हेमंत सोरेन को काँटों का ताज़ मिला है, यह तो साफ़ है। अब सवाल यह उठता है कि वे अपने पड़ोसी राज्य बिहार के मुख्यमंत्री नीतिश कुमार के पहले कार्यकाल से शिक्षा लेते हुए गुड गवर्नेंस पर ध्यान देकर स्थिति संभालने की कोशिश करते हैं या बिहार के ही पूर्व मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव की तरह पहचान की राजनीति के सहारे दिन काटते हैं।
कर्ज़ का बोझ
रघुबर दास ने 2014 में जब सत्ता संभाली थी, झारखंड सरकार पर 39 हज़ार करोड़ रुपए से ज़्यादा का कर्ज़ था। जब उन्होंने गद्दी छोड़ी, सरकार पर कर्ज़ बढ़ कर 85 हज़ार करोड़ रुपए हो चुका था। यानी रघुबर दास सरकार ने लगभग 46 हज़ार करोड़ रुपए का कर्ज़ 5 साल में लिया, चुकाया एक पैसा नहीं। यह झारखंड में किसी मुख्यमंत्री के द्वारा लिया गया सबसे ज़्यादा कर्ज़ है।ख़ज़ाना खाली
सोरेन सरकार की मुख्य दिक्क़त कर्ज चुकाने की नहीं है, वह तो बाद की बात है, पहला संकट तो यह है कि ख़जाना खाली है। सरकारी कर्मचारियों के वेतन भुगतान के लिए पैसे नहीं हैं और इसके लिए राज्य सरकार को ओवरड्राफ़्ट लेना होगा।बेरोज़गारी
नेशनल सर्वे सैंपल ऑफ़िस (एनएसएसओ) ने इस साल मई में बेरोज़गारी के जो आँकड़े दिए थे, उसके अनुसार झारखंड में बेरोज़गारी दर 7.7 प्रतिशत है, जो पूरे देश में 5वीं सबसे ऊंची दर है। शिक्षित युवाओं में यह और ज़्यादा है। राज्य में 46 प्रतिशत पोस्ट ग्रैजुएट और 49 प्रतिशत ग्रैजुएट बेरोज़गार हैं।शिक्षित युवाओं में हर पाँचवाँ युवक बेरोज़गार है। सरकार ने 2018-19 के दौरान एक लाख युवकों को रोज़गार से जुड़े तरह-तरह के प्रशिक्षण दिए, पर उनमें से 80 प्रतिशत लोगों को नौकरी नहीं मिली है। एक मोटे अनुमान के मुताबिक़, झारखंड में लगभग 4 लाख लोग बेरोज़गार हैं।
ख़स्ताहाल उद्योग-धंधे
लेकिन बेरोज़गारी इस दौर में रोज़गार के मौके बनाना राज्य सरकार के लिए बेहद मुश्किल भरा काम है। इसकी वजह यह है कि राज्य का जो बड़ा उद्योग इस्पात है, वह ख़स्ताहाल है। जमशेदपुर स्थित टाटा स्टील के संयंत्र को उत्पादन कम करना पड़ा है, क्योंकि घरेलू और अंतरराष्ट्रीय बाज़ार में इस्पात की माँग कम हो गई है। इसे इससे भी समझ सकते हैं कि टाटा स्टील ने अपनी यूरोपीय ईकाई बंद कर दी है। जमशेदपुर संयंत्र में लोगों पर छंटनी की तलवार लटक रही है।चौपट खदान
खनिज पदार्थ के लिए पूरे देश में मशहूर झारखंड में खदानों की स्थिति बहुत बेहतर नहीं है, क्योंकि ज़्यादातर खदानों से अयस्क ही निकलते हैं, जिनकी ज़रूरत इस्पात उद्योग को है। पर इस्पात उद्योग में तो मंदी है।राँची स्थिति सरकारी कंपनियाँ मेकॉन, बीएचईएल बुरी हाल में है। पतरातू स्थित राज्य सरकार का ताप बिजलीघर एनटीपीसी ले चुका है। घाटशिला स्थित हिन्दुस्तान कॉपर लिमिटेड लगभग बंद हो चुका है।
कम खाद्यान्न
झारखंड में खाद्यान्न उत्पादन ज़रूरत से कम है। राज्य को सालाना 50 लाख टन खाद्यान्न की ज़रूरत है, पर यहां उत्पादन 40 लाख टन के आसपास ही होता है। शेष यह बिहार से लेता है। बिहार से तो यह अब भी ले ही सकता है, पर इसके लिए पैसे चाहिए, जो सरकार के पास नहीं हैं।नक्सलवाद
झारखंड के 13 ज़िले नक्सलवाद से प्रभावित हैं। खूंटी, गुमला, लातेहार, रांची, गिरिडीह, पलामू, गढ़वा, सिमडेगा, दुमका, लोहरदगा, बोकारो और चतरा में कई जगहों पर नक्सलवादी आन्दोलन चल रहे हैं। हेमंत सोरेन ने पहले भी कहा है कि उनकी पार्टी सरकार में आई तो इस समस्या से निपटेगी।
यह आन्दोलन सरकार बदलने से ख़त्म नहीं होगा। राज्य सरकार इसके ख़िलाफ़ बड़ा अभियान छेड़ कर इसे नियंत्रित कर सकती है, पर उसके लिए जो पैसे चाहिए, वह सरकार के पास नहीं होंगे।
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