कांग्रेस के वरिष्ठ नेता रहे गुलाम नबी आजाद ने अपने अगले कदम का एलान कर दिया है। आजाद ने कहा है कि वह गृह राज्य जम्मू-कश्मीर में अपनी पार्टी का गठन करेंगे। जम्मू-कश्मीर में कुछ ही महीनों के अंदर विधानसभा के चुनाव होने हैं और ऐसे में आजाद की पार्टी निश्चित रूप से विधानसभा चुनाव में उतरेगी।
गुलाम नबी आजाद के जम्मू-कश्मीर के विधानसभा चुनाव में उतरने से निश्चित रूप से राज्य के सियासी समीकरणों पर असर पड़ेगा।
गुलाम नबी आजाद ने यह बात इंडिया टुडे से कही। उन्होंने बीजेपी में शामिल होने की अटकलों को पूरी तरह खारिज कर दिया।
लंबे वक्त से थी चर्चा
आजाद के अपनी पार्टी बनाने की चर्चा पिछले साल दिसंबर से है। उस दौरान आजाद ने जम्मू-कश्मीर में कई रैलियां की थी और अपने समर्थकों को एकजुट किया था। तब कांग्रेस छोड़ने को लेकर पूछे जाने वाले सवालों के जवाब में आजाद यही कहते थे कि वह कांग्रेस नहीं छोड़ेंगे।
आजाद कांग्रेस में बागी नेताओं के गुट G-23 के नेता रहे हैं और यह माना जा रहा है कि उनके पार्टी छोड़ने के बाद इस गुट के कुछ और नेता पार्टी छोड़ सकते हैं।
आजाद के पास है विशाल अनुभव
आजाद जम्मू-कश्मीर कांग्रेस के अध्यक्ष रहने के साथ ही मुख्यमंत्री, केंद्र सरकार में कई बार मंत्री, कई राज्यों में कांग्रेस के प्रभारी, कांग्रेस में फैसले लेने वाली सर्वोच्च संस्था सीडब्ल्यूसी के लंबे वक्त तक सदस्य, राज्यसभा में विपक्ष के नेता, पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव सहित तमाम बड़े पदों पर रह चुके हैं।
आजाद के पास सियासत का विशाल अनुभव है और जम्मू-कश्मीर में उनके समर्थकों की भी बड़ी फौज है। ऐसे में जब वह अपनी पार्टी का एलान करेंगे तो माना जा रहा है कि बड़ी संख्या में कांग्रेस के नेता उनके साथ जाएंगे और निश्चित रूप से इससे राज्य के अंदर कांग्रेस को तगड़ा झटका लगेगा।
निशाने पर रहे राहुल
बताना होगा कि आजाद ने शुक्रवार को कांग्रेस से इस्तीफा देने के साथ ही पार्टी के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी पर जमकर हमले किए हैं। आजाद ने पार्टी छोड़ने के पीछे राहुल गांधी को ही जिम्मेदार बताया है।
अमरिंदर ने छोड़ी थी पार्टी
पंजाब विधानसभा चुनाव 2022 से पहले पूर्व मुख्यमंत्री अमरिंदर सिंह ने कांग्रेस छोड़ दी थी और अपनी पार्टी बनाई थी। विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को इसका नुकसान उठाना पड़ा था और उसकी करारी हार हुई थी। हालांकि कांग्रेस की करारी हार में प्रदेश कांग्रेस के तत्कालीन अध्यक्ष रहे नवजोत सिंह सिद्धू की बयानबाजी और पार्टी नेताओं की गुटबाजी को भी जिम्मेदार माना गया था।
जम्मू-कश्मीर में 2019 में धारा 370 के हटने के बाद परिस्थितियां बदल गई हैं और उसके बाद पहली बार राज्य में विधानसभा के चुनाव होंगे। नेशनल कॉन्फ्रेंस और पीडीपी के रिश्तों में खटास आई है और
पीपल्स अलायंस फॉर गुपकार डिक्लेरेशन यानी गुपकार गठबंधन का अस्तित्व खतरे में दिख रहा है।
बताना होगा कि जम्मू-कश्मीर में परिसीमन की प्रक्रिया के बाद विधानसभा सीटों की संख्या बढ़ गई है। पहले जम्मू-कश्मीर में विधानसभा सीटों की संख्या 83 थी और अब यह बढ़कर 90 हो चुकी है। ऐसा पहली बार हुआ है जब जम्मू-कश्मीर में 9 सीटें अनुसूचित जनजातियों के लिए आरक्षित की गई हैं।
देखना होगा कि गुलाम नबी आजाद जम्मू-कश्मीर में क्या किसी चुनावी दल से गठबंधन करते हैं या फिर अकेले चुनाव मैदान में उतरते हैं। चुनाव लड़ने पर वह कितना असर पैदा कर पाएंगे और उनके चुनाव लड़ने से राज्य के सियासी समीकरण किस तरह प्रभावित होंगे, इसका भी पता आने वाले वक्त में चलेगा।
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