जम्मू-कश्मीर में भारतीय जनता पार्टी के स्थानीय नेता और कार्यकर्ता आतंकवादियों के निशाने पर हैं। पिछले कुछ समय से उन पर लगातार हमले हो रहे हैं। कश्मीर की राजनीति में बीजेपी कभी भी महत्वपूर्ण पार्टी नहीं रही, जम्मू के बाहर इसका कोई प्रभाव नहीं रहा है। इसके बावजूद अब क्या हो गया कि वे अलगाववादियों के निशाने पर हैं? क्या वे राज्य की राजनीति में अपना प्रभाव बढाने में कामयाब हो रहे हैं? क्या उनके पैर पसारने से अलगाववादी तत्व असहज महसूस कर रहे हैं?
कुलगाम
इसके लिए पहले एक के बाद एक कई वारदातों पर नज़र डालना ज़रूरी है। संदिग्ध आतिकंवादियों ने मंगलवार को जम्मू-कश्मीर के कुलगाम ज़िले में बीजेपी के एक सरपंच की हत्या कर दी। अखराँ गाँव के इस सरपंच की हत्या के दो दिन बाद ही एक और सरपंच की हत्या कर दी गई।
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इसके पहले कुलगाम जिले में दमहाल हांजीपोरा के साथ सटे नाडीमर्ग में रात के अंधेरे में स्वचालित हथियारों से लैस चार-पांच आतंकवादियों ने ग़ुलाम हसन वागे और सिराजुदीन गोरसी नामक दो ग्रामीणों को उनके घरों से बाहर निकाल उन पर गोलियों की बौछार कर दी। सिराजुदीन गोरसी कुछ समय पहले ही बीजेपी में शामिल हुए थे। कुछ वर्ष पूर्व आतंकियों ने उनकी मां और बीबी को भी निशाना बनाया था। वहीं, गुलाम हसन वागे जम्मू कश्मीर वन विभाग का एक सेवानिवृत्त कर्मी था।
बान्दीपोरा
इसके पहले जम्मू-कश्मीर के बांदीपोरा में भारतीय जनता पार्टी के 3 स्थानीय नेताओं को आतंकवादियों ने 10 जुलाई को मार डाला। शेख वसीम बारी को 4 जून को पार्टी के प्रशिक्षण विभाग का कश्मीर प्रभारी नियुक्त किया गया था।उनके पिता बशीर अहमद शेख और भाई उमर शेख की भी हत्या ताबड़तोड़ गोली मार कर की गई थी। ये तीनों एक ही दिन और एक ही समय मारे गए थे। उन्हें सुरक्षा मिली हुई थी, लेकिन हमले के समय उनके निजी सुरक्षा अधिकारी यानी पीएसओ उनके साथ नहीं थे। बशीर अहमद शेख और उमर शेख भी बीजेपी के पदाधिकारी रह चुके थे।
शेख वसीम बारी ने हत्या के कुछ दिन पहले ही यानी 6 जुलाई, 2020, को जन संघ के संस्थापक श्यामा प्रसाद मुखर्जी की 119वीं जयंति समारोह में बढ़-चढ़ कर भाग लिया था। उसके बाद सोशल मीडिया पर उनके ख़िलाफ़ काफी कुछ कहा गया था।
बारामुला
पिछले महीने ही बारामुला के स्थानीय बीजेपी नेता और म्युनिसपल कमेटी वाटरगाम के उपाध्यक्ष मेराजुद्दीन मल्ला का अपहरण कर लिया गया था।बांदीपोरा हत्याकांड के पहले जम्मू-कश्मीर में आतंकवादियों के हमले में बीजेपी के दो कार्यकर्ता मारे गए। ये दोनों हत्याएं पुलवामा-शोपियां में हुईं थीं।
यह तो साफ़ है कि बीजेपी कश्मीर में सक्रिय हो रही है। वह नैशनल कॉन्फ्रेंस, पीडीपी और कांग्रेस की छोड़ी गई राजनीतिक जगह को भरने की कोशिश कर रही है।
राजनीतिक शून्य
नैशनल कॉन्फ्रेंस के स्थानीय नेता मोटे तौर पर चुप हैं। पीडीपी और कांग्रेस जैसी मुख्य धारा की राजनीतिक पार्टियाँ भी घाटी में लगभग निष्क्रिय पड़ी हुई हैं। अनुच्छेद 370 में बदलाव होने और अनुच्छेद 35 ए ख़त्म किए जाने के बाद इन पार्टियों के नेताओं को गिरफ़्तार कर लिया गया या नज़रबंद कर दिया गया। इसके बाद इन दलों की दूसरी या तीसरी कतार के नेता चुप रहे। यानी सड़क पर उतर कर किसी ने विरोध नहीं किया, किसी ने कोई प्रदर्शन नहीं किया।पर्यवेक्षकों का कहना है कि इसकी वजह सुरक्षा बलों की सख़्ती भी हो सकती है और इन राजनीतिक दलों की चुप रहने की रणनीति भी। इससे राज्य में एक तरह का राजनीतिक शून्य पैदा हुआ है, एक खालीपन बना है।
बीजेपी कुछ इलाक़ों में इस खालीपन को भरने की कोशिश कर रही है। पर पहले के पुराने बीजेपी नेता चुप हैं, वे आम आदमी के बीच जाकर सरकार के फ़ैसले पर बोलने की हिम्मत नहीं जुटा पा रहे हैं।
बीजेपी के कुछ दूसरे लोग इस मौके पर राजनीति में अपनी जगह बनाने की कोशिश में हैं। इसके अलावा कुछ नए लोग भी बीजेपी से इस उम्मीद में जुड़ रहे हैं कि वे इस मौके पर राजनीति में अपनी कोई जगह बना सकेंगे। ऐसे लोग ही अलगाववादियों के निशाने पर हैं।
बांदीपोरा में शेख वसीम बारी, उनके पिता और भाई की हत्या के बाद पुलिस ने कहा था कि लश्कर-ए-तैयबा इसके पीछे है। लश्कर जैसे पाकिस्तान से काम करने वाले आतंकवादी गुटों के लिए बीजेपी कभी महत्वपूर्ण नहीं रही है। पर हिन्दुओं की पार्टी समझी जाने वाली बीजेपी से कश्मीरी मुसलमान का जुड़ना लश्कर को नागवार गुजर सकता है।
लश्कर को ऐसा लग सकता है कि हिन्दुत्ववादी पार्टी मुसलमानों में अपनी पैठ बना रही है। उसकी रणनीति घाटी की राजनीति में एक हिन्दुत्ववादी पार्टी को रोकने की हो सकती है।
जम्मू से उखड़ रही है बीजेपी?
हालांकि राजनीतिक तौर पर तो बीजेपी अपनी जगह भी खो रही है। जम्मू इसका आधार रहा है और वहां के लोग केंद्र सरकार से नाराज़ हैं। उनमें हिन्दुओं की बहुलता है, जो सवाल पूछने लगे हैं कि एक साल में राज्य को क्या हासिल हुआ। एक साल में कोई बड़ा निवेश नहीं हुआ, रोज़गार के मौके नहीं बने। पहले से अच्छा कारोबार कर रहा सेब का व्यापार चौपट हो गया। कश्मीर को सेब व्यापार में हज़ारों करोड़ का नुक़सान पिछले सीजन में हुआ था क्योंकि उसी समय वहां लॉकडाउन का एलान कर दिया गया था।जम्मू के हिन्दू ही यदि बीजेपी सरकार से खुश न हों तो बीजेपी के नेता घाटी में लोगों को क्या समझाएंगे, कैसे पार्टी का बचाव करेंगे, यह सवाल अहम है। लेकिन इसके साथ ही यह भी बात अहम है कि घाटी में कुछ जगहों पर स्थानीय कश्मीरी मुसलमान राजनीति में जगह बनाने की कोशिश में बीजेपी के साथ जुड़ रहे हैं। अलगाववादियों के निशाने पर ऐसे लोग ही हैं।
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