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झारखंड चुनाव में क्या प्याज की बढ़ी क़ीमतों से बढ़ेंगी बीजेपी की मुश्किलें?

पहले से ही आर्थिक मोर्चे पर और महाराष्ट्र में फ़ज़ीहत से ख़राब दौर से गुज़र रही बीजेपी के लिए झारखंड चुनाव में क्या प्याज की बढ़ी क़ीमतें बड़ा नुक़सान करेंगी? झारखंड में बीजेपी के लिए प्याज की क़ीमतें एक नयी मुसीबत इसलिए भी है कि उसके सहयोगी दल अलग-अलग चुनाव लड़ रहे हैं और विपक्षी दल गठबंधन में। पिछले विधानसभा चुनाव में भी बीजेपी प्रत्याशियों की जीत बहुत बड़े अंतर से नहीं हुई थी। ऐसे में प्याज की बढ़ी क़ीमतें क्या झारखंड बीजेपी के लिए बड़ी चुनौती होगी?

झारखंड में चुनाव हो रहे हैं। पहले चरण का चुनाव हो चुका है, चार चरणों के चुनाव अभी बाक़ी हैं। इस बीच प्याज की क़ीमतें 70 रुपये प्रति किलो पहुँच गई हैं। क़रीब-क़रीब हर भोजन में पड़ने वाला प्याज हर आदमी को प्रभावित करता है, इसलिए इसके दाम बढ़ने से सरकारें भी ख़ौफ़ खाती हैं। चुनावों के समय जब-जब प्याज के दाम बढ़े हैं, सरकारें मुश्किल में आ गई हैं और कई बार तो गिर भी गई हैं।

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1998 में दिल्ली में सुषमा स्वराज के नेतृत्व वाली बीजेपी सरकार और राजस्थान में भैरों सिंह शेखावत के नेतृत्व वाली सरकार को प्याज के बढ़े दाम की क़ीमत चुकानी पड़ी थी। चुनाव में यह मुद्दा ज़ोर-शोर से उठा था। विपक्ष ने प्याज की बढ़ी क़ीमतों को चुनावी मुद्दा बनाया। इसके बाद चुनाव परिणाम विपक्ष के पक्ष में आए।

प्याज की बढ़ी क़ीमतों के ये नतीजे राजनेताओं के लिए चिंता पैदा करती हैं। यही कारण है कि सरकार पहले से डैमेज कंट्रोल में जुटी हुई थी। लेकिन लाख कोशिशों के बावजूद क़ीमतें नियंत्रण में नहीं आईं।

नेशनल हॉर्टिकल्चर बोर्ड यानी एनएचबी के आँकड़े के अनुसार झारखंड में नवंबर महीने में 6870 मिट्रि्क टन प्याज आया था, जबकि पिछले साल इसी अवधि में यह 9710 मिट्रिक टन रहा था। राज्य में प्याज की क़ीमतें इस अप्रैल महीने से ही गिरती रही हैं। एक अप्रैल को राँची में प्याज 13 रुपये प्रति किलो था जबकि 29 नवंबर को यह 70 रुपये किलो तक पहुँच गया है। यह क़रीब 438 फ़ीसदी बढ़ोतरी है। पिछले साल नवंबर में राँची में जहाँ 1610 रुपये प्रति क्विंटल था वह इस साल नवंबर में 5533 रुपये प्रति क्विंटल पहुँच गया है। यानी क़रीब तीन गुना ज़्यादा बढ़ोतरी हुई है।

जानकारों का मानना है कि प्याज की इतनी ज़्यादा क़ीमत बढ़ने का चुनाव नतीजों पर असर होना तय है। यही बात बीजेपी नेता भी मानते हैं। 'द इंडियन एक्सप्रेस' की रिपोर्ट के अनुसार झारखंड के चुनावी तैयारी में जुटे एक नेता ने कहा, 'महाराष्ट्र में जो हुआ उसके बाद, पार्टी को अपनी छवि को फिर से हासिल करने के लिए एक प्रभावशाली जीत की सख़्त ज़रूरत है। देश भर के कार्यकर्ता, विशेषकर दिल्ली और बिहार के चुनावों के लिए कमर कसने वालों के मनोबल को बढ़ावा देना ज़रूरी है। हालाँकि, आर्थिक मोर्चे पर बुरी ख़बर - गिरती हुई जीडीपी, नौकरी की घटती संभावनाएँ और दूसरी निराशा ने उन्हें पहले ही कमज़ोर कर दिया है। अगर प्याज के दाम ऊँचे रहे तो निश्चित रूप से यह हमें चुनावों में नुक़सान पहुँचाएगा।'
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आर्थिक मोर्चे पर बीजेपी सरकार की हालत ख़राब है। अब तो बड़े क़ारोबारी राहुल बजाज के ख़राब आर्थिक हालात पर बयान देने के बाद सरकार बैकफ़ुट पर आ गई है। बता दें कि शुक्रवार को ही जारी आँकड़ों के मुताबिक़, दूसरी छमाही में सकल घरेलू उत्पाद वृद्धि की दर 4.5 प्रतिशत दर्ज की गई। यह 6 साल की न्यूनतम विकास दर है। सबसे अहम 8 कोर औद्योगिक क्षेत्रों में विकास दर शून्य से नीचे रही। पर यह पहले से भी नीचे गई है। पिछली तिमाही में यह -5.2 प्रतिशत थी तो अब यह और गिर कर -5.8 प्रतिशत पर पहुँच गई है। बेरोज़गारी रिकॉर्ड स्तर पर है। लोगों की ख़रीदने की क्षमता कम हुई है और इससे सामान की माँग घटी है।

प्याज के बढ़े दाम बीजेपी के लिए शुभ संकेत नहीं!

रिपोर्ट के अनुसार, राज्य में बीजेपी के चुनावी नतीजे पर छोटे-छोटे मुद्दे भी असर डालेंगे। यह इसलिए है क्योंकि पिछले विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने अधिकतर सीटें 10 हज़ार से भी कम वोटों के अंतर से जीती थीं। 19 सीटें पर 5000 से कम वोटों का जीत का अंतर रहा था। 

अब बीजेपी के लिए एक बड़ा झटका यह भी है कि राज्य में बीजेपी का गठबंधन किसी भी दल के साथ नहीं है। इस सरकार में बीजेपी के साथ रहे झारखंड स्टूडेंट्स यूनियन यानी आसजू व दूसरे सहयोगी दल जदयू और लोक जनशक्ति पार्टी यानी एलजेपी अलग-अलग चुनाव लड़ रहे हैं। दूसरी ओर विपक्षी गठबंधन एकजुट है। झारखंड मुक्ति मोर्चा, कांग्रेस और राष्ट्रीय जनता दल यानी आरजेडी ने चुनाव से पहले ही गठबंधन कर लिया है। 

ऐसे में प्याज की क़ीमतें बढ़ना बीजेपी के लिए शुभ संकेत नहीं हैं!

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अमित कुमार सिंह
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