाई में बीजेपी सरकार ने टीपू सुल्तान की जयंती समारोह को ख़त्म कर दिया था। यह एक वार्षिक सरकारी कार्यक्रम था जिसको सिद्धारमैया के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार के दौरान शुरू किया गया था। इसका 2015 से ही बीजेपी विरोध कर रही थी।
टीपू सुल्तान को ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी का दुश्मन माना जाता था। श्रीरंगपटना में अपने क़िले का बचाव करते समय ब्रिटिश सेना से लड़ाई के दौरान मई, 1799 में उनकी हत्या कर दी गई थी।
कई इतिहासकार टीपू को एक धर्मनिरपेक्ष और आधुनिक शासक के रूप में देखते हैं जिसने अंग्रेज़ों की ताक़त को चुनौती दी थी। टीपू एक राजा थे और किसी भी मध्ययुगीन राजा की तरह उन्होंने बग़ावत करने वाली प्रजा का मनोबल तोड़ने के लिये अत्याचार किया। मध्य युग के राजाओं का इतिहास ऐसी घटनाओं से भरा पड़ा है। इस आधार पर टीपू को शैतान बताना या हिंदुओं का दुश्मन कहना, कहाँ तक सही होगा। इतिहास में ऐसे ढेरों उदाहरण हैं, जो ये साबित करते हैं कि टीपू सुल्तान ने हिंदुओं की मदद की। उनके मंदिरों का जीर्णोंद्धार करवाया। उसके दरबार में लगभग सारे उच्च अधिकारी हिंदू ब्राह्मण थे। इसका सबसे बड़ा उदाहरण है श्रंगेरी के मठ का पुनर्निर्माण।
1790 के आसपास मराठा सेना ने इस मठ को तहस-नहस कर दिया था। मठ के स्वामी सच्चिदानंद भारती तृतीय ने तब मैसूर के राजा टीपू सुल्तान से मदद की गुहार लगायी थी। दोनों के बीच तक़रीबन तीस चिट्ठियों का आदान-प्रदान हुआ था। ये पत्र आज भी श्रंगेरी मठ के संग्रहालय में पड़े हैं। टीपू ने एक चिट्ठी में स्वामी को लिखा-
“
जिन लोगों ने इस पवित्र स्थान के साथ पाप किया है उन्हें जल्दी ही अपने कुकर्मों की सजा मिलेगी। गुरुओं के साथ विश्वासघात का नतीजा यह होगा कि उनका पूरा परिवार बर्बाद हो जायेगा।
टीपू सुल्तान की स्वामी सच्चिदानंद भारती तृतीय को चिट्ठी
लेकिन बीजेपी और कुछ हिंदू संगठन टीपू को एक ‘धार्मिक कट्टरपंथी’ और ‘क्रूर हत्यारे’ के रूप में देखते हैं। कुछ कन्नड़ संगठन टीपू को ‘कन्नड़ विरोधी’ कहते हुए स्थानीय भाषा की क़ीमत पर फारसी को बढ़ावा देने का उनपर आरोप लगाते रहे हैं।
इतिहास ठीक से नहीं लिखा गया: बीजेपी
अक्टूबर 2017 में भी टीपू सुल्तान पर विवाद हुआ था। बीजेपी महासचिव कैलाश विजयवर्गीय ने कहा था कि टीपू सुल्तान के ऐतिहासिक किरदार पर बहस होनी चाहिए। विजयवर्गीय ने यह बयान उस वक़्त दिया था जब कर्नाटक की कांग्रेस सरकार की तरफ़ से 10 नवम्बर को टीपू सुल्तान जयंती मनाने की कवायद को लेकर सियासत तेज़ हो रही थी। तब बीजेपी के एक अन्य नेता अनंत कुमार हेगड़े ने मैसूर के 18वीं सदी के शासक टीपू के ‘महिमामंडन’ का विरोध करते हुए कर्नाटक सरकार से कहा था कि वह उन्हें टीपू सुल्तान जयंती के 'शर्मनाक' कार्यक्रम में नहीं बुलाए।
विजयवर्गीय ने कहा था कि देश के इतिहास को ठीक तरह से नहीं लिखा गया। उन्होंने कहा था, ‘देश का इतिहास लिखने वाले कहीं न कहीं अंग्रेज़ों के ग़ुलाम रहे हैं। उन्होंने जान-बूझकर ऐसा इतिहास लिखा कि हमें अपने महापुरुषों पर गर्व नहीं हो सके, जैसे महाराणा प्रताप और अकबर समकालीन थे। इतिहास में अकबर को तो महान बता दिया गया। लेकिन देश की संस्कृति की रक्षा के लिए जंगलों में रहकर घास की रोटी खाने वाले महाराणा प्रताप को महान नहीं कहा गया।’
इसी महीने ख़ुद गृह मंत्री अमित शाह ने भी इतिहास बदलने की बात दोहराई है। उन्होंने बनारस में एक कार्यक्रम में कहा था कि इतिहास को भारत के दृष्टिकोण से लिखे जाने की ज़रूरत है। वह सावरकर के संदर्भ में बोल रहे थे और उन्होंने कहा कि यदि वीर सावरकर नहीं होते तो 1857 में आज़ादी की पहली लड़ाई को सिर्फ़ एक विद्रोह माना गया होता। बीजेपी लंबे समय से इतिहास के पन्नों को बदलना चाहती है। पार्टी को लगता है कि कुछ ऐसे लोग रहे हैं जिनको सही परिप्रेक्ष्य में पेश नहीं किया गया। तो क्या टीपू सुल्तान पर दिया गया येदियुरप्पा का बयान बीजेपी के इसी ‘बड़े उद्देश्य’ का हिस्सा है?
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