महबूबा के ट्वीट से हड़कंप
राज्य की पूर्व मुख्यमंत्री और पीपल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (पीडीपी) की प्रमुख महबूब मुफ़्ती के बयान से पूरे प्रदेश में हड़कंप मचा हुआ है। उन्होंने ट्वीट कर कहा, राज्य की विशेष स्थिति में किसी तरह की छेड़छाड़ की कोशिश का वह मरते दम तक विरोध करेंगी। उन्होंने आगे कहा कि नई दिल्ली को यह समझना चाहिए कि पीडीपी अकेली पार्टी है जो विशेष स्थिति और पहचान बचाए रखने के लिए दीवाल की तरह खड़ी हो सकती है।आतंकवादी हमला?
तो क्या पुलवामा जैसा कोई हमला होने वाला है? पर्यवेक्षकों का कहना है कि इसकी आशंका भी फ़िलहाल कम है। इसकी वजह पाकिस्तान की अंदरूनी राजनीति, उसकी आर्थिक बदहाली और अंतरराष्ट्रीय दबाव है। प्रधानमंत्री इमरान ख़ान बड़ी शिद्दत से पाकिस्तान की आर्थिक स्थिति को सुधारने की कोशिश कर रहे हैं और वह अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष से बड़ी मुश्किल से 6 अरब डॉलर का कर्ज ले पाए हैं।अंतरराष्ट्रीय बिरादरी में अलग-थलग पाकिस्तान दिखावे के लिए ही सही, हाफ़िज सईद जैसे आतंकवादी को गिरफ़्तार करने की हिम्मत दिखा रहा है। पाकिस्तान की राजनीति में यह बहुत ही जोख़िम भरा कदम है।
अमरनाथ यात्रा के लिए तैनाती?
राज्य के पुलिस प्रमुख ने कहा कि यह तो रूटीन तैनाती है और सुरक्षा स्थिति के मद्देनज़र बीच बीच में इस तरह की तैनाती होती रहती है। इसमें कोई ख़ास बात नहीं है। राज्यपाल सत्यपाल मलिक के सलाहकार के. विजय कुमार ने भी ऐसा ही कुछ कहा।“
राज्य की सुरक्षा स्थिति के गंभीर विश्लेषण के बाद सोची समझी रणनीति के तहत अतिरिक्त सुरक्षा बलों को बुलाया गया है, उनमें से ज़्यादातर लोगों को अमरनाथ यात्रा से जुड़े सुरक्षा इंतजाम में लगाया गया है।
के. विजय कुमार , जम्मू-कश्मीर के राज्यपाल के विशेष सलाहकार
अमरनाथ यात्रा को कोई स्थानीय गुट निशाना नहीं बनाएगा क्योंकि पूरे इलाक़े की अर्थव्यवस्था के लिए यह यात्रा फ़ायदेमंद है, लाखों लोगों के साल भर के खाने पीने का इंतजाम इससे होता है।
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सरकार की नीयत
आतंकवाद से निपटने के नाम पर यूएपीए यानी अनलॉफ़ुल एक्शन प्रीवेन्शन एक्ट में जिस तरह संशोधन किया गया कि किसी भी आदमी को कभी भी आतंकवादी घोषित किया जा सकता है, उससे सरकार की नीयत पर सवाल उठता है। गृह मंत्री अमित शाह ने इस विधेयक पर बहस के दौरान संसद में खुले आम कहा कि अर्बन नक्सल जैसे लोगों के प्रति उन्हें कोई सहानुभूति नहीं हैं, हालाँकि उन्होंने यह नहीं बताया कि अर्बन नक्सल कौन हैं।कश्मीर मुद्दे पर मोदी सरकार की नीति कांग्रेस सरकारों, यहाँ तक कि अटल बिहारी वाजपेयी सरकार की नीतियों से अलग इस मामले में है वह किसी तरह के मेल मिलाप, नरमी या बातचीत के पक्ष में नहीं है।
क्या किया विशेष दूत ने?
इस सरकार का मानना है कि सख़्ती से निपट कर ही कश्मीर मुद्दे का समाधान ढूंढा जा सकता है। मोदी सरकार ने कश्मीर मुद्दे पर सभी पक्षों से बात करने के लिए अक्टूबर 2017 में ही दिनेश्वर शर्मा को विशेष दूत नियुक्त किया। इस पूर्व इंटेलीजेन्स ब्यूरो प्रमुख की नियुक्ति को काफी सकारात्मक कदम माना गया था। पर नतीजा वही रहा, ढाक के तीन पात। शर्मा ने क्या रिपोर्ट दी या उस रिपोर्ट का क्या हुआ, किसी को नहीं पता।हिन्दुत्ववादी राष्ट्रवाद!
प्रखर राष्ट्रवाद बीजेपी की हिन्दूवादी राजनीति में फिट बैठता है। भले ही सेना के लेफ़्टिनेंट जनरल स्तर के अफ़सर ने कहा हो कि 15 दिन की लड़ाई के साजो सामान भी नहीं हैं और उसके बाद भी रक्षा बजट जीडीपी के हिसाब से 1962 के बाद के न्यूतम स्तर पर हो, लोग मोदी की इस बात पर यकीन करते हैं 'पाकिस्तान में अंदर घुस कर मारा है।' जब मोदी कहते हैं कि 'हमने परमाणु बम दीवाली के लिए तो बनाया नहीं है', लोग तालियाँ बजाते हैं। ऐसे में यह स्वाभाविक है कि कश्मीर में सख़्ती दिखाई जाए।इस सख़्ती की नीति से जम्मू-कश्मीर समस्या का कितना समाधान होगा, यह सवाल महत्वपूर्ण ज़रूर है, पर फ़िलहाल यह सवाल कोई पूछ नहीं सकता। लोकसभा में ज़बरदस्त बहुमत हासिल करने वाली पार्टी के सामने वह पार्टी है, जो हार के दो महीने बाद यही तय नहीं कर पा रही है कि उसका अध्यक्ष कौन होगा। ऐसे में कश्मीर को कौन पूछता है?
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