इस ज़हर की दवा नहीं!
अमेरिका से छपने वाले अख़बार न्यूयॉर्क टाइम्स ने एक ख़बर छापी है कि किस तरह साँप काटने जैसी मामूली घटना से एक परिवार बुरी तरह हिल जाता है और एक मामूली विषरोधी दवा लेने के लिए उन्हें कई घंटों की जद्दोजहद करनी पड़ती है। वजह साफ़ है, न एंबुलेंस बुलाई जा सकती है, न डॉक्टर से बात की जा सकती है और न ही दवा या अस्पताल तक पहुँचा जा सकता है।बेचारी माँ एम्बुलेन्स तक नहीं मँगा सकती। कैसे मँगाए? वह फ़ोन नहीं कर सकती, व्हाट्सऐप नहीं कर सकती, सोशल मीडिया का सहारा नहीं ले सकती। फ़ोन लाइनें और इंटरनेट कनेक्शन तो काटी जा चुकी हैं। साँप का ज़हर रोकने वाली एक मामूली दवा के लिए एक बेबस माँ का संघर्ष शुरू होता है।
कर्फ़्यू, चेक पोस्ट और बेबस माँ!
साजा बेग़म बच्चे को गोद में लेकर पास के स्वास्थ्य केंद्र की ओर दौड़ीं, पर वह तो बंद था। वह सड़क पर दहाड़ें मार कर रो रही थी और चीख चीख कर लोगों से मदद की गुहार रही थी। किसी ने अपनी गाड़ी से उन्हें पास के बारामुला ज़िला अस्पताल पहुँचाया। वहाँ के डॉक्टर परेशान हो उठे, उनके पास ज़हर रोकने वाली दवा नहीं थी, ख़त्म हो चुकी थी। पर उन्होंने इतना ज़रूर किया कि उस बच्चे को एम्बुलेन्स से श्रीनगर के एक सरकारी अस्पताल भेज दिया। रास्ते में सुरक्षा बलों ने कई जगहों पर एम्बुलेन्स रोकी, पूछताछ की, परिवार वालों की गुहार पर तरस खा कर आगे जाने दिया। इस बीच बच्चे ने आँखें मूंदनी शुरू कर दी, उसने माँ से कहा कि उसका दाहिना पैर सुन्न हो रहा है।लड़ाई हार गई माँ!
श्रीनगर के शौरा अस्पताल में भी वह दवा नहीं थी, स्टॉक ख़त्म हो चुका था। परिवार के लोग इस दवा दुकान से उस दवा दुकान का चक्कर लगाते रहे, दवा किसी के पास नहीं थी। अंत में वे सेना के अस्पताल पहुँचे और मदद की गुहार की। वहां लोगों ने अगले दिन आने को कहा।परिवार वालों का संघर्ष बेकार गया, फ़ारूक़ अहमद डार ने सदा के लिए आँखें मूंद लीं। एक मामूली एंटीवेनम दवा नहीं होने से एक घर उजड़ गया, एक होनहार बच्चा मर गया, क्योंकि पूरे राज्य में बंदी है, उस दवा की सप्लाई नहीं हुई।
मौत जारी है!
कश्मीर के एक सरकारी अस्पताल के एक डॉक्टर ने नाम न छापने की गुजारिश के साथ इंडियन एक्सप्रेस से कहा, 'कम से कम एक दर्जन लोग इसलिए मर चुके हैं कि वे समय पर एम्बुलेन्स नहीं बुला सके, डॉक्टर से संपर्क न कर सके, इनमें से ज़्यादातर हृदय रोग से पीड़ित थे।प्रशासन का इनकार
प्रशासन इससे साफ़ इनकार करता है। उसका दावा है कि बंदी के बावजूद स्वास्थ्य सेवाएँ सामान्य चल रही हैं, अस्पताल खुले हुए हैं, कर्मचारी काम कर रहे हैं, उन्हें इसके लिए ज़रूरी पास दिए गए हैं। एक सरकारी कर्मचारी ने कहा, 'बंदी की वजह से किसी की जान नहीं गई है, हमने जितनी जानें गँवाई हैं, उससे ज़्यादा जानें बचाई हैं।'व्हॉट्सऐप ग्रुप, दूसरों की मदद, ख़ुद काम न आया
लोगों की मदद करने के लिए 'सेव हर्ट इनीशिएटिव' नाम का एक व्हॉट्सऐप ग्रुप बना, जिसने हृदय रोग से पीड़ित लगभग 13,000 लोगों की मदद की है। कश्मीर के सैकड़ों डॉक्टर और विदेश में काम कर रहे कुछ डॉक्टरों ने भी इस ग्रुप से जुड़ कर लोगों की मदद की। पर यह व्हॉट्सऐप ग्रुप कश्मीरियों के काम नहीं आया क्योंकि वहाँ तो इंटरनेट ही नहीं है।राज्य के सबसे बड़ी अस्पताल श्री महाराजा हरि सिंह अस्पताल के डॉक्टरों का कहना है कि उस अस्पताल में होने वाले ऑपरेशन्स में बीते दो महीने में 50 प्रतिशत की कमी आई है। इसकी वजह ज़रूरी दवाओं की कमी है।
यह हाल हर जगह है। फ़ारूक़ अहदम डार तो एक मामूली घटना है। ऐसी बहुत सी कहानियाँ कश्मीर की फ़िजा में तैर रही हैं।
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