भारतीय जनता पार्टी के दुबारा केंद्र की सत्ता में आने और अमित शाह के गृह मंत्री बनने के बाद पूरे जम्मू-कश्मीर का ध्यान इस ओर है कि अब धारा 35 ए पर क्या होगा? जम्मू-कश्मीर की समस्या से सख़्ती से निपटने की बात करने वाली बीजेपी अब इस धारा पर क्या रुख अपनाएगी, यह सवाल पूछा जाना लाज़िमी है।
धारा 35 ए को चुनौती देते हुए एक याचिका सुप्रीम कोर्ट में पड़ी हुई है। पर अमित शाह के गृह मंत्री बनने के बाद यह सवाल बार-बार पूछा जा रहा है कि क्या केंद्र सरकार अध्यादेश लाकर इस धारा को ख़त्म कर देगी? यह सवाल इसलिए भी पूछा जा रहा है कि चुनाव के ठीक पहले जारी बीजेपी के ‘संकल्प पत्र’ में ज़ोर देकर इसे हटाने की बात कही गई थी। इसके बाद तत्कालीन वित्त मंत्री अरुण जेटली ने एक ब्लॉग लिख कर इसे 'क़ानूनी रूप से कमज़ोर' बताते हुए कहा था कि इसे अदालत में बड़ी आसानी से रद्द किया जा सकता है।
यह कहा जा सकता है कि वह चुनाव का दौर था और चुनावी सरगर्मी में कही गई बात है, जिसका अब उतना महत्व नहीं रहा। पर बीजेपी ने ऐसा कुछ नहीं कहा है जिससे यह अनुमान लगे कि सरकार इस पर थोड़ी गंभीरता दिखाए। इसकी वजह यह है कि चुनाव के बाद जम्मू-कश्मीर बीजेपी के प्रमुख ने यह मुद्दा उठाया था। उन्होंने ज़ोर देकर कहा था कि धारा 370 और धारा 35 ए को हर हाल में ख़त्म किया जाना चाहिए।
क्या है धारा 35 ए?
धारा 35 ए के तहत राज्य के स्थायी निवासियों की पहचान की गई है और उन्हें राज्य में रहने, नौकरी करने और वजीफ़ा के लिए विशेषाधिकार दिए गए हैं। इसके तहत दूसरे राज्य के लोग जम्मू-कश्मीर में अचल संपत्ति नहीं ख़रीद सकते, वहाँ के निवासी नहीं बन सकते। वे वहाँ राज्य सरकार की नौकरी भी नहीं कर सकते, न ही उन्हें राज्य सरकार की किसी लोक कल्याण योजना का लाभ मिल सकता है।दिल्ली समझौता, 1952, जारी होने के बाद राष्ट्रपति ने संवैधआनिक आदेश 1954 जारी किया। इसमें राज्य के लोगों के मौलिक अधिकारों से जुड़ कई बातें शामिल की गईं। लेकिन ये प्रावधान महाराजा हरि सिंह के शासनकाल में 1927 और 1932 में जारी मौलिक अधिकारों के ख़िलाफ़ थे। लिहाज़ा, उन्हें ठीक करने के लिए नया संवैधानिक आदेश जारी किया गया। इस आदेश में राज्य के बाहर के लोगों के अचल संपत्ति ख़रीदने और नौकरी करने पर रोक लगा दी गई। बाद में इंस्ट्रूमेंट्स ऑफ एक्सेसन के पैरा 8 में इसकी पुष्टि कर दी गई।
इस धारा को ‘क़ानूनी रूप से कमज़ोर’ बताने वालों का तर्क है कि इसके लिए धारा 368 के तहत अध्यादेश जारी नहीं किया गया था, बल्कि ‘गुपचुप तरीके’ से संवैधानिक आदेश जारी कर दिया गया था।
क़ानूनी रूप से कमज़ोर?
धारा 370 में कहा गया है कि ‘राष्ट्रपति जम्मू-कश्मीर के लोगों के मौलिक अधिकारों में बदलाव कर सकते हैं।’ सुप्रीम कोर्ट ने 'सम्पत प्रकश बनाम जम्मू-कश्मीर राज्य' के मामले में इसकी पुष्टि कर दी। अदालत ने कहा, धारा 370 विशेष प्रावधान है, जिसके तहत जम्मू-कश्मीर में संविधान लागू करने के बारे में छूट दी जा सकती है। धारा 368 से राष्ट्रपति को धारा 370 के तहत प्राप्त अधिकारों में कटौती नहीं होती है।
संविधान के पार्ट तीन के आलोक में 1954 के संवैधानिक आदेश को देखने से यह साफ़ होता है कि धारा 35 ए कोई अलग से जोड़ी गई नई चीज नहीं है, यह 1927 और 1932 के प्रावधानों को जारी रखने के लिए जोड़ा गया प्रावधान है।
यदि सरकार धारा 35 ए को रद्द करने की बात सोचे तो इसका असर धारा 370 पर भी पड़ेगा। धारा 370 की कुछ बातों को जारी रखने के लिए ही धारा 35 ए को जोड़ा गया था। एक को हटाने से दूसरे की कुछ चीजें प्रभावित हो सकती हैं।
एक बात और साफ़ है कि यदि धारा 35 ए को रद्द कर दिया जाए तो भी बाहर के लोगों को जम्मू-कश्मीर में स्थायी तौर पर बसने, अचल संपत्ति खरीदने या नौकरी करने का हक़ नहीं मिलेगा। इसकी वजह यह है कि यह बात इंस्ट्रूमेंट्स ऑफ़ एक्शेसन के पैरा 8 में जोड़ी हुई है।
क्या करेंगे अमित शाह?
सवाल तो यह है कि क्या अमित शाह इस तरह का कोई फ़ैसला ले सकते हैं? जम्मू-कश्मीर बीजेपी के प्रमुख अश्विनी कुमार च्रंगू ने कहा है कि 'यदि सुप्रीम कोर्ट धारा 35 ए को वैध ठहराएगी तो केंद्र सरकार उसे ख़त्म करने के लिए राष्ट्रपति आदेश ले कर आएगी। उन्होंने कहा, 'धारा 35 ए से जुड़ी याचिका सुप्रीम कोर्ट में है और हम इस पर फ़ैसला आने का इंतजार करेंगे। यदि अदालत ने कहा कि 1954 का राष्ट्रपति आदेश ग़लत था, तो बात ही ख़त्म हो जाएगी। लेकिन यदि सुप्रीम कोर्ट ने उसे वैध ठहराया तो धारा को ख़त्म करने के लिए अध्यादेश लाया जाएगा।'
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धारा 35 ए के ज़रिए संविधान ही नहीं, संसद को भी छला गया। इसे गुपचुप तरीके से लाया गया था। हम इसे ख़त्म करेंगे क्योंकि हमने देश से इसका वायदा किया है।
अश्विनी कुमार च्रंगू, अध्यक्ष, जम्मू-कश्मीर बीजेपी
मोदी की विशिष्ट शैली
इससे ऐसा लगता है कि मोदी सरकार राज्य बीजेपी के दबाव में आकर अध्यादेश ला सकती है। लेकिन पर्यवेक्षकों का कहना है कि मोदी की शासन शैली उनकी निजी इच्छा से काम करने की है, वह न तो कैबिनेट की सुनते हैं और न ही पार्टी की, वह एक तरह से राष्ट्रपति प्रणाली जैसा शासकीय ढाँचा रखते हैं। वह वही करते हैं जो ख़ुद चाहते हैं। इसे इससे भी समझा जा सकता है कि राम मंदिर के मुद्दे पर उन्होंने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ तक को नाराज़ कर दिया, लेकिन किया वही जो उन्होंने ख़ुद चाहा। बदली हुई प्राथमिकता
पर्यवेक्षकों का यह भी कहना है कि फ़िलहाल मोदी अर्थव्यवस्था पर ध्यान देंगे और इसे दुरुस्त करने की कोशिश करेंगे। उन्होंने इसी वजह से निर्मला सीतारमण को वित्त मंत्री बनाया है, क्योंकि वह तेज़ तर्रार समझी जाती हैं। ऐसे में वह किसी नए विवाद में फंसने से बचना चाहेंगे। दूसरी बात यह है कि जिस तरह उन्होंने विदेश सचिव रह चुके एस जयशंकर को विदेश मंत्री बनाया, ऐसा लगता है कि वह अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत की छवि ठीक करने की कोशिश कर सकते हैं। इसे इससे भी समझा जा सकता है कि पाकिस्तान को लेकर मोदी का रवैया नरम हो चुका है। भारत और पाकिस्तान ने एक-दूसरे के लिए अपनी-अपनी हवाई सीमा खोल दी है, दोनों देशों की सेनाओं ने एक-दूसरे को ईद पर मिठाई भी भेंट कर दी है। करतारपुर साहिब पर बात चल रही है, आगे भी बात करने पर भारत राजी है। किर्गिस्तान की राजधानी बिसकेक में होने वाली संघाई सहयोग संगठन की बैठक में पाकिस्तान पर हमला नहीं करने के चीन के आग्रह को भारत ने मान लिया है। यह सहमति बनी है कि भारत आतंकवाद की बात करेगा, पर किसी देश का नाम नहीं लेगा। ज़ाहिर है, भारत अपने पड़ोसी देश की ओर धीरे धीरे बढ़ रहा है। ऐसे में नई दिल्ली ऐसा कुछ नहीं करेगी जिससे दोनों देशों के बीच तनाव बढ़े।
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हम बिसकेक में निश्चित तौर पर आतंकवाद का मुद्दा ज़ोरो से उठाएँगे, क्योंकि यह हमारे लिए अहम है। पर हम किसी देश का नाम नहीं लेंगे।
गीतेश सर्मा, सचिव (पश्चिम), विदेश मंत्रालय
धारा 35 ए को ख़त्म करने से जम्मू-कश्मीर में ज़बरदस्त प्रतिक्रिया होगी, जिसका असर पूरे देश पर पड़ेगा। उसके बाद कश्मीर में जो हिंसा भड़केगी, उसे संभालना सरकार के लिए बेहद मुश्किल होगा। अमित शाह काम शुरू करते ही इस झमले में क्यों पड़ेंगे, ख़ास कर तब जब इससे कोई फ़ायदा नहीं होने को है। उनकी पार्टी को बहुमत मिला हुआ है, निकट भविष्य में होने वाली विधानसभा चुनावों में भी उन्हें कोई बड़ी चुनौती नहीं मिल रही है। जहाँ तक जम्मू-कश्मीर का सवाल है, वहाँ की स्थिति ऐसी नहीं है कि बीजेपी चुनाव जीतने और सरकार बनाने की हालत में हो। इस फ़ैसले के बाद उसकी स्थिति बदतर होगी, वह किसी भी सूरत में इस फ़ैसले को उचित नहीं ठहरा पाएगी। ऐसे में वह क्यों इस तरह के फ़ैसले करे?
यह मुमकिन है कि बीजेपी बीच-बीच में धारा 370 और धारा 35 ए को ख़त्म करने की माँग करती रहे, जैसा वह अब तक करती आई है। जम्मू-कश्मीर में चुनाव के समय वहाँ के बीजेपी नेता इस पर कुछ ज़्यादा तीखे तेवर अपने लें, जैसा राम मंदिर पर कई नेताओं ने किया था। लेकिन सरकार इस पर चुप्पी साधे रहे या बहाना बनाती रहे। इसी तरह समय काटा जाए और इसे अगले चुनाव में एक बार फिर भुनाने के लिए छोड़ दिया जाए।
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