5 अगस्त को जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 को हटाये जाने के बाद से राज्य में बंद मोबाइल फ़ोन सेवाओं को सोमवार से खोल दिया गया है। राज्य के प्रशासन ने बीते शनिवार को इस बात की घोषणा की थी। लगभग 40 लाख पोस्टपेड मोबाइल फ़ोन आज से चालू हो गये हैं जबकि 20 लाख प्रीपेड मोबाइल फ़ोन और इंटरनेट सेवाओं को अभी निलंबित ही रखा गया है।
पीटीआई के मुताबिक़, राज्यपाल सत्यपाल मलिक के सलाहकार फ़ारुक़ ख़ान ने पत्रकारों से कहा कि फ़ोन सेवा के शुरू होने से एक बार फिर राज्य में पर्यटकों के आने की उम्मीद है। ख़ान ने इस बात पर जोर दिया कि जम्मू-कश्मीर में कट्टरता के लिए कोई जगह नहीं है और घाटी के युवाओं ने पाकिस्तान के कश्मीर को बर्बाद करने की पूरी कोशिशों के बाद भी कट्टरता की राह को नहीं पकड़ा है।
शनिवार को श्रीनगर की हरि सिंह स्ट्रीट में हुए ग्रेनेड बम धमाके को लेकर पूछे जाने पर ख़ान ने कहा कि इस तरह के हमलों का कोई असर नहीं होगा। इस हमले में सात लोग घायल हो गए थे।
“
पाकिस्तान जम्मू-कश्मीर में शांति के माहौल को ख़त्म करने की कोशिशों को जारी रखेगा लेकिन हम भी इसका माक़ूल जवाब देने के लिए तैयार हैं।
फ़ारुक़ ख़ान, सलाहकार, राज्यपाल सत्यपाल मलिक
आतंरिक दस्तावेज़ से पता चला है कि कश्मीर में पिछले दो महीने में पत्थरबाज़ी की 306 घटनाएं हुई हैं और इन घटनाओं में सुरक्षा बलों के लगभग 100 जवान भी घायल हुए हैं। घायल हुए जवानों में सेंट्रल पैरामिलिट्री फ़ोर्स के 89 जवान शामिल हैं।
बीडीसी चुनाव का बहिष्कार
ख़बरों के मुताबिक़, राज्यपाल की ओर से घाटी में पर्यटकों की आवाजाही को खोलने के आदेश के बाद भी कोई पर्यटक यहां नहीं आया है। इसके अलावा बीडीसी चुनावों को लेकर भी राजनीतिक दलों के बीच कोई उत्साह नहीं है और बीजेपी को छोड़कर बाक़ी सभी राजनीतिक दलों ने घोषणा की है कि वे इस चुनाव में हिस्सा नहीं लेंगे।
केंद्र ने अनुच्छेद 370 हटाने के फ़ैसले से पहले राज्य में बड़ी संख्या में जवानों को तैनात कर दिया था। इसके बाद राज्य के पूर्व मुख्यमंत्रियों फ़ारूक अब्दुल्ला, उमर अब्दुल्ला और महबूबा मुफ़्ती को हिरासत में ले लिया था और अभी तक ये तीनों प्रमुख नेता हिरासत में हैं।
सरकार को लिखे गये ख़त
इस बीच, देश भर से केंद्र सरकार को कश्मीर को लेकर लोगों ने खत लिखे। हाल ही में देश के 284 प्रबुद्ध नागरिकों के एक समूह ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद को ख़त लिख कर कहा था कि कश्मीर की स्थिति अस्वीकार्य है। ख़त पर दस्तख़त करने वालों में पत्रकार, अकादमिक जगत के लोग, राजनेता और समाज के दूसरे वर्गों के लोग शामिल हैं। ख़त में केरल हाई कोर्ट के उस फ़ैसले का भी हवाला दिया गया है, जिसमें इंटरनेट को मौलिक अधिकार माना गया है।
अपनी राय बतायें