क्या राज्यपाल जैसे संवैधानिक पद पर बैठा व्यक्ति आतंकवादियों को हत्या करने के लिए उकसा सकते हैं? क्या वह किसी राजनेता, अफ़सर या पूर्व नौकरशाह की हत्या के लिये कह सकते हैं? इन सवालों पर बहस इसलिए शुरू हो गई है कि एक दिन पहले ही जम्मू-कश्मीर के राज्यपाल सत्यपाल मलिक ने कुछ ऐसा ही बयान दे दिया है। हालाँकि, उन्होंने अपने इस बयान पर ख़ेद जताया है और कहा है कि उन्होंने ‘ग़ुस्से और हताशा में’ यह बात कह दी थी। सवाल है कि क्या एक सार्वजनिक कार्यक्रम में आतंकवादियों को हत्या के लिए उकसाने की बात कहना किसी आवेग में हो सकता है?
सत्यपाल मलिक ने रविवार को कारगिल में एक कार्यक्रम में कहा, ‘जिन लड़कों ने बंदूकें उठाई हैं, वे अपने ही लोगों को मार रहे हैं, वे पीएसओ (व्यक्तिगत सुरक्षा अधिकारी) और एसपीओ (विशेष पुलिस अधिकारी) को मार रहे हैं। आप उन्हें क्यों मार रहे हैं? उन लोगों को मारें जिन्होंने कश्मीर की संपत्ति लूट ली है। क्या आपने उनमें से किसी की हत्या की है?’
उनकी इस टिप्पणी पर चौतरफ़ा कड़ी प्रतिक्रिया हुई। लिहाज़ा राज्यपाल मलिक ने सोमवार को सफ़ाई दी। उन्होंने कहा कि बड़े पैमाने पर भ्रष्टाचार के कारण ‘ग़ुस्से और हताशा में’ यह बात कह दी थी। न्यूज़ एजेंसी एएनआई को उन्होंने बताया, ‘राज्यपाल के रूप में मुझे इस तरह की टिप्पणी नहीं करनी चाहिए थी, लेकिन मेरी व्यक्तिगत भावना वैसी ही है जैसी मैंने कही थी। कई राजनीतिक नेता और बड़े नौकरशाह यहाँ भ्रष्टाचार में डूबे हुए हैं।’
राज्यपाल ने भले ही ख़ेद जता दिया हो लेकिन क्या वह ‘अपराध’ से मुक्त हो गये हैं? राज्यपाल का बयान हत्या के लिए उकसाने वाला है। राज्य के नेताओं ने उनके इस बयान के लिए आलोचना की है। राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने ट्वीट किया, ‘यह व्यक्ति, कथित रूप से एक ज़िम्मेदार व्यक्ति हैं, जो संवैधानिक पद पर काबिज हैं, आतंकवादियों को कथित रूप से भ्रष्ट राजनेताओं को मारने को कहते हैं। शायद ग़ैर-क़ानूनी हत्याओं और कंगारू अदालतों को मंज़ूरी देने से पहले इस आदमी को इन दिनों दिल्ली में अपनी प्रतिष्ठा के बारे में जानना चाहिए।’
इसके बाद एक अन्य ट्वीट में अब्दुल्ला ने लिखा, ‘इस ट्वीट को सहेजें - आज के बाद जम्मू-कश्मीर में यदि मुख्यधारा के किसी भी नेता या सेवारत/सेवानिवृत्त नौकरशाह की हत्या होती है तो यह जम्मू-कश्मीर के राज्यपाल सत्यपाल मलिक के आदेशों पर होगा।’
Save this tweet - after today any mainstream politician or serving/retired bureaucrat killed in J&K has been murdered on the express orders of the Governor of J&K Satyapal Malik.
— Omar Abdullah (@OmarAbdullah) July 21, 2019
यदि एक आम आदमी यह अपराध करता है तो उसको जेल होती है। इन दिनों सोशल मीडिया पर जान से मारने की धमकी देने या फिर समुदाय विशेष के ख़िलाफ़ नफ़रत फैलाने के आरोप में रोज़ लोगों की गिरफ़्तारी की ख़बरें आती हैं। हाल ही में असम में कविता लिखने की वजह से आठ कवियों के ख़िलाफ़ मुक़दमा दर्ज किया गया है। यह आरोप पुलिस ने लगाया कि यह कविता भड़काऊ है और हिंसा की वकालत करती है। इसको लेकर देश भर में काफ़ी बेचैनी है। ऐसे में अगर राज्यपाल खुलेआम हत्या की बात करें तो फिर क्या किया जाना चाहिये? क़ानून की नज़र में सिर्फ़ ख़ेद जताने से माफ़ी नहीं मिल जाती।
बाद में नपा-तुला बयान
हालाँकि यह भी सच है कि मलिक ने यह भी कहा कि बंदूकें कभी भी एक संकट का हल नहीं रही हैं और उन्होंने श्रीलंका में तमिल ईलम के तमिल अलगाववादी समूह लिबरेशन टाइगर्स का हवाला दिया। उन्होंने कहा कि भारत सरकार बंदूक के आगे कभी नहीं झुकेगी। उन्होंने आतंकवादियों से हिंसा का रास्ता छोड़ने को कहा।
मलिक ने कहा कि घाटी में केवल 250 आतंकवादी रह गए और उन्होंने दावा किया कि उनमें से 50% पाकिस्तानी हैं। उन्होंने कहा कि यदि वे आत्मसमर्पण नहीं करेंगे तो मुठभेड़ों में मारे जाएँगे।
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