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कश्मीर: सरकार के चाहने के बाद भी लोग नहीं खोल रहे दुकानें

जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 को हटाये जाने के बाद से केंद्र सरकार लगातार राज्य में हालात सामान्य करने की कोशिशों में जुटी है और उसने हालात सामान्य होने का दावा भी किया है लेकिन शायद कश्मीर के लोग सरकार के फ़ैसले से बेहद नाराज़ हैं। अंग्रेजी अख़बार ‘द इंडियन एक्सप्रेस’ में छपी ख़बर के मुताबिक़, कश्मीर के सभी कस्बों में चाहे वह आतंकवाद प्रभावित दक्षिण कश्मीर हो या उत्तरी कश्मीर, सरकार के फ़ैसले के ख़िलाफ़ लोग न तो स्थानीय बाज़ारों को खोल रहे हैं और न ही सड़कों पर वाहन दिखाई दे रहे हैं। और ऐसा तब हो रहा है जब प्रशासन की ओर से प्रतिबंधों में ढील दी गई है। 

‘द इंडियन एक्सप्रेस’ के मुताबिक़, दवाई की दुकानों को छोड़कर कश्मीर में सभी जगह अन्य दुकानें बंद हैं। मीट शॉप शाम को खुलती हैं और इसके मालिक भी दुकान का पूरा शटर नहीं खोलते। गाँवों में रोजमर्रा के कामकाज से जुड़ी दुकानें खुलती हैं लेकिन इसे छोड़कर बाक़ी सब बंद है। सड़क पर भी सिर्फ़ प्राइवेट गाड़ियाँ दिखती हैं। कश्मीर में सभी जगह दिख जाने वाली सार्वजनिक परिवहन की गाड़ी टाटा सूमो भी सड़कों पर नहीं हैं और इस वजह से लोग सरकारी ऑफ़िसों में नहीं पहुँच पा रहे हैं।
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‘द इंडियन एक्सप्रेस’ के मुताबिक़, सरकार के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा, ‘कश्मीर में किसी भी अलगाववादी नेता की ओर से बंद नहीं बुलाया गया है, व्यापारियों से जुड़े किसी भी संगठन ने भी बंद का आह्वान नहीं किया है लेकिन इसके बाद भी लोग दुकानें नहीं खोल रहे हैं। हम लोगों से दुकानें खोलने के लिये कह रहे हैं लेकिन लोग ऐसा करना ही नहीं चाहते।’ 

बता दें कि अनुच्छेद 370 को हटाये जाने के बाद सरकार ने राज्य के पूर्व मुख्यमंत्रियों फ़ारुक़ अब्दुल्ला, उनके बेटे उमर अब्दुल्ला और महबूबा मुफ़्ती और कई अलगाववादी नेताओं, राजनेताओं और कुछ संगठनों से जुड़े नेताओं और पत्थरबाज़ों को हिरासत में रखा हुआ है।
अख़बार के मुताबिक़, हंदवाड़ा में दवा की दुकान चलाने वाले एक दुकानदार ने कहा कि लोग ख़ुद ही ऐसा कर रहे हैं। शुक्रवार को जुमे की नमाज के कारण प्रशासन ने एक बार फिर प्रतिबंध बढ़ा दिये थे लेकिन उम्मीद है कि शनिवार को इनमें कुछ ढील दी जा सकती है। 

बड़ी संख्या में तैनात किये थे जवान

अनुच्छेद 370 को हटाये जाने से पहले सरकार ने घाटी में बड़ी संख्या में जवानों की तैनाती कर दी थी क्योंकि सरकार को यह डर था कि उसके इस क़दम से कश्मीर में बड़े पैमाने पर प्रदर्शन हो सकते हैं। ऐसे प्रदर्शन 2016 में आतंकवादी बुरहान वानी के मारे जाने के बाद हुए थे और तब कश्मीर लगभग छह महीने तक बंद रहा था। 
5 अगस्त को अनुच्छेद 370 को हटाने के बाद से कश्मीर में गलियों में प्रदर्शन हुए हैं और इनमें भी श्रीनगर ज़्यादा प्रभावित रहा है। लेकिन बीते दो हफ़्तों में घाटी के हालात देखकर ऐसा लगता है कि यहाँ लोगों ने ख़ुद ही कर्फ्यू लगाया हुआ है और सरकार के फ़ैसले के बाद जबरदस्त उदासी है। 
अख़बार में छपी ख़बर के मुताबिक़, एक सरकारी अधिकारी ने कहा कि यह समझ पाना मुश्किल है कि यह लोगों ने ख़ुद ही दुकानें बंद की हैं या ऐसा आतंकवादियों के डर के कारण किया है।
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जिला प्रशासन के अधिकारियों का कहना है कि वे लोग कोशिश कर रहे हैं कि व्यापारी दुकानें खोलें और सार्वजनिक परिवहन की गाड़ियाँ फिर से सड़कों पर दौड़ें लेकिन इसमें उन्हें बहुत ज़्यादा सफलता नहीं मिल पा रही है। एक अधिकारी ने कहा, ‘दुकानदार कह रहे हैं कि वे तब तक दुकानें नहीं खोल सकते जब तक टेलीफ़ोन सुविधा न चालू हो जाये क्योंकि तभी वह उन्हें सामान देने वालों से संपर्क कर सकेंगे।’
अधिकारियों का कहना है कि टेलीफ़ोन बंद होने से उन्हें लोगों की राय नहीं मिल पा रही है और जब फ़ोन और इंटरनेट चालू हो जायेंगे तभी हमें सही हालात का पता चल सकेगा। लेकिन उनका कहना है कि घाटी में जिस तरह का बंद है, उससे साफ़ पता चलता है कि लोग सरकार के फ़ैसले के बारे में क्या सोच रहे हैं।
‘द इंडियन एक्सप्रेस’ के मुताबिक़, लोगों के बीच में सभी जगह एक बात आम है कि वे इसलिए नाराज हैं क्योंकि उनकी पहचान को छीन लिया गया है। इसके अलावा प्रतिबंध लगाये जाने और टेलीफ़ोन सेवा बंद कर दिये जाने से भी लोग नाराज हैं। हालाँकि सरकार ने घाटी में स्कूलों को खोलने की कोशिश की है लेकिन स्कूलों में बहुत कम संख्या में बच्चे आ रहे हैं। 
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‘द इंडियन एक्सप्रेस’ के मुताबिक़, श्रीनगर के एक अभिभावक ने कहा ऐसी स्थितियों में कोई भी अपने बच्चों को स्कूल भेजना नहीं चाहता। अगर कुछ हो जाता है तो क्या होगा और हम अपने बच्चों से स्कूल में भी संपर्क नहीं कर सकते। ख़बर के मुताबिक़, पुलवामा के लल्हार गाँव की एक औरत ने कहा, ‘यह लोगों की ओर से लगाया कर्फ्यू है। पहले एक कर्फ्यू सरकार की ओर से लगाया गया था और यह हमारी ओर से है। वे चाहते हैं कि हम अपनी दुकानें खोलें और अपने बच्चों को स्कूल भेजें लेकिन हम ऐसा नहीं करेंगे।’ उत्तरी कश्मीर के पाट्टन इलाक़े में तैनात सीआपीएफ़ जवानों में से एक ने कहा कि हमारी ओर से दुकानें खोलने को लेकर कोई भी प्रतिबंध नहीं लगाया गया है जबकि हम उन्हें दुकानें खोलने के लिए कह रहे हैं लेकिन वे ऐसा करना ही नहीं चाहते। एलओसी से सिर्फ़ 50 किमी. दूर कुपवाड़ा पूरी तरह बंद है। इसी तरह कुछ दूसरे लोगों का भी कहना है कि यह बंद उनकी ओर से किया गया है।
पुलवामा के मुगलपोरा गाँव में रहने वाले एक छात्र ने कहा कि हम इस बंद को और ज़्यादा से ज़्यादा खींचना चाहते हैं ताकि लोगों का ध्यान कश्मीर की ओर खींच सकें।
सरकार उम्मीद कर रही है कि घाटी में हालात जल्द सामान्य होंगे लेकिन हालात देखकर ऐसा नहीं लगता। इससे स्पष्ट है कि लोग जम्मू-कश्मीर से उसके विशेष राज्य का दर्जा छीने जाने और राज्य को दो हिस्सों में बाँटे जाने के केंद्र के फ़ैसले के पूरी तरह ख़िलाफ़ हैं और वे अपनी नाराज़गी का इजहार भी कर रहे हैं। कुछ समय पहले पहले राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल की कश्मीर में लोगों के साथ खाना खाने की कुछ फ़ोटो सामने आई थी तो सरकार ने यह बताने की कोशिश की थी कि घाटी में तेज़ी से हालात सामान्य हो रहे हैं लेकिन दो हफ़्ते से ज़्यादा समय से बंद बाज़ार और घाटी की सूनी सड़कें सरकार के दावों के पूरी तरह उलट हैं।
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क़मर वहीद नक़वी
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