ऐसे समय जब अफ़ग़ानिस्तान में तालिबान ने सरकार पर हमले रोक दिए हैं और भारत-चीन सीमा तनाव चरम पर है, पाकिस्तानी सेना ने जम्मू-कश्मीर में आतंकवाद की नई रणनीति तैयार की है। उसका मक़सद तालिबान, जैश-ए-मुहम्मद, हिज़बुल मुजाहिदीन और लश्कर-ए-तैयबा को मिला कर एक समेकित आतंकवादी कमान जैसी संरचना बनाना है, जो घाटी में बड़े पैमाने पर हमले कर सके।
नई पाक आतंकवादी रणनीति में समन्वय, योजना, काम के बंटवारे और संसाधनों के उचित इस्तेमाल पर ज़ोर है ताकि भारत के इस इलाक़े में अधिक से अधिक कुहराम मचाया जा सके। आतंकवादी गुटों की ज़िम्मेदारी, भूमिका, उनके सरगनाओं का काम सबकुछ तय कर दिया गया है। इस पूरे ऑपरेशन को चलाने का जिम्मा पाकिस्तानी सेना के ख़ुफ़िया विंग इंटर सर्विसेज इंटेलीजेंस यानी आईएसआई को सौंपा गया है।
हिन्दुस्तान टाइम्स के अनुसार, पाकिस्तानी सेना के रावलपिंडी स्थित जनरल हेडक्वार्टर्स ने अगस्त 2019 में ही लश्कर-ए-तैयबा, जैश-ए-मुहम्मद और हिज़बुल मुजाहिदीन के कमांडरों के साथ अलग-अलग बैठकें कर सबको एक कमान में जोड़ने पर सहमति बना ली थी। यह भारतीय संविधान के अनुच्छेद 370 में संशोधन कर कश्मीर को दिए गए विशेष दर्जे को ख़त्म करने के फ़ैसले के तुरन्त बाद ही कर लिया गया था।
भारतीय ख़ुफ़िया एजेंसियों ने उसके कुछ दिन बाद ही सरकार को चेतावनी दी थी कि इसके साथ ही जैश-ए-मुहम्मद के कमांडर मुफ़्ती मुहम्मद अशगर ख़ान ने कश्मीरी आतंकवादियों से संपर्क साध कर उन्हें भी आईएसआई अफ़सरों से जोड़ा था। इस तरह इस पूरे ऑपरेशन को देखने वाले आईएसआई अफ़सरों ने इन प्रतिबंधित आतंकवादी गुटों के सरगनाओं से बात कर उन्हें पूरी बात समझाई और उन्हें एक सूत्र में पिरोया था।
आतंकवादियों का सम्मेलन
हिन्दुस्तान टाइम्स ने ख़ुफ़िया एजेन्सियों के हवाले से कहा है कि 27 दिसंबर, 2019 को जमात-उद-दावा के महासचिव अमीर हमजा ने जैश-ए-मुहम्मद के बहावलपुर स्थित मरकज़ सुभान अल्लाह में मौजूद संगठन के सरगनाओं से बात की थी। जमात-उद-दावा दरअसल लश्कर-ए-तैयबा की मातृ संस्था है जो खुले आम काम करता है और पाकिस्तान में प्रतिबंधित नहीं है।
इस बातचीत का अगला दौर 3-8 जनवरी और उसके बाद 19 जनवरी को इस साल चला। इन बैठकों में जैश के वास्तविक अर्थों में प्रमुख मुफ़्ती अब्दुल रऊफ़, लश्कर-ए-तैयबा के ज़की -उर-रहमान लखवी और अमीर हमजा भी मौजूद थे।
अब्दुल रऊफ़ जैश प्रमुख मसूद अज़हर का भाई है और अज़हर के बीमार होने की वजह से कामकाज वही देखता है।
ज़िम्मेदारियाँ तय
इन बैठकों में पाकिस्तान-अधिकृत कश्मीर के आतंकवादियों को भी बुलाया गया था और उन्होंने शिरकत की थी। उन्हें ज़मीनी स्तर पर आतंकवादी योजनाओं को लागू करने की जि़म्मेदारी दी गई।
ख़ुफ़िया एजेंसियों के मुताबिक़, आतकंवादियों की अगली बैठक 7 मार्च को इसलामाबाद में हुई। इस बैठक में काम का बँटवारा हुआ और सबकी ज़िम्मेदारी तय की गई।
यह तय हुआ कि जम्मू-कश्मीर में तमाम हमले हिज़बुल मुजाहिदीन करेगा और यह काम जैश-ए-मुहम्मद के मुफ़्ती अशगर कश्मीरी की देखरेख में होगा।
समन्वय
यह भी तय हुआ कि पूरी कश्मीर घाटी में आतंकवादी हमलों का समन्वय हिज़बुल मुजाहिदीन का प्रमुख सैयद सलाहुद्दीन करेगा। वह जैश-ए-मुहम्मद और जमात-उद-दावा के पाक-अधिकृत कश्मीर के अब्दुल अजीज़ अलवी के संपर्क में रहेगा। मुफ़्ती अशगर कश्मीरी ने 7 मई की बैठक के पहले ही पाक-अधिकृत कश्मीर के मुज़फ़्फ़राबाद में सैयद सलाहुद्दीन से मुलाक़ात की थी।
पाकिस्तान सेना और आईएसआई ने इस बैठक में यह भी एलान किया कि इस आतंकवादी रणनीति को अंजाम देने के लिए नए गुट 'द रेज़िस्टेंस फ़ोर्स' यानी टीआरएफ़ का गठन किया जाएगा। इसके अलावा तहरीक-ए-मिल्लत-ए-इसलामी और गज़नवी फ़ोर्स को फिर से खड़ा किया जाएगा।
7 मई की बैठक में आईएसआई ने औपचारिक रूप से टीआरएफ़ के गठन का एलान इन गुटों के सामने किया, पर उसका गठन वह पहले ही कर चुका था।
जम्मू-कश्मीर में भारतीय सेना के कर्नल आशुतोष शर्मा की हत्या की ज़िम्मेदारी टीआरफ़ ने ली थी। यह वारदात 2 मई को ही हुई थी। उस समय लोगों ने पहली बार द रेजिस्टेंस फ़ोर्स का नाम सुना था।
उस हमले के तुरन्त बाद लश्कर-ए-तैयबा का आतंकवादी और पाकिस्तानी नागरिक हैदर भारत में सुरक्षा बलों के साथ मुभेड़ में मारा गया था। उसके बाद से ही घाटी में आतंकवादी वारदातें एक के बाद एक होने लगीं और सुरक्षा बलों के साथ मुठभेड़ भी ज़्यादा होने लगे।
जम्मू-कश्मीर का भविष्य क्या है, बता रहे हैं वरिष्ठ पत्रकार आशुतोष।
कुलगाम
इसके लिए पहले एक के बाद एक कई वारदातों पर नज़र डालना ज़रूरी है। संदिग्ध आतिकंवादियों ने अगस्त के पहले हफ़्ते में जम्मू-कश्मीर के कुलगाम ज़िले में बीजेपी के एक सरपंच की हत्या कर दी। अखराँ गाँव के इस सरपंच की हत्या के दो दिन बाद ही एक और सरपंच की हत्या कर दी गई।
इसके पहले कुलगाम जिले में दमहाल हांजीपोरा के साथ सटे नाडीमर्ग में रात के अंधेरे में स्वचालित हथियारों से लैस चार-पांच आतंकवादियों ने ग़ुलाम हसन वागे और सिराजुदीन गोरसी नामक दो ग्रामीणों को उनके घरों से बाहर निकाल उन पर गोलियों की बौछार कर दी। सिराजुदीन गोरसी कुछ समय पहले ही बीजेपी में शामिल हुए थे। कुछ वर्ष पूर्व आतंकियों ने उनकी मां और बीबी को भी निशाना बनाया था। वहीं, गुलाम हसन वागे जम्मू कश्मीर वन विभाग का एक सेवानिवृत्त कर्मी था।
बान्दीपोरा
इसके पहले जम्मू-कश्मीर के बांदीपोरा में भारतीय जनता पार्टी के 3 स्थानीय नेताओं को आतंकवादियों ने 10 जुलाई को मार डाला। शेख वसीम बारी को 4 जून को पार्टी के प्रशिक्षण विभाग का कश्मीर प्रभारी नियुक्त किया गया था।
उनके पिता बशीर अहमद शेख और भाई उमर शेख की भी हत्या ताबड़तोड़ गोली मार कर की गई थी। ये तीनों एक ही दिन और एक ही समय मारे गए थे। उन्हें सुरक्षा मिली हुई थी, लेकिन हमले के समय उनके निजी सुरक्षा अधिकारी यानी पीएसओ उनके साथ नहीं थे। बशीर अहमद शेख और उमर शेख भी बीजेपी के पदाधिकारी रह चुके थे।
बारामुला
जुलाई महीने ही बारामुला के स्थानीय बीजेपी नेता और म्युनिसपल कमेटी वाटरगाम के उपाध्यक्ष मेराजुद्दीन मल्ला का अपहरण कर लिया गया था।
बांदीपोरा हत्याकांड के पहले जम्मू-कश्मीर में आतंकवादियों के हमले में बीजेपी के दो कार्यकर्ता मारे गए। ये दोनों हत्याएं पुलवामा-शोपियां में हुईं थीं।
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