पाकिस्तान की खुफ़िया एजेन्सी आईएसआई ने क्या जम्मू-कश्मीर में अपनी रणनीति बदल दी है? क्या वह खूंखार आतंकवादियों के बदले अब उन लोगों की मदद ले रहा है जो आम नागरिकों की तरह रहते हैं और किसी वारदात को अंजाम देकर फिर अपनी जगह लौट आते हैं?
सवाल यह है कि क्या आईएसआई बड़े और अत्याधुनिक हथियारों के बदले पिस्टल का इस्तेमाल कर रहा है? इससे भी बड़ा सवाल यह है कि क्या भारत के ही कुछ लोग उसे इसमें मदद कर रहे हैं?
इन सवालों के उठने की वजह पिछले एक सप्ताह से कुछ अधिक समय में जम्मू-कश्मीर में हुई कुछ वारदाते हैं और राष्ट्रीय जाँच एजेन्सी यानी एनआईए के छापों से मिली कुछ जानकारियाँ हैं।
ये जानकारियाँ भारतीय सुरक्षा बलों की नींद उड़ाने के लिए काफी हैं।
पिछले सप्ताह घाटी के अलग-अलग जगहों पर हमले कर छह आम नागरिकों की हत्या कर दी गई। जम्मू-कश्मीर पुलिस के आईजी ने पत्रकारों से कहा कि ये सभी हमले हाइब्रिड आतंकवादियों ने किए थे।
हाइब्रिड आतंकवादी
हाइब्रिड आतंकवादी वे लोग होते हैं जो आम नागरिकों की तरह सामान्य जीवन जीते रहते हैं, लेकिन एक इशारे पर कहीं कोई हमला कर अपने ठिकाने पर लौट आते हैं और पहले की तरह रहने लगते हैं। इनका पुलिस में कोई रिकॉर्ड नहीं होता, लिहाज़ा पुलिस इनका पता नहीं लगा पाती है न ही इन तक पहुँच पाती है।
हाइब्रिड आतंकवादी किसी गुट के सदस्य तो होते हैं, पर वे दूसरे आतंकवादियों की तरह अंडरग्राउंड नहीं होते, वे आम जनता के बीच इस तरह रहते हैं कि उनका सुराग मिलना मुश्किल होता है।
पाकिस्तान की चाल
ये सामान्य आतंकवादियों से ज़्यादा ख़तरनाक होते हैं, क्योंकि इनका पता लगाना मुश्किल होता है। इन पर शक न पुलिस को होता है न किसी एजेन्सी को, न ही पास पड़ोस के लोगों को।
ये स्थानीय लोग होते हैं, इस कारण अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पाकिस्तान को ज़िम्मेदार ठहराना मुश्किल है। यह आसानी से कहा जा सकता है कि ये तो स्थानीय लोग हैं, जो अपनी आज़ादी के लिए लड़ रहे हैं या मौजूदा सरकार का विरोध कर रहे हैं, इनका पाकिस्तान से कोई रिश्ता नहीं।
पर्यवेक्षकों का कहना है कि ये हाइब्रिड आतंकवादी आईएसआई की दूसरी लाइन के लोग हैं और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर फजीहत से बचने के लिए इन्हें खड़ा किया गया है।
एनआईए के छापे
राष्ट्रीय जाँच एजेन्सी एनआईए ने जम्मू-कश्मीर के 16 ठिकानों पर छापे मारे और पाँच सौ से ज़्यादा लोगों से पूछताछ की है। इसके निशाने पर जैश-ए-मुहम्मद, लश्कर-ए-तैयबा, हिज़बुल मुजाहिदीन, अल बद्र जैसे संगठन के लोग थे।
पिछले सप्ताह से अब तक जम्मू-कश्मीर में पाँच आतंकवादी मारे गए हैं। पुलिस का कहना है कि ये सभी द रेजिस्टेन्स फ्रंट यानी टीआरएफ़ के लोग हैं। आईएसआई ने लश्कर, जैश और अल बद्र के कुछ लोगों को मिला कर टीआरएफ़ का गठन पिछले साल किया।
इसके पीछे पाकिस्तान की यह मंशा है कि वह प्रचारित कर सकेगा कि उसका इन लोगों से कोई वास्ता नहीं, ये स्थानीय लोग हैं जो सरकार से नाराज़ हैं और खुद लड़ रहे हैं।
पिस्टल क्यों?
पाकिस्तान की बदली हुई रणनीति का एक और पक्ष हथियार के चुनाव को लेकर है। पिछले दिनों जम्मू-कश्मीर में जितने आतंकवादी हमले हुए, उन सबमें पिस्टल का प्रयोग किया गया है। पिस्टल पास में रखना बड़े हथियारों की तुलना में आसान है।
पिस्टल के प्रयोग का यह कारण भी है कि इनके निशाने पर निहत्थे आम नागरिक थे, सशस्त्र सुरक्षा बल के लोग नहीं। इन आतंकवादियों को बड़े व अत्याधुनिक हथियारों की ज़रूरत ही नहीं थी।
ड्रोन से पिस्टल
समझा जाता है कि पाकिस्तान से बड़े पैमाने पर पिस्टल भारत पहुँचे हैं। पिछले दिन जम्मू-कश्मीर पुलिस ने अहमद भट्ट नामक एक आतंकवादी को गिरफ़्तार किया। उसे अंतरराष्ट्रीय सीमा के पास एक गाँव से पकड़ा गया।
समझा जाता है कि पाकिस्तान से आने वाले ड्रोन के ज़रिए उस तक हथियारों की खेप पहुँची। पुलिस उससे पूछताछ कर रही है।
इससे यह अनुमान लगाया जा सकता है कि पाकिस्तान ड्रोन के ज़रिए पिस्टल भारत पहुँचा रहा है और यहां उसके एजेन्ट उसे हमलावरों तक पहुँचा रहे हैं।
कुल मिला कर स्थिति यह है कि पाकिस्तान अपनी बदली हुई रणनीति के तहत जम्मू-कश्मीर में स्थानीय स्तर पर हाइब्रिड आतंकवादियों को आगे कर रहा है, उसके बाद की पंक्ति में टीआरएफ़ है, जिसके लोग भी स्थानीय ही हैं। हथियारों के मामले में बड़े व अत्याधुनिक हथियारों के बदले पिस्टल इस्तेमाल किए जा रहे हैं।
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